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31-07-2025 Vol 19

मुक्त व्यापार की विडंबना

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आरसीईपी पर दस्तखत ना करने की एक वजह न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया से आयात के कारण भारतीय दुग्ध उद्योग के लिए संभावित खतरे को बताया गया था। अब भारत ने न्यूजीलैंड से ही एफटीए वार्ता शुरू कर दी है। (modi free trade)

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बाद अब भारत ने न्यूजीलैंड से मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए बातचीत शुरू की है। छह साल पहले के घटनाक्रम को याद करें, तो न्यूजीलैंड से अब ऐसे करार की बनी जरूरत को एक विडंबना ही कहा जाएगा।

गौरतलब है, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते के लिए वार्ता में भारत आरंभ से शामिल था। लेकिन 2019 में जब दस्तखत की बारी आई, तो ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा ना करने का फैसला किया था।

तब इसकी एक वजह चीनी उत्पादों से भारतीय बाजारों के पट जाने की आशंका को बताया गया था। (modi free trade)

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यह पेचीदा सवाल (modi free trade)

दूसरे कारण के तौर पर न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया से संभावित आयात से भारतीय दुग्ध उद्योग के खतरे में पड़ने की सूरत का जिक्र हुआ था। वो दोनों दुग्ध उत्पाद में अग्रणी देश हैं। आरसीईपी में शामिल ना होने के कारण भारत चीनी उत्पादों से किस हद तक बचा पाया, यह अलग, लेकिन गंभीर पड़ताल का विषय है।

बहरहाल, अब न्यूजीलैंड से भारत ने एफटीए के लिए वार्ता शुरू कर दी है। न्यूजीलैंड में औसत आयात शुल्क 2.3 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह औसतन 17.8 फीसदी है। ऐसे में साफ है कि किस देश को आयात शुल्क में अधिक रियायत देनी होगी।

ऐसे में न्यूजीलैंड के अपेक्षाकृत सस्ते दुग्ध उत्पादों से भारतीय दुग्ध उत्पादकों को कैसे संरक्षण दिया जाएगा, यह पेचीदा सवाल है। (modi free trade)

फिर न्यूजीलैंड आरसीईपी का सदस्य है। ऐसे में वहां चीनी उत्पादों के हुए आयात को सेकंडरी निर्यात के तौर पर भारत भेजा गया, तो उससे बचाव के लिए भारत बाड़ कैसे लगा पाएगा? न्यूजीलैंड मांस और शराब का भी बड़ा निर्यातक है।

तो उसके लिए भारतीय बाजार के खुलने की संभावना बनेगी। जब ऋषि सुनक के कार्यकाल में भारत-ब्रिटेन के बीच एफटीए पर बात आगे नहीं बढ़ी, तो एक तत्कालीन ब्रिटिश मंत्री ने कहा था कि भारत करार के तहत सिर्फ फायदा चाहता है, रियायत नहीं देना चाहता।

स्पष्टतः इस नजरिए के साथ एफटीए नहीं हो सकता। मगर मुद्दा है कि भारत का ऐसा नजरिया क्यों है? भारत को अपने उत्पादों के प्रतिस्पर्धा में टिकने का भरोसा क्यों नहीं है? (modi free trade)

NI Editorial

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