भारत में शैक्षिक ट्रेनिंग और जॉब मार्केट के तकाजों के बीच चौड़ी खाई मौजूद है। इसे कैसे भरा जाएगा? कड़वी हकीकत यही है कि जब ये खाई नहीं भरती, चीन या अन्य देश हमें ब्लैकमेल करने की स्थिति में बने रहेंगे।
इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (आईसीईए) ने भारत सरकार को पत्र लिख कर उन मुश्किलों की जानकारी दी है, जो चीन के अघोषित व्यापार प्रतिबंधों के कारण पेश आ रही हैं। एसोसिएशन ने कहा है कि इन पाबंदियों का हल नहीं निकला, तो चालू वित्त वर्ष में स्मार्ट फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात 36 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। पिछले वित्त वर्ष में इन सामग्रियों का निर्यात 24।1 बिलियन डॉलर का रहा। आईसीईए ने खास तौर पर रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात पर रोक और अपने विशेषज्ञों को भारत ना भेजने या भारत से वापस बुला लेने संबंधी चीन के कदमों का उल्लेख किया है। एसोसिएशन चाहती है कि भारत सरकार रेयर अर्थ सामग्रियों की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए जापान, दक्षिण कोरिया, और वियतनाम जैसे देशों से बातचीत करे।
साथ ही देश के अंदर रेयर अर्थ सामग्रियों एवं पूंजीगत मशीनरी के उत्पादन की क्षमता बढ़ाई जाए। हालांकि आईसीईए ने आगाह भी किया है कि इन सामग्रियों का देश के अंदर उत्पादन या उन्हें जापान या दक्षिण कोरिया से मंगवाने पर कंपनियों की लागत चीन से आई सामग्रियों की तुलना में तीन से चार गुना बढ़ जाएगी। उस हाल में सवाल उठेगा कि क्या महंगी लागत के साथ हुआ उत्पादन अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी रह पाएगा? बहरहाल, यह तो रेयर अर्थ सामग्रियों की बात है। दूसरा सवाल कहीं ज्यादा गंभीर है। मुद्दा है कि इंजीनियरों और विशेषज्ञों के लिए भारत की चीन पर निर्भरता क्यों है?
और इस समस्या का क्या हल होगा? कुछ समय पहले आई अनस्टॉप टैलेंट रिपोर्ट-2025 के मुताबिक पिछले वर्ष भारत में इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर निकले 83 प्रतिशत छात्रों और बिजनेस स्कूलों से निकले 46 फीसदी छात्रों को गुजरे मार्च तक ना तो नौकरी मिली और ना इंटर्नशिप का ऑफर उन्हें मिला। इसे इस बात का कारण संकेत माना गया कि देश में शैक्षिक ट्रेनिंग और जॉब मार्केट के तकाजों के बीच चौड़ी खाई मौजूद है। इसे कैसे भरा जाएगा? कड़वी हकीकत यही है कि जब ये खाई नहीं भरती, चीन या अन्य देश हमें ब्लैकमेल करने की स्थिति में बने रहेंगे।