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चीन का समाधान नहीं!

चीन से कारोबार में दिक्कत यह है कि इसमें बढ़ोतरी के साथ ही भारत का व्यापार घाटा और बढ़ जाता है। 2023-24 में भारत ने 101.7 बिलियन डॉलर का चीन से आयात किया। निर्यात सिर्फ लगभग 17 बिलियन डॉलर का ही रहा।

वित्त वर्ष 2023-24 में फिर चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार बन गया। इसके पहले के दो वित्त वर्षों में यह दर्जा अमेरिका को हासिल हुआ था। बीते साल भारत और चीन के बीच 118.4 बिलियन डॉलर का कारोबार हुआ, जबकि अमेरिका के साथ आयात-निर्यात 118.3 बिलियन डॉलर तक ही पहुंच पाया। चीन के साथ कारोबार के साथ दिक्कत यह है कि इसमें बढ़ोतरी के साथ ही भारत का व्यापार घाटा और बढ़ जाता है। गुजरे वित्त साल में भारत ने 101.7 बिलियन डॉलर का चीन से आयात किया। यानी निर्यात सिर्फ लगभग 17 बिलियन डॉलर का ही रहा। जबकि अमेरिका के साथ कारोबार में भारत फायदे में रहता है। 2023-24 में भारत ने अमेरिका को 77.5 बिलियन डॉलर का निर्यात किया, जबकि आयात 40.8 बिलियन डॉलर का रहा। इस तरह भारत को तकरीबन 37 बिलियन डॉलर का व्यापार लाभ हुआ।

ये आंकड़े आर्थिक थिंक टैंक- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के विश्लेषण से सामने आए हैं, जिसने 2018-19 से 2023-24 तक के भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आकलन पेश किया है। 2020 में गलवान घाटी की वारदात के बाद से भारत में चीन पर व्यापार निर्भरता घटाने के मजबूत इरादे जताए गए हैँ। साथ ही इस दौर में आत्म-निर्भर भारत की नीति अपनाई गई है। इसलिए यह सवाल गंभीर रूप ले लेता है कि आखिर इन सबसे हासिल क्या हो रहा है? अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में चीन पर निर्भरता खत्म होने के मामूली संकेत भी क्यों नहीं मिल रहे हैं? इन प्रश्नों पर गंभीर विचार-विमर्श की जरूरत है। उद्योग और उत्पादन के क्षेत्र में बड़े कारखाने लगा देना भर काफी नहीं होता।

बल्कि उसके साथ सहयोगी उत्पादों की एक समग्र आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता पड़ती है। उसके साथ कुशल और योग्य कर्मियों की पर्याप्त उपलब्धता भी होनी चाहिए। इन बिंदुओं पर भारत में किसी प्रगति के संकेत नहीं हैं। पीएलआई जैसी योजनाओं से जो फैक्टरियां लगाई गई हैं, वे भी अपने उत्पादन के पाट-पुर्जों के लिए चीन पर निर्भर बनी हुई हैँ। इसीलिए यह विडंबना हमारे सामने है कि भारत का निर्यात बढ़ने के साथ-साथ चीन से उसका आयात भी बढ़ जाता है।

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