Poverty

  • मध्य प्रदेश से 2028 तक गरीबी समाप्त करने का सरकार ने लिया संकल्प: मोहन यादव

    भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव (Mohan Yadav) ने वर्ष 2028 तक गरीबी समाप्त करने का संकल्प लिया है। इसके लिए सरकार ने एक रोडमैप भी तैयार किया है, जिस पर अमल किया जाएगा। राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि राज्य में वर्ष 2028 तक गरीबी समाप्त करने का संकल्प लिया गया है। इसके लिए गरीब कल्याण मिशन-2028 (Garib Kalyan Mission-2028) का क्रियान्वयन किया जाएगा। इस मिशन का उद्देश्य राज्य में जितने भी गरीब और वंचित लोग...

  • गुलाबी तस्वीर का सच

    Unemployment poverty: आमदनी वाले आबादी के सर्वोच्च हिस्से के पास धन के संग्रहण और दूसरी ओर सबसे गरीब दस फीसदी आबादी के जारी संघर्ष का संदेश है कि नई नीतियों की जरूरत है। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता है। also read: स्टालिन के काम आ रहे हैं राज्यपाल रवि पिछले हफ्ते जारी दो सरकारी रिपोर्टों में देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर बुनी गई। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में रोजगार की स्थिति बेहतर होने का दावा किया गया। स्पष्टतः ये दावा रोजगार की नई गढ़ी गई परिभाषा पर आधारित है, जिसमें घरेलू कारोबार में...

  • गरीबी के मारे भारतीय

    poverty: सार यह कि भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी का मारा है। जबकि गरीबी मापने का विश्व बैंक का पैमाना खुद आलोचनाओं के केंद्र में रहा है। अनेक विशेषज्ञों ने इसे अति न्यूनतम पैमाना बताया है। also read: बहराइच हत्याकांड के दो आरोपी पुलिस मुठभेड़ में घायल भारत पर चरम गरीबी का पैमाना 6.85 डॉलर विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में माना है कि 2020 (यानी कोरोना काल) के बाद से भारत सहित दुनिया में गरीबी घटने की प्रक्रिया ठहर गई है। बैंक का ताजा आकलन है कि भारत में इस समय 12 करोड़ 90 लाख लोग...

  • ग्लोबल रैंकिंग्स में भारत

    मोदी सरकार को विश्वसनीय आंकड़ों से खास गुरेज है। दशकीय जनगणना तक उसकी प्राथमिकता में नहीं है, तो आंकड़ों के प्रति उसके अपमान भाव को सहज ही समझा जा सकता है। जबकि ऐसे आंकड़े सामने हों, तो रैंकिंग्स का सच-झूठ खुद जाहिर हो जाएगा।   पिछले हफ्ते ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ। हर साल की तरह भारत में यह राजनीतिक विवाद का मुद्दा बना। हालांकि इस बार भारत की रैंकिंग में कुछ सुधार दिखा- भारत 111वें से 105वें स्थान पर चला आया- मगर यह रैंक भी बहुत नीचे है, इसलिए यह इंडेक्स नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने का फिर से औजार...

  • अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ है

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • हाल इतना बदहाल है!

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • गलत दवा से इलाज

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • चांद लाने जैसी बात

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • महंगाई कम दिखाने का नायाब नया तरीका

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • भारतः अरबपति राज का उदय

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • हममें इंसानियत खत्म होती जा रही!

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • यह खुशहाली तो नहीं

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  • चुनावी मकसद से चर्चा?

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • भारत की दो हकीकतें

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • पांच वर्ष में 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी मुक्त

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  • भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • भारतः सब कैसा एक्स्ट्रीम!

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  • कार्यबल में घटती महिलाएं

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  • गरीबी, बेरोजगारी बरदाश्त करने की अंतहीन सीमा!

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

  • ताजा तीन इंडेक्स का भारत सत्य

    देश की अर्थव्यवस्था में कुछ बुनियादी गड़बड़ी है और इसे समझने के लिए बड़ा अर्थशास्त्री होने की जरुरत नहीं है। सिर्फ हाल की कुछ खबरों को एक साथ रख कर देखा जाए तब भी यह अंदाजा हो जाता है कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि मुनाफे का ढोल पीट रहे तमाम बैंकों के परेशान होने की खबर आए और शेयर बाजार में उछाल जारी रहे। या चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर अनुमान से कम रहे और रिजर्व बैंक के गवर्नर को कहना पड़े कि...

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