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गुरु अर्जुनदेव कभी गलत चीजों के आगे नहीं झुके

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guru-arjan-dev: शासक जहांगीर के आदेश के अनुसार गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सब कुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत 1663 (30 मई सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया। यातना के कारण जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया। उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है।

 1 जूनः गुरु अर्जुनदेव बलिदान पर विशेष

अपना जीवन धर्म और लोगों की सेवा में बलिदान कर देने वाले सिखों के पंचम गुरु गुरु अर्जुन देव का बलिदान दिवस इस वर्ष 2023 में 1 जून को है। सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखने वाले अर्जुन देव दिन रात संगत और सेवा में लगे रहते थे। गुरु परम्परा का पालन करते हुए कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुकने वाले गुरु अर्जुन देव  ने शरणागत की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देना स्वीकार किया, लेकिन मुगल शासक जहांगीर के आगे झुके नहीं। वे हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। सिख धर्म में वे सच्चे बलिदानी थे। उनसे ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ।

गुरु ग्रंथ साहिब के सृजक व पंचम गुरु गुरु अर्जुन देव का जन्म पंजाब के गोइदवाल में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी 162 तदनुसार 15 अप्रैल 1563 में हुआ था। वे गुरु रामदास और माता बीवी भानी के पुत्र थे। उनके पिता गुरु रामदास स्वयं सिखों के चौथे गुरु थे, जबकि उनके नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव का बचपन गुरु अमरदास की देख- रेख में बीता था। इन्होंने गुरमत की शिक्षक संघ 1581 ने अपने नाना गुरु अमरदास से ली थी।उन्होंने ही अर्जुन देव को गुरमुखी की शिक्षा दी। वर्ष 1579 में उनका विवाह माता गंगा के साथ हुआ था। दोनों का एक पुत्र हुआ-  हरगोविंद सिंह, जो बाद में सिखों के छठवें गुरु बने। नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव ने अपने जीवन काल में गरीबों की सेवा की और दान पेटी में मिलने वाले पैसों को परोपकार के खर्च में किए ।सन 1597 में लाहौर में अकाल पड़ने पर कई लोग बीमार हो गए। उस दौरान गुरु जी ने लोगों की खूब सेवा की। उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन भाई गुरदास के सहयोग से किया था। उन्होंने रागों के आधार पर गुरु वाणियों का वर्गीकरण भी किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्वयं गुरु अर्जुन देव के हजारों शब्द हैं।

इस पवित्र ग्रंथ में भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में छतीस महान वाणीकारोंकी वाणियां बिना किसी भेद- भाव के संकलित हुई। शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी गुरु अर्जुनदेव अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे, जो दिन-रात संगत सेवा में लगे रहते थे। उनके मन में सभी धर्मो के प्रति अथाह स्नेह था। मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।गुरमति-विचारधारा के प्रचार-प्रसार तथा पंजाबी भाषा साहित्य एवं संस्कृति को समृद्ध करने में गुरूजी का अद्भुत योगदान है । इस अवदान का पहला प्रमाण ग्रंथ साहिब का संपादन है। जिसमें एक ओर जहां लगभग 600 वर्षो की सांस्कृतिक गरिमा को पुन:सृजित किया गया, वहीं दूसरी ओर नवीन जीवन-मूल्यों की जो स्थापना हुई, जिसके कारण पंजाब में नवीन-युग का सूत्रपात भी हुआ।

सिख संस्कृति को घर-घर तक पहुंचाने के लिए अथाह प्रयत्‍‌न करने वाले अर्जुनदेव का गुरु दरबार की सही निर्माण व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु अर्जन देव के स्वयं के लगभग दो हज़ार शब्द संकलित हैं। इनकी रचना की महता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अर्जन देव की रचना सुषमनपाठ का सिख नित्य पारायण करते हैं।वर्ष 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बने। उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस गुरुद्वारे का नक्शा स्वयं अर्जुन देव जी ने ही बनाया था।

मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्तूबर 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बना। साम्राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए और वे जहांगीर को उनके खिलाफ भड़काने लगे। उसी बीच, शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत कर दी। तब जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया, तो वह भागकर पंजाब चला गया। खुसरो तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। तब गुरु अर्जन देव ने उसका स्वागत किया और उसे अपने यहां पनाह दी। इस बात की जानकारी जब जहांगीर को हुई, तो वह अर्जुन देव पर भड़क गया। उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उधर गुरु अर्जुन देव बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए। उन पर मुगल बादशाह जहांगीर से बगावत करने का आरोप लगा। जहांगीर ने गुरु अर्जन देव को यातना देकर मारने का आदेश दिया।

मुगल शासक जहांगीर के आदेश के अनुसार गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सब कुछ सहा। अंत में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत 1663 (30 मई सन् 1606) को उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया। यातना के कारण जब वे मूर्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया। उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है।

गुरु अर्जुन देव का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है। वे दया और करुणा के सागर थे। वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे।

सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव को मुगल बादशाह जहांगीर के द्वारा 1606 को लाहौर में बलिदान करते समय इनके शरीर में छाले पड़ गए थे। तब मियां मीर ने उनसे पूछा कि आपके शरीर में छाले पड़ गए हैं, और आप इतने शांत हैं ऐसा क्यों?  यह सुन गुरु अर्जुन देव ने कहा कि जितने जिस्म पर पड़ेंगे छाले उसने सिख होंगे सिदक वाले। इसका अर्थ हुआ- मेरे शरीर में जितने भी छाले पड़ेंगे, उतने हजारों करोड़ों सदके वाले सिखों का जन्म होगा। गेरू अर्जुनदेव बलिदान दिवस का दिन लोगों के लिए प्रेरणादायक है। यह वह समय था, जब गुरु अर्जुनदेव को गर्म तवे पर बैठा कर उन पर गर्म रेत डाली जा रही थी और वह एकदम शांत थे। उनका शरीर जल रहा था। उसके बावजूद उन्होंने अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकाला। गुरु अर्जुन देव महाराज का बलिदान दिवस के दिन गुरुद्वारा साहिब में कई कार्यक्रम होते हैं, वही गुरुवाणी कीर्तन वह सुखमणि साहिब का पाठ भी होता है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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