Poverty

  • भारतः अरबपति राज का उदय

    साल 1980 के आसपास विषमता अपने सबसे निचले स्तर पर थी। लेकिन उसके बाद ट्रेंड फिर पलट गया। 2015 के बाद से गैर-बराबरी में पहले से भी ज्यादा तेज गति से बढ़ोतरी हुई है। स्पष्टतः आज जो सूरत है, वह किसी संयोग की वजह से नहीं है। आम चुनाव से ठीक पहले पेरिस स्थित मशहूर इनइक्वैलिटी लैब ने भारत में तेजी से बढ़ी आय एवं धन की गैर-बराबरी के बारे में देशवासियों को आगाह किया है। विषमता को वैश्विक चर्चा के एजेंडे पर लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अर्थशास्त्रियों के इस मंच ने अपनी ताजा रिपोर्ट का शीर्षक ‘अरबपति...

  • हममें इंसानियत खत्म होती जा रही!

    घटना कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की है जहां पर मेट्रो के सुरक्षाकर्मी ने एक बुजुर्ग यात्री को इसलिए ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया क्योंकि उस बुजुर्ग किसान के कपड़े गंदे और पुराने दिखाई दे रहे थे। जब मेट्रो के सुरक्षाकर्मी की इस हरकत पर सह-यात्रियों ने आपत्ति जताई तो वहाँ पर हंगामा खड़ा हो गया और देखते ही देखते इस पूरे प्रकरण का वीडियो वायरल हुआ। मेट्रो सुरक्षाकर्मी की इस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत ने औपनिवेशिक काल की याद दिला कर फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि भारत के हम लोग ऐसे असंवेदनशील होते हुए कैसे हैं? humanity अंग्रेजों के शासन...

  • यह खुशहाली तो नहीं

    साल 2011-12 में सर्वेक्षण के लिए अपनाई गई विधि को 2022-23 के सर्वे में बदल दिया गया। इसलिए ताजा रिपोर्ट के बारे में यह तो कहा जाएगा कि यह आज की हकीकत को बताती है, मगर 2011-12 से उसकी तुलना करना तार्किक नहीं होगा। Indias household consumption  घरेलू उपभोग खर्च सर्वे की 2022-23 की रिपोर्ट से प्रथम दृष्टया यह धारणा बनती है कि 2011-12 की तुलना में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आम उपभोग खर्च बढ़ा है। लेकिन ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि 2011-12 में सर्वेक्षण के लिए अपनाई गई विधि को 2022-23 में हुए सर्वे में...

  • चुनावी मकसद से चर्चा?

    बहुआयामी गरीबी सूचकांक को एक पूरक पैमाना ही माना गया है। जबकि कैलोरी उपभोग की क्षमता एवं प्रति दिन खर्च क्षमता दुनिया में व्यापक रूप से मान्य कसौटियां हैं, जिन्हें अब भारत में सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया है। नीति आयोग ने कई महीने जारी अपनी रिपोर्ट को संभवतः फिर से चर्चा में लाने के लिए ताजा एक डिस्कसन पेपर तैयार किया है। इसे- मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इन इंडिया सिंस 2005-06 (भारत में 2005-06 के बाद से बहुआयामी गरीबी) नाम से जारी किया गया है। इसमें पहले वाली रिपोर्ट के इस निष्कर्ष को दोहराया गया है कि 2013-14 से 2022-23...

  • भारत की दो हकीकतें

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • पांच वर्ष में 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी मुक्त

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • भारतः सब कैसा एक्स्ट्रीम!

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • कार्यबल में घटती महिलाएं

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  • गरीबी, बेरोजगारी बरदाश्त करने की अंतहीन सीमा!

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • ताजा तीन इंडेक्स का भारत सत्य

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • अब प्रश्न औचित्य का

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  • भारत में गरीबी-अमीरी की खाई

    भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप वर्ल्ड की ताजा रिपोर्ट से भारत के इस अंतर्विरोध पर रोशनी पड़ी है। भारतीय समाज की इस समय दो हकीकतें हैं। बहुसंख्यक आबादी की जिंदगी अधिक संघर्षपूर्ण होती गई है, मगर उसी समय लोगों में भविष्य बेहतर होने का भरोसा मजबूत होता गया है। भोजन और आवास के लिए रोजमर्रा का संघर्ष करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सरकार और संस्थाओं में लोगों का यकीन मजबूत होता गया है। गैलप...

  • आरक्षण का आधार सिर्फ गरीबी हो

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  • 140-170 करोड़ लोगों में कमाने वाले और खाने वाले!

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  • बेरोजगार नौजवानों से बरबादी के खतरे!

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  • क्या मजदूर सप्लाई करने की फैक्टरी बनेगा?

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  • रोइए जार जार क्या, कीजिए हाय हाय क्यों

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