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08-07-2025 Vol 19

साक्ष्य का असर होगा

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आशा है, भारतीय एजेंसियों ने ऐसे साक्ष्य जुटाए होंगे, जिन्हें देख कर महत्त्वपूर्ण राजधानियों को खतरे का बेहतर अहसास होगा। ऐसे साक्ष्य होंगे, तो सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों की यात्रा जरूर कामयाब होगी। “परिस्थितिजन्य” साक्ष्य काफी नहीं होंगे।

ऑरपेशन सिंदूर के सिलसिले में (इजराइल के अपवाद को छोड़ कर) अंतरराष्ट्रीय समर्थन के लगभग पूरे अभाव से भारत के सत्ता प्रतिष्ठान में अगर चिंता पैदा हुई है, तो इसे सकारात्मक घटना माना जाएगा। चिंता का संकेत अनेक महत्त्वपूर्ण देशों में सात सर्वदलीय भारतीय प्रतिनिधिमंडलों को भेजने का फैसला है। ये दल 23 मई से दस दिन की यात्रा पर जाएंगे। बताया गया है कि प्रतिनिधिमंडल उन देशों को बताएंगे कि आतंकवाद का मुकाबला करने के मुद्दे पर भारत एकजुट है। ऑपरेशन सिंदूर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का बदला लेने के लिए किया गया।

उस आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फोर्स नाम के दहशतगर्द संगठन ने ली थी, जिसके बारे में भारत ने कहा कि वह असल में कुख्यात लश्कर-ए-तैयबा ही है। भारत ने यह भी कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान लश्कर और एक अन्य दहशतगर्द संगठन जैश-ए- मोहम्मद के ठिकानों पर निशाने साधे गए। भारत का मकसद बस इतना ही था।

चूंकि पाकिस्तान ने भारतीय कार्रवाई का जवाब दिया, इसलिए लड़ाई का दायरा बढ़ गया। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की जिम्मेदारी भारत के इस पक्ष को बता कर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना है। यहां उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान आतंकवाद का अड्डा रहा है, यह कोई नया तथ्य नहीं है। यह बात तो हाल में खुद वहीं के रक्षा मंत्री ने एक ब्रिटिश टीवी को दिए इंटरव्यू में मानी, हालांकि उन्होंने कहा कि पाकिस्तान यह “गंदा काम” अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों के लिए कर रहा था।

ऑपरेशन सिंदूर को समर्थन की कोशिश

2008 के मुंबई हमलों के बाद खुद भारत ने पाकिस्तानी हाथ के ठोस सबूत दुनिया के सामने रखे थे। नतीजा पाकिस्तान पर शिकंजा कसने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके अलगाव के रूप में सामने आया। इसलिए आवश्यक यह है कि इस बार भी भारत वैसे ही अकाट्य साक्ष्य दुनिया के सामने रखे।

वैश्विक प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि “परिस्थितिजन्य” साक्ष्य काफी नहीं होंगे। आशा है, इस बीच भारतीय एजेंसियों ने ऐसे साक्ष्य जुटाए होंगे, जिन्हें देख कर महत्त्वपूर्ण राजधानियों को पाकिस्तान जनित खतरे का बेहतर आभास होगा। ऐसे साक्ष्य होंगे, तो प्रतिनिधिमंडल की यात्रा जरूर कामयाब होगी। तो असल सवाल अकाट्य साक्ष्यों का है।

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NI Editorial

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