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भारतः अरबपति राज का उदय

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साल 1980 के आसपास विषमता अपने सबसे निचले स्तर पर थी। लेकिन उसके बाद ट्रेंड फिर पलट गया। 2015 के बाद से गैर-बराबरी में पहले से भी ज्यादा तेज गति से बढ़ोतरी हुई है। स्पष्टतः आज जो सूरत है, वह किसी संयोग की वजह से नहीं है।

आम चुनाव से ठीक पहले पेरिस स्थित मशहूर इनइक्वैलिटी लैब ने भारत में तेजी से बढ़ी आय एवं धन की गैर-बराबरी के बारे में देशवासियों को आगाह किया है। विषमता को वैश्विक चर्चा के एजेंडे पर लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अर्थशास्त्रियों के इस मंच ने अपनी ताजा रिपोर्ट का शीर्षक ‘अरबपति राज का उदय’ रखा है। इसमें बताया गया है कि दुनिया के जिन देशों में सबसे ज्यादा आर्थिक गैर-बराबरी बढ़ी है, उनमें भारत प्रमुख है।

भारत की कुल आमदनी में आज आबादी के टॉप एक फीसदी आबादी का हिस्सा 22.6 प्रतिशत हो गया है, जबकि धन में इस छोटे समूह की हिस्सेदारी 40.1 प्रतिशत हो गई है। भारत में जब से आय कर के आंकड़े रखे जाने लगे, तब से टॉप एक फीसदी के पास इतनी आय और धन कभी इकट्ठा नहीं हुए थे। दूसरी तरफ निचली आधी आबादी का कुल आय में हिस्सा महज 15 प्रतिशत रह गया है। अर्थशास्त्रियों थॉमस पिकेटी और लुकस चांसेल ने 2015 में भारत के बारे में एक शोध पत्र प्रकाशित किया था।

अपने गहन अध्ययन के आधार पर उसमें उन्होंने बताया था कि भारत में सबसे ज्यादा गैर-बराबरी आजादी के ठीक पहले थी। लेकिन आजादी के बाद जो नीतियां अपनाई गईं, उनकी वजह से विषमता में गिरावट आई। 1980 के आसपास विषमता अपने सबसे निचले स्तर पर थी। लेकिन उसके बाद ट्रेंड फिर पलट गया। अब लुकस चांसेल ने बताया है कि 2015 के बाद गैर-बराबरी में पहले से भी ज्यादा तेज गति से बढ़ोतरी हुई है।

तो यह साफ समझा जा सकता है कि आज जो परिणाम हमारे सामने है, वह किसी संयोग की वजह से नहीं है। बल्कि वह अपनाई गई आर्थिक नीतियों का परिणाम है। परिणाम यह है कि देश का असल शासन स्वरूप अब अरबपति राज का बन गया है। चांसेल ने ध्यान दिलाया है कि भारत के सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों में एक प्रकार की अस्पष्टता है, इसलिए संभव है कि असल सूरत उससे भी भयावह हो, जिसका अनुमान वे लगा पाए हैं। इसलिए अब इस सूरत, इसके कारणों और इसके समाधान पर सोच-विचार करना अत्यंत आवश्यक हो गया है।

By NI Editorial

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