Thursday

22-05-2025 Vol 19

पर्यावरण के हक में

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जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई ठोस आदेश दिए हैँ। इस दौर में, जब पर्यावरण एवं वन्य जीवन संबंधी चिंताएं ताक पर रख दी गई हैं, सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेशों को एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप समझा जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने जिम कॉर्बेट पार्क में टाइगर सफारी से वन और वन्य जीवन की रक्षा के लिए ठोस पहल की है। कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को एक विशेष समिति बनाने का निर्देश दिया है, जो इस बारे में उचित सलाह देगी। समिति यह बताएगी कि क्या टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्रों में टाइगर सफारी की इजाजत दी जानी चाहिए। कोर्ट ने उत्तराखंड में स्थित जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर इमारतें बनाने के लिए काटे गए छह हजार पेड़ों के मामले को अति गंभीरता से लिया। उसने इसे राजनेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत का एक ठोस उदाहरण बताया।

कोर्ट ने यह कड़ी टिप्पणी की कि ऐसी मिलीभगत के जरिए अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जा रही है। अदालत ने कॉर्बेट में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई पर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण योजना के तहत संरक्षित इलाकों से अलग क्षेत्रों में भी वन्यजीव संरक्षण जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्र और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच पर्यावरण कार्यकर्ता और वकील गौरव बंसल की याचिका पर सुनवाई कर रही है। बंसल ने राष्ट्रीय उद्यान के अंदर बाघ सफारी और पिंजरे में बंद जानवरों वाले चिड़ियाघर बनाने के उत्तराखंड सरकार के प्रस्ताव को चुनौती दी है।

कोर्ट ने साफ किया कि फिलहाल जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के परिधीय और बफर जोन में ही बाघ सफारी की अनुमति दी जाएगी। इसके पहले उत्तराखंड सरकार ने अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए मुख्य क्षेत्रों में भी सफारी की अनुमति दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे जंगल को भारी नुकसान हुआ है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई के कारण हुए नुकसान की फिलहाल सीबीआई जांच कर रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। बेशक, इस दौर में, जब पर्यावरण एवं वन्य जीवन संबंधी चिंताएं ताक पर रख दी गई हैं, सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेशों को एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप समझा जाएगा।

NI Editorial

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