राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

संविधान के अनुरूप

भारतीय सेना ने सर्व धर्म प्रार्थना की परंपरा अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र के अनुरूप स्थापित की है। अपेक्षित है कि ऐसे सिद्धांतों पर दृढ़ता से अमल किया जाए- चाहे मामला किसी भी धर्मावंबी से जुड़ा हुआ हो।

सुप्रीम कोर्ट ने यह उचित व्याख्या की है कि कोई सैनिक भारतीय सेना के सामूहिक आचार-धर्म के ऊपर धर्म की अपनी निजी व्याख्या को तरजीह नहीं दे सकता। इस तरह न्यायालय ने उपरोक्त सैनिक के खिलाफ सेना प्रशासन की कार्रवाई को सही ठहराया। इस सैनिक ने अपने रेजीमेंट के सर्व धर्म स्थल पर जाकर प्रार्थना करने से इनकार कर दिया था। इस रुख पर कायम रहने के कारण सेना से उसे बर्खास्त कर दिया गया, जिस निर्णय को उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उसकी तरफ से दलील दी गई कि ईसाई धर्म एक ईश्वर की धारणा में आस्था में रखता है, इसलिए जहां विभिन्न महजबों के धर्मों के पूजा स्थल हों, किसी ईसाई को वहां प्रार्थना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने इस दलील को ठुकरा दिया। कहा कि इस सैनिक ने सेना के अनुशासन, समरसता और अपने साथियों के लिए सम्मान की भावना के ऊपर ‘धार्मिक अहंकार’ को प्राथमिकता दी। स्पष्टतः किसी बहु-धर्मीय समाज में ऐसे रुख के साथ समन्वय नहीं बनाया जा सकता। भारतीय सेना ने सर्व धर्म प्रार्थना की परंपरा अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र के अनुरूप स्थापित की है। जो भी भारतीय सेना में भर्ती होता है, उसे इस व्यवहार संहिता का पालन अवश्य करना चाहिए। अपेक्षित है कि ऐसे सिद्धांतों पर ना सिर्फ जोर दिया जाए, बल्कि उस पर दृढ़ता से अमल भी किया जाए- चाहे मामला किसी भी धर्मावंबी से जुड़ा हुआ हो।

असल में इस सिद्धांत पर अमल की आवश्यकता सिर्फ सेना में ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हाल के दशकों में भारत में ऐसे उदात्त सिद्धांतों को कई हलकों से चुनौती दी गई है, जिससे समाज में सद्भाव का माहौल बिगड़ा है। इससे सेना जैसी संस्थाओं को अप्रभावित रखने की चुनौती आज और बढ़ी हुई महसूस होती है। उसके बीच सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक भावना के अनुरूप सर्व-धर्म सद्भाव के महत्त्व को रेखांकित करते हुए प्रशंसनीय निर्णय दिया है। इस निर्णय की भावना को बेहिचक एवं बिना किसी भेदभाव के अंगीकार किया जाना चाहिए।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *