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आशंकाओं से घिरा अमेरिका

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आशंका गहरी है कि कल सुबह जो भी नतीजा आएगा, उसे पराजित पक्ष आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। खासकर ट्रंप अभियान की तरफ से चुनावी धांधलियों का जैसा नैरेटिव फैलाया गया है, उसके बीच अविश्वास एवं टकराव बढ़ना लाजिमी माना जा रहा है।

बेहद ध्रुवीकृत और कड़वाहट भरे माहौल में चले चुनाव अभियान के बीच कमला हैरिस और डॉनल्ड ट्रंप में सिर्फ एक वाक्य पर सहमति रही है। वो यह कि वो नहीं जीते, तो देश का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। दोनों का दावा का सार है- ‘अमेरिका एक मोड़ पर है, और मेरी हार हुई, तो देश अभी जैसा नहीं रह जाएगा।’ इसी भावना से प्रेरित होकर दोनों पक्षों से बार-बार कहा गया कि ‘पांच नवंबर हमारे देश के इतिहास का सबसे अहम दिन है।’ आज वह दिन आ गया है। आज अमेरिका के लगभग 22 करोड़ मतदाता अपना नया राष्ट्रपति चुनने के लिए मतदान करेंगे। आशंका गहरी है कि कल सुबह जो भी नतीजा आएगा, उसे पराजित पक्ष आसानी से स्वीकार नहीं करेगा।

खासकर ट्रंप समर्थकों की तरफ से चुनावी धांधलियों का नैरेटिव देश में जिस पैमाने पर फैलाया गया है और काउंटी से राज्य स्तरों तक चुनाव नतीजों को कानूनी चुनौती देने की जैसी तैयारी की गई है, उसके बीच देश में अविश्वास, टकराव और ध्रुवीकरण का और बढ़ना लाजिमी माना जा रहा है। वैसे तो 2016 के बाद से देश ऐसे ही राजनीतिक वातावरण में है, लेकिन इस बार दोनों दलों- डेमोक्रेटिक और रिपब्लकिन- की तरफ से जैसा नकारात्मक चुनाव अभियान चलाया गया, उसने इसे खतरनाक सीमा तक पहुंचा दिया है। दूसरे पक्ष को देश के लिए खतरा बताते हुए चले इस अभियान में किसी मौके पर सकारात्मक बहस की गुंजाइश नहीं बनी।

20वीं सदी के मध्य दशकों में उम्मीदवारों के बीच बहस से देश और विदेश के लिए उनका एजेंडा सामने आता था। मगर अब या तो बहस होती नहीं है, या बहस तू तू-मैं मैं, बल्कि सियासी गाली-गलौच्च में तब्दील हो जाती है। आलोचकों के मुताबिक यह स्थिति दोनों दलों के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि उनके पास आज के गहराते आर्थिक संकट से अमेरिका को निकालने का कोई व्यावहारिक कार्यक्रम नहीं है। जब ऐसी स्थिति किसी भी देश में उपस्थित हो, तो विमर्श का स्तर गिरना, आशंकाएं, और सामाजिक टकराव उसकी स्वाभाविक परिणति हो जाती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि अमेरिका आज उसी मुकाम पर पहुंच लगा मालूम पड़ता है।

By NI Editorial

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