रोजगार के घटते अवसरों एवं अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार ने कुल मिलाकर ऋण-ग्रस्तता की स्थिति को संगीन बना दिया है। इसके बीच निजी ऋणों की वापसी की स्थितियां प्रतिकूल हो गई हैं। आरबीआई की रिपोर्ट से भी इसके संकेत मिले हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की छमाही वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट मौजूद वित्तीय अस्थिरताओं के संकेत देती है। इस रिपोर्ट के साथ ही एक अंग्रेजी अखबार में आरटीआई के जरिए हासिल छपे आंकड़ों को देखें, तो यह संकेत ठोस रूप में मौजूद दिखने लगता है। आरबीआई के मुताबिक कुल कर्ज में सितंबर 2024 तक नॉन परफॉर्मिंग ऋण (एनपीए) का अनुपात सिर्फ 2.6 फीसदी था, लेकिन मार्च 2026 तक इसके तीन प्रतिशत तक पहुंच जाने का अंदेशा है। बहरहाल, रिजर्व बैंक के एनपीए में माफ कर्जों को शामिल नहीं किया जाता है। गुजरे वर्षों में कॉरपोरेट्स के लिए ऋण माफी में भारी बढ़ोतरी हुई है।
इस तरह एनपीए का बहुत बड़ा हिस्सा इस श्रेणी से हट गया है। खुद आरबीआई की रिपोर्ट में ऋण माफी में तीव्र वृद्धि पर चिंता जताई गई है। फिर रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आर्थिक स्थितियां अनुमान से ज्यादा बिगड़ीं, तो एनपीए का अनुपात बढ़ कर 5 से 5.3 प्रतिशत तक जा सकता है। रिजर्व बैंक शिक्षा, मकान जैसे निजी ऋणों को ना चुकाने के मामलों में वृद्धि को लेकर भी चिंतित है। आम लोगों की घरेलू वित्तीय स्थिति के लगातार बिगड़ने के कारण ऐसे कर्जों पर डिफॉल्ट की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। आरटीआई से सामने आई सूचना के मुताबिक गोल्ड लोन पर डिफॉल्ट करने के मामले जून 2024 तक 30 प्रतिशत तक जा चुके थे। इस तरह बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से स्वर्ण गिरवी रख कर लिए गए कर्जों में 6,696 करोड़ रुपये समय पर नहीं चुकाए गए थे।
एक साल पहले ऐसे मामलों की संख्या 14 प्रतिशत ही थी। आरटीआई से हासिल सूचना से जाहिर है कि ऋण लेने वाले परिवारों ने जिस भरोसे सोना गिरवी रखा था, वह सही साबित नहीं हुआ। रोजगार के घटते अवसरों एवं अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार ने कुल मिलाकर ऋण-ग्रस्तता की स्थिति को संगीन बना दिया है। इसके बीच निजी ऋणों की वापसी की स्थितियां प्रतिकूल होती जा रही हैं। सोने की कीमत में उछाल के कारण भी गोल्ड लोन को चुकाना कठिन हो गया है। तो कुल मिला कर वित्तीय स्थितियां अस्थिर होती हुई दिख रही हैं।