nayaindia Madhya Pradesh assembly elections amit shah kamal nath 'नाथ' को 'आला' पर बैठाएंगे 'शाह'
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‘नाथ’ को ’आला’ पर बैठाएंगे ’शाह’

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भाजपा के चुनावी चाणक्य अमित शाह के तरकश से सियासी तीर एक-एक करके बाहर निकलने का समय शायद आ गया। मध्य प्रदेश भाजपा को जब उम्मीदवार जिताऊ के लिए किसी फार्मूले और क्राइटेरिया का इंतजार। ऐसे में कमलनाथ की जिद 6 माह बाद मुख्यमंत्री बनकर दिखाएंगे। बाकायदा उल्टी गिनती भी इतने महीने रह गए। भाजपा नेतृत्व के कान खड़े होना लाज़मी। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ अपनी पार्टी कांग्रेस को एक जुट कर उसमें नया जोश भर पाए। उससे पहले भाजपा ने कांग्रेस के नाथ कमलनाथ को आले कहे या आरे पर बैठाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया।

बुंदेलखंड में जब बच्चा जिद्दी हो जाता और उसकी मांग लगातार बढ़ती जाती। तब उसे गांव में परिवार के लोग आला (आरा) पर बिठा देते हैं, आला यानी दीवार पर थोड़ा ऊपर जहां दीपक भी रख कर जलाया जाता। यहाँ छोटा-मोटा सामान रख दिया जाता। जहां बच्चा आसानी से पहुंच कर कोई सामान नहीं उठा पाए। लेकिन यदि उसे वहां बैठा दिया जाए तो वह आसानी से नीचे भी नहीं उतर सकता। कुल मिलाकर समझाइश जब काम ना आए तो जिद्दी बच्चे का ध्यान डायवर्ट कर दिया जाए। जिससे उसकी अपनी मांग प्रभावित हो जाए या फिर वह उसे भूलने को मजबूर हो जाए। उसका पूरा ध्यान सिर्फ आला से नीचे उतरने पर केंद्रित होकर रह जाए। किसी तरह वह नीचे आ जाए।

यह बात खासतौर से बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में जिद्दी बच्चे के लिए। लेकिन यहां बिल्कुल उलट कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेता कमलनाथ के खिलाफ भाजपा की रणनीति कुछ इसी लाइन पर आगे बढ़ते हुए देखी जा सकती है। कहने वाले के सकते हैं कि चुनावी बिसात पर कमलनाथ के खिलाफ शाह का चक्रव्यूह। संभवत पहले चरण में बिना बोले बहुत कुछ समझाने और रणनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश से से जोड़कर देखा जा सकता।

कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा वह अमृत कुंड जो कमलनाथ और समूची पार्टी को ताकत देता रहा। फिर भी लगता कमलनाथ व्यक्तिगत तौर पर भाजपा हाईकमान के राडार पर आ चुके। जो चुनाव 2023 में कांग्रेस का चेहरा। जिन्हें हाईकमान द्वारा जल्द से जल्द सीएम इन वेटिंग के ऐलान का इंतजार। पार्टी का मध्य प्रदेश में स्वीकार्य और धमक रखने वाला नेतृत्वकर्ता। जो अपनी जीत को लेकर आत्मविश्वास से लवरेज। जिसे अपने सर्वे और अपनी टीम पर पूरा भरोसा। जिसे विश्वास है कि शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा अंततः कांग्रेश और कमलनाथ को ही मिलेगा। जिसने तख्तापलट की गलती से सीख लेकर जिद ठानी कि एक बार फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेना ही है।

कमलनाथ जो कांग्रेस की ताकत और मध्यप्रदेश में हाईकमान की फिलहाल अंतिम आस। ऐसे कमलनाथ को उनके अपने गढ़ छिंदवाड़ा में उलझाए रखने की पटकथा सामने आ सकती है। जिसमें कमलनाथ पर दबाव होगा कि वह अपनी साख और अपने पुत्र नकुल नाथ का राजनीतिक भविष्य बचाएं। नकुल नाथ से पहले कमलनाथ को विधानसभा का चुनाव लड़ना है। इस मुद्दे पर उनका विवादित बयान पहले ही एक नई बहस छिड़ चुका है। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है। कमलनाथ क्या अपनी जिद से कोई समझौता करने को मजबूर होंगे। क्या चुनावी साल में उनकी प्राथमिकताएं बदलेगी, उनका फोकस हटेगा, एजेंडा प्रभावित होगा।

क्या पार्टी नेतृत्व की अपेक्षा के अनुरूप उनकी पहली प्राथमिकता मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता वापसी होगी। या फिर वह अपने पुत्र नकुल नाथ के सियासी भविष्य को लेकर उलझ कर रह जाएंगे। और चाह कर भी पूरी तरह छिंदवाड़ा से बाहर नहीं निकल पाएंगे।छिंदवाड़ा यानी कांग्रेस का अमृत कुंड। अमृत कुंड जिसने कमलनाथ को लगातार कई चुनाव जिता कर ताकत दी। छिंदवाड़ा जहां से अपवाद शुरू सुंदरलाल पटवा की एक जीत को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस ने लोकसभा के लगातार अट्ठारह चुनाव जीते। यानी 1952 से 2019 तक जनसंघ से लेकर भाजपा और दूसरे दलों को कभी भी जीत नसीब नहीं हुई। कमलनाथ 9 बार लोकसभा में पहुंचे तो एक-एक बार अलका नाथ और पुत्र नकुलनाथ भी चुनाव जीते। कांग्रेस का गढ़ कहे या फिर कमलनाथ का छिंदवाड़ा मॉडल हमेशा सुर्खियों में रहा।कमलनाथ को ताकत छिंदवाड़ा के मतदाताओं ने दी जिसने दिल्ली में उन्हें स्थापित किया। छिंदवाड़ा कांग्रेस के अंदर विकास और व्यक्तिगत प्रबंधन के मोर्चे पर मॉडल बनकर सामने आया।

कमलनाथ दिल्ली से मध्यप्रदेश कॉन्ग्रेस के लिए पहले किंग मेकर फिर भोपाल आकर मुख्यमंत्री की शपथ लेने के साथ किंग भी बने। छिंदवाड़ा मॉडल जो चुनाव में मुद्दा बना। छिंदवाड़ा यानी जहाँ कांग्रेस का सभी 7 विधानसभा सीट पर कब्जा। कांग्रेस का कब्जा यानी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित रहा छिंदवाड़ा। नाथ कांग्रेस के इसी गढ़ को भेदने के लिए अमित शाह यहाँ पहुंच रहे। अमित शाह के इस दौरे के बाद भाजपा प्रदेश की सत्ता और संगठन की जिम्मेदारी हो जाएगी कि वह विधानसभा के साथ लोकसभा की सीटों पर कमल खिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दें।

अमित शाह के दौरे और जनसभा को सफल बनाने के लिए शिवराज सिंह चौहान विष्णु दत्त शर्मा हितानंद शर्मा यहां का दौरा कर चुके हैं। प्रभारी मंत्री कमल पटेल ने तो यहां डेरा डाल लिया। अमित शाह के तरकश में यूं तो कई तीर लेकिन कांग्रेस के अमृत कुंड छिंदवाड़ा को सुखाने के लिए 25 अप्रैल को वह खुद आ रहे हैं। जिनके निशाने पर मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ और विरासत की राजनीति का युवा चेहरा सांसद पुत्र नकुल नाथ का होना लाजमी है। 2019 में मध्य प्रदेश से लोकसभा में कांग्रेस मुक्त हो जाती यदि छिंदवाड़ा सीट पर कमल खिल जाता।

मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ ने ऐसा नहीं होने दिया। लेकिन यह भी कड़वा सच है कि नाथ के पुत्र नकुल नाथ करीब 37000 वोटों से चुनाव जीत पाए। इससे पहले कमलनाथ ने इसी सीट से लोकसभा का चुनाव करीब डेढ़ लाख से ज्यादा मतों से जीता था। जीत का आंकड़ा लगातार सिकुड़ने और सीमित होने से भाजपा के लिए नई संभावनाएं जाग रही है। अटल आडवाणी के बाद मोदी- शाह की भाजपा भी नाथ के उस गढ़ को अभी तक नहीं भेद पाई। मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए यूं तो अमित शाह देश की कुल 150 से ज्यादा सीटों पर फोकस बनाए हुए।

जहां भाजपा पिछला चुनाव कांग्रेस से हार गई थी। अब नई रणनीति के तहत मिशन मोदी के लिए वह जीत की संभावना नए सिरे से टटोल रही है। कमलनाथ यानी मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व सांसद ,पूर्व केंद्रीय मंत्री, जिनकी गिनती कांग्रेस के टॉप टेन लीडर में अभी भी होती है। कमलनाथ जिन्होंने 2023 में एक बार फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेने की ठानी है। कमलनाथ सबसे अनुभवी संसदीय ज्ञान के मर्मज्ञ। कारपोरेट जगत में जिनकी पेनी पकड़। अभी भी कांग्रेस में वो अहमियत से ज्यादा अपनी उपयोगिता साबित कर रही है।

बदलती कांग्रेस में कमलनाथ ने फिलहाल खुद को मध्यप्रदेश तक सीमित कर रखा है। रायपुर अधिवेशन में जरूर हाईकमान की लाइन को उन्होंने कार्यकर्ताओं के बीच आगे बढ़ाया। कमलनाथ के राहुल गांधी से ज्यादा अच्छे, प्रगाढ़ संबंध सोनिया गांधी से माने जाते है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद कमलनाथ ने अपनी शर्तों पर राहुल से अपने संबंधों को और मजबूत किया है। कमलनाथ जिनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से व्यक्तिगत रिश्ते बहुत अच्छे चर्चा में रहे। तो चर्चित उद्योगपति अडानी से उनका दोस्ताना भी चर्चा का विषय बनता रहा है।

कमलनाथ के पास मध्य प्रदेश कांग्रेस के सारे सूत्र आज भी मौजूद। एक तरह से राष्ट्रीय नेतृत्व ने मध्य प्रदेश कमलनाथ के भरोसे छोड़ दिया है। कमलनाथ के गढ़ में भाजपा के चाणक्य और चुनावी जीत सुनिश्चित करने वाले महारथी अमित शाह का दौरा सुर्ख़ियों में आ चुका है। जिसकी वजह भी है कि अमित शाह कोई छोटा मोटा मिशन अपने हाथ नहीं लेते।

केंद्रीय गृहमंत्री के छिंदवाड़ा दौरे से 2 दिन पहले 23 मार्च को शिवराज मुख्यमंत्री की चौथी पारी के 3 साल पूरे करने जा रहे।तो 2 दिन बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भाजपा के प्रदेश कार्यालय के नए भवन का भूमि पूजन करेंगे।

इसी दौरान मिशन 2023 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए जेपी नड्डा भाजपा के प्रदेश व्यापी शक्ति केंद्र के कार्यकर्ताओं के साथ बूथ विस्तार अभियान पार्ट 2 में शामिल होंगे। सवाल क्या अमित शाह 2024 लोकसभा चुनाव का एजेंडा आगे बढ़ाते हुए 2023 का रोड मैप सामने ला सकते हैं। आखिर कमलनाथ की घेराबंदी का बड़ा मकसद क्या है। सिर्फ हारी हुई सीट पर भाजपा की जीत सुनिश्चित करना। या इससे आगे 2024 की व्यूह रचना की आड़ में 2023 के कांग्रेस के चेहरे कमलनाथ को बदलती राजनीति और ढलती उम्र में बहुत कुछ सोचने को मजबूर करना। क्या संदेश यह जा पाएगा कि यदि कमलनाथ की इतनी मजबूत घेराबंदी पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता है। तो क्या यही लाइन प्रदेश की राजनीति के कांग्रेस क्यों नेताओं के लिए भी आगे बढ़ाई जाएगी। जहां भाजपा लगातार चुनाव हार रही है।

कांग्रेस के अमृत कुंड छिंदवाड़ा में कमलनाथ के लिए बढ़ेगी चुनौती!
भाजपा जब 2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए 2023 विधानसभा चुनाव के लिए रोड मैप को अंतिम रूप दे रही। तब कांग्रेस में लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कोई हलचल मध्यप्रदेश में नजर नही आती। कमलनाथ के फैसलों और सियासी जमावट में तो बिल्कुल भी नहीं।

मलिकार्जुन खडगे की कांग्रेस का रोड मैप या फिर राहुल गांधी का एक्शन प्लान अभी सामने नहीं आया है। कमलनाथ खुद को मध्य प्रदेश का केंद्र बिंदु बनाए रखने में जरूर सफल हुए। ऐसे में भाजपा की घेराबंदी खासतौर से अमित शाह का छिंदवाड़ा पहुंचना उसकी तात्कालिक और दूरगामी दोनों रणनीति को रेखांकित करता है। जब दिल्ली में राहुल गांधी के खिलाफ मोर्चाबंदी तेज हो गई। तब मध्य प्रदेश में कमलनाथ चुनावी घोषणाओं का पिटारा खोलकर मतदाताओं को लुभाना चाहते हैं। ऐसे में भाजपा एक्शन में नजर आने लगी चाहे। फिर वह शिवराज, विष्णु दत्त, हितानंद शर्मा का छिंदवाड़ा दौरा हो या फिर प्रदेश के नेताओं द्वारा छिंदवाड़ा को कांग्रेस और कमलनाथ का गढ़ मानने से इनकार करना। इसी रणनीति का है। जिसके जरिए वह छिंदवाड़ा से ही पूरे मध्यप्रदेश को बड़ा सियासी संदेश देना चाहेगी।

भाजपा को उम्मीद है छिंदवाड़ा में कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलकर दूसरे संसदीय क्षेत्र ही नहीं विधानसभा क्षेत्रों के लिए भी प्रेशर पॉलिटिक्स का बड़ा माहौल बनाकर संदेश दे सकती। जिन आदिवासियों को रिझाने के लिए कमलनाथ महू दौरा कर शिवराज सरकार को घेर रहे हैं।क्या इन आदिवासियों को छिंदवाड़ा से अमित शाह और शिवराज संदेश देना चाहते हैं। आखिर मध्यप्रदेश में आदिवासियों का असली शुभचिंतक कौन है। सवाल कमलनाथ के लिए बड़ी चुनौती पूरे प्रदेश में कांग्रेस में जोश भरना और टिकट चयन से लेकर जीत सुनिश्चित करवाना। तो उससे बड़ी चुनौती अपने पूर्व संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में कांग्रेस जीत के गिरते ग्राफ से नकुल नाथ को सुरक्षित बाहर निकालना। नकुल नाथ लोकसभा का एक चुनाव जीत चुके हैं। यहां उससे पहले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हो जाएंगे। उस वक्त कमलनाथ मुख्यमंत्री की भूमिका में नजर आना चाहेंगे।

सवाल क्या लोकसभा चुनाव से पहले कहीं प्रदेश की राजनीति से उनका मोहभंग तो नही जाएगा। इन अनुकूल और विपरीत परिस्थितियों में छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव का महत्व बढ़ जाएगा। अमित शाह की दूरगामी रणनीति के तहत छिंदवाड़ा की सभी 7 विधानसभा सीटों पर जहां कांग्रेस का कब्जा उसमें कमल खिलाने की योजना से इनकार नहीं किया जा सकता। जो लोकसभा चुनाव में 2024 में इस छिंदवाड़ा सीट पर धारणा बदल सकता कि छिंदवाड़ा कांग्रेस का गढ़ है। लेकिन उसे भेदा जा सकता है।2019 लोकसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस छिंदवाड़ा जीत गई थी लेकिन दूसरा बड़ा गढ़ गुना शिवपुरी उसके हाथ से निकल गया था। उस वक्त कांग्रेस में रहते ज्योतिरादित्य चुनाव हार गए। अब सिंधिया भाजपा में लेकिन राज्यसभा सांसद है।

कुल मिलाकर भाजपा ज्योतिरादित्य को कांग्रेस से दूर कर चुकी। इसलिए कमलनाथ को छिंदवाड़ा तक सीमित रख वह 2018 की भरपाई कर सीटों की संख्या में इजाफा करना चाहेगी। सवाल खड़ा होना लाजमी है 2024 को ध्यान में रखते हुए यदि कांग्रेस के गढ़ छिंदवाड़ा को अमित शाह ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया तो क्या उससे पहले 2023 विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाली विधानसभाओं में भाजपा किसी रणनीति के तहत चुनाव में जाएगी।

तो सवाल क्या यह तैयारी शुरू हो गई है जिससे पिछला चुनाव हारने वाली विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत सुनिश्चित हो पाए। बड़ा सवाल अमित शाह के दौरे के बाद भाजपा के सियासी चक्रव्यूह से आखिर कमलनाथ कैसे बाहर निकलेंगे। एक ओर परंपरागत सीट पर उनकी साख तो सांसद पुत्र नकुल नाथ का सियासी भविष्य दांव पर पहले ही लग चुका है।

अमित शाह की रणनीति 24 में कमलनाथ के छिंदवाड़ा में कमल खिलाना। यह तभी संभव होगा जब नकुल नाथ की हार सुनिश्चित कर दी जाए । जरूरी हो जाता इसके पहले 23 में कांग्रेस के कब्जे वाली सभी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा अपनी एंट्री मारे। कमलनाथ कांग्रेस के लिए भले ही निर्विवाद और स्वीकार्य नेता बनकर पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। लेकिन चुनौती सिर्फ भाजपा की सत्ता वापसी तक सीमित होकर नहीं रह जाती। बल्कि नई चुनौती उनके अपने परंपरागत छिंदवाड़ा सीट पर कमल नहीं खेलने देने की भी होगी। नगरीय निकाय चुनाव से जो ऊर्जा कमलनाथ को छिंदवाड़ा में मिली थी ।शायद उसने भी भाजपा को यहां नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर किया ।यह काम अब प्रदेश नेतृत्व नहीं बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व अमित शाह की अगुवाई में कर रहा है।

भाजपा से सीधे मुकाबले से पहले क्या इन नई परिस्थितियों में कमलनाथ के लिए चुनौती पार्टी के अंदर से खड़ी की जा सकती है…। या खड़ी हो सकती है। यही नहीं क्या कांग्रेस आलाकमान नए सिरे से आगे बढ़ने को मजबूर होगा। जब उसके नेता कमलनाथ को छिंदवाड़ा में उलझाने की कवायद तेज हो गई है। भाजपा नई रणनीति के तहत शायद कांग्रेस से ज्यादा दिमाग कमलनाथ की घेराबंदी पर भी लगा रही है। वैसे भी दिग्विजय सिंह जमीनी लड़ाई के लिए संगठन में ऊर्जा भरने के लिए प्रदेश के दौरे शुरू कर चुके हैं।

जो काम प्रदेश अध्यक्ष रहते कमलनाथ को करना चाहिए। जो वो नहीं कर पा रहे। तो फिर अमित शाह के छिंदवाड़ा दौरे से कॉन्ग्रेस खासतौर से कमलनाथ द्वंद से कैसे बाहर निकल कर आएंगे। अमित शाह के इस चक्रव्यूह में कमलनाथ ही नहीं नकुल नाथ का भविष्य भी उलझ सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमित शाह से पहले छिंदवाड़ा जाकर इस स्वभाव से कुछ हटकर संदेश आगे बढ़ा दिया है कि अब राजनीतिक तौर पर कमलनाथ की पारी खत्म करने को लेकर पार्टी नेतृत्व संजीदा है। यह काम 2023 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखकर किया जा सकता है। उसके बाद ही लोकसभा चुनाव होंगे। पूर्व निर्धारित योजना के तहत केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को छिंदवाड़ा का प्रभारी बनाया गया। जो अपने विवादित बयानों से हिंदुत्व के पुरोधा बन चुके।

छिंदवाड़ा स्थित जामसांवली के हनुमान मंदिर ने कमलनाथ की सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन को आगे बढ़ाने में मदद की है।प्रदेश में हिंदुत्व की इस लाइन पर 2018 से आगे बढ़ा रहे और कमलनाथ के बजरंग प्रेम को ध्यान में रखते हुए शायद महाकाल की तर्ज पर यहां भी शिवराज सिंह चौहान द्वारा बजरंगबली का कॉरिडोर बनाने का ऐलान कर दिया है। तो मुख्यमंत्री क्षेत्र के लिए नई सौगाटन के साथ विकास के एजेंडे पर छिंदवाड़ा को प्राथमिकता में पहले ही ले चुके हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा संगठन के मुखिया होने के नाते कार्यकर्ताओं में जोश भरने में जुट गए हैं। प्रदेश की सत्ता और संगठन की लंबी एक्सरसाइज के बाद जब अमित शाह छिंदवाड़ा पहुंचेंगे और आदिवासी धर्म गुरुओं के साथ संवाद और भोजन ग्रहण करेंगे। तो देखना दिलचस्प होगा अमित शाह की रणनीति क्या होगी। क्षेत्र के निर्णायक मतदाता माने जाने वाले आदिवासियों को लुभाने के लिए भाजपा एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय है।

ऐसे में कांग्रेस की कमजोर नस विरासत की राजनीति पर सवाल खड़ा कर अमित शाह कमलनाथ और नकुल नाथ की घेराबंदी ही नहीं बल्कि छिंदवाड़ा से बाहर पूरे प्रदेश में इस मुद्दे को नए सिरे से हवा दे सकते हैं। तो संदेश पीढी परिवर्तन के दौर से गुजर रही भाजपा के लिए भी छुपा होगा। जिस पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पहले ही गाइडलाइन और क्राइटेरिया का खुलासा यह कह कर चुके हैं कि नेता पुत्रों रिश्तेदारों को टिकट की संभावना फिलहाल दूर-दूर तक नहीं है। तो अमित शाह आदिवासियों के साथ नेता पुत्र और खासतौर से अपनी ही पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को चुनाव जीतने के लिए जरूरी टिकट के क्राइटेरिया सोच समझकर बनाने और उसे आगे बढ़ाने का संदेश भी जरूर देना चाहेंगे।

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