ट्रंप- शी वार्ता में मलेशिया में बनी सहमतियों पर दस्तखत हो जाते हैं। ऐसा हुआ, तो अमेरिका और चीन के अलावा बाकी दुनिया को भी राहत मिलेगी। मगर जो हालात हैं, उनके बीच यह करार भी एक अल्पकालिक युद्धविराम ही होगा।
दुनिया नजरें गुरुवार को दक्षिण कोरिया के ग्योंगजू शहर पर होंगी, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शिखर वार्ता प्रस्तावित है। राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल में ट्रंप की शी के साथ यह पहली मुलाकात होगी, जिसके लिए वे खासे उतावले नजर आए हैँ। यह उतावलापन कुछ तो उनकी “ट्रॉन्गमैन पॉलिटिक्स” के कारण है, जिसके तहत उन्हें “ताकतवर” नेताओं से मिलने में खास संतोष मिलता है। इस बात की ताजा मिसाल उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-उन से मिलने की उनकी दिलचस्पी है।
बहरहाल, शी के साथ मुलाकात सिर्फ मिलना भर नहीं है, बल्कि उनसे होने वाली बातचीत पर काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। गुजरे एक महीने में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध और तेज हुआ है, जिसके तहत चीन ने रेयर अर्थ सामग्रियों के निर्यात को नियंत्रित कर अमेरिका में रक्षा सहित अन्य उद्योगों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। इसके पहले वह अमेरिका से सोयाबीन एवं अन्य कृषि उत्पादों का आयात रोक चुका है, जिससे अमेरिकी किसान मुसीबत में बताए जाते हैँ। खबरों के मुताबिक मलेशिया में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिका और चीन के बीच हुई व्यापार वार्ता में इन तमाम मुद्दों पर कुछ सहमतियां बनी हैं।
इनके तहत चीन रेयर अर्थ के निर्यात और अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात पर कुछ राहत दे सकता है, मगर इसके बदले उसने अमेरिका से अमेरिकी बंदरगाहों पर चीन निर्मित एवं संचालित जहाजों पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क की वापसी पर जोर दिया है। साथ ही उसने चीनी कंपनियों पर पिछले महीने लगाए गए प्रतिबंधों को वापस लेने की मांग की है। ट्रंप- शी वार्ता में इन सहमतियों पर दस्तखत हो जाते हैं। ऐसा हुआ, तो अमेरिका और चीन के अलावा अन्य देशों को भी राहत मिलेगी। मगर जो ठोस हालात हैं, उनके मद्देनजर यह करार भी एक युद्धविराम ही होगा। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार पीपुल्स डेली ने दो टूक कहा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध में बार-बार विच्छेद और उनका अल्पकालिक समाधान आज की हकीकत है। अमेरिकी विश्लेषक भी इस बात से लगभग सहमत ही हैं।


