मोदी ने कहा कि अब से सबको यह मंत्र अपने जीवन में उतार लेना चाहिए कि हम जो भी खरीदें मेड इन इंडिया खरीदें। दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर बोर्ड लगा दें कि वे सिर्फ स्वदेशी चीजें बेचते हैँ।
विडंबना ही है कि अभी कुछ महीने पहले तक जब नरेंद्र मोदी भारतवासियों से स्वदेशी अपनाने की अपील करते थे, तब समझा जाता था कि उनके निशाने पर चीन है। मगर अब उन्होंने ये आह्वान किया है, तो समझा गया है कि उन्होंने अमेरिका को निशाने पर रखा है। उनकी इस टिप्पणी पर गौर किया गया है कि ‘आज की दुनिया में हर कोई अपने आर्थिक हितों के आधार पर राजनीति कर रहा है।’ वैसे, संभवतः ऐसा दौर हमेशा ही था, मगर अब भारत को अमेरिका का ऐसा व्यवहार चुभ रहा है, तो इसलिए कि हाल के दशकों में भारत की तमाम सरकारों ने अमेरिका से जुड़ कर भारत का हित साधने की सोच अपनाए रखी थी।
मोदी सरकार तो इस और इतना आगे निकल गई कि वह अमेरिका से भारत के सामरिक और रणनीतिक हितों को भी जोड़ती दिखी। मगर अब अमेरिका की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। तो फिर से स्वदेशी का जिक्र होने लगा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि त्योहारों का सीजन आ रहा है, जो उत्सव का मौका है। अब हमें इसे आत्म-निर्भरता का उत्सव बनाने की जरूरत है। मोदी ने कहा कि अब से सबको यह मंत्र अपने जीवन में उतार लेना चाहिए कि हम जो भी खरीदें मेड इन इंडिया खरीदें। दुकानदार अपनी दुकानों के बाहर बोर्ड लगा दें कि वे सिर्फ स्वदेशी चीजें बेचते हैँ।
“महात्मा गांधी की धरती से” प्रधानमंत्री ने कहा- ‘मैं कारोबारियों को प्रोत्साहित करना चाहता हूं कि वे दूसरे देशों से आई चीजें ना बेचें।’ मगर पेच यह है कि मोदी की ऐसी बातों के साथ लोगों को उनकी सरकार की नीतियां याद आती हैं, जिनमें अब तक विदेशी को हर तरह की तरजीह रही है। अभी भी सरकार अनेक मुक्त व्यापार समझौतों की राह पर आगे बढ़ रही है। ऐसे में स्वदेशी का सारा भार आम कारोबारियों या उपभोक्ता पर डाल देना एक तरह का दोहरापन मालूम पड़ता है। यहां यह अवश्य याद रखना चाहिए कि गांधीजी जब स्वदेशी की बात करते थे, तो अपने जीवन में उसे अपनाने के साथ-साथ समग्र स्वदेशी अर्थव्यवस्था की अवधारणा भी लोगों के सामने रखते थे!