भोपाल। इन दिनों देश की समूची राजनीति सिर्फ और सिर्फ करीब एक साल बाद होने वाले आम चुनाव पर केंद्रीय है, अब हर राजनीतिक दल सब कुछ भूल कर फिर अगले चुनाव के बाद अपने भविष्य की चिंता से ग्रस्त है। अगले चुनाव के बाद सत्ता का सिंहासन हथियाने की यह स्पर्धा मुख्य रूप से देश पर राज कर रही भाजपा तथा मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस के बीच है और इसी वास्तविकता को समझकर देश के करीब-करीब सभी प्रतिपक्षी दलों ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सोनिया गांधी को अपनी संयुक्त नेत्री मान लिया है, इसी से यह अभी से स्पष्ट हो रहा है कि 2024 की राजनीतिक जंग मुख्य रूप से मौजूदा प्रधानमंत्री और भाजपा के सर्वमान्य नेता नरेंद्र भाई मोदी और प्रतिपक्ष की सर्वमान्य नेत्री सोनिया गांधी के बीच ही होगी और सोनिया के दीर्घ राजनीतिक अनुभव को उनके विगत राजनीतिक कौशल से परिचित भाजपा का हर छोटा बड़ा नेता इस जंग को काफी महत्वपूर्ण मान रहे है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या के बाद से ही सोनिया जी राजनीति में सक्रिय हुई करीब दो दशक तक कांग्रेस की अध्यक्षा रही इस बीच कई राजनीतिक मुकाबलों में अपना जोहर भी दिखाया और फिर 2004 में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी को आगे लाकर उसे नेतृत्व के योग्य बनाने की कवायद शुरू की, किंतु डेढ़ दशक से भी अधिक समय में राहुल राजनीतिक तौर पर परिपक्व नहीं हो पाए और अब अपने विवादित बयानों के कारण न सिर्फ मानहानि का दंश झेल रहे हैं, बल्कि अब शायद उन्हें देश के विभिन्न न्यायालयों के दरवाजों पर भी दस्तक देनी पड़ सकती है, इन्हीं सब स्थितियों को ध्यान में रखकर सोनिया गांधी को फिर कमर कसकर अगली चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करना पड़ा और उनके इस संकल्प को देखकर देश के डेढ़ दर्जन से अधिक प्रतिपक्षी दलों को उनका नेतृत्व स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ा।
अब सोनिया जी पर अपनी पार्टी के साथ ही अन्य प्रतिपक्षी दलों की भी भावनाएं समझ कर अपना अगला राजनीतिक एजेंडा तैयार करने की अहम जिम्मेदारी आ गई है, क्योंकि अब हर प्रतिपक्षी दल उनमें अगली सत्ता की किरण देखने लगा है।
….फिर आज के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य का आंकलन कर हर दल यह स्वीकार भी करने लगा है कि देश का कांग्रेस सहित कोई भी राजनीतिक दल मोदी की कथित राजनीतिक आंधी का अकेले मुकाबला नहीं कर सकता, हर दल यह महसूस करने लगा है कि जब तक देश के सभी प्रमुख विपक्षी दल एकजुट होकर मोदी का मुकाबला नहीं करेंगे तो फिर अगले चुनाव में मोदी को पुनः सत्ता से रोकना काफी मुश्किल हो जाएगा, इसलिए इसी दिशा में हर दल ने अपना रुख कर लिया है। और अब इस दिशा में स्वयं कांग्रेस ने ही अपना कदम आगे बढ़ाया है, जिसका ताजा उदाहरण कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा आयोजित संयुक्त रात्रि भोज है, इस भोज में कांग्रेस से दूरी बनाकर रखने वाले तृणमूल कांग्रेस पीआरएस और आम आदमी पार्टी जैसे दल भी शामिल हुए।। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि जो दल राहुल गांधी का नेतृत्व पसंद नहीं करते थे, वह अब सोनिया के नेतृत्व के प्रति आस्थावान हो गए हैं।
यदि हम सोनिया को केंद्र में रखकर विगत राजनीति का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि सोनिया की समझदारी ने हीं 2004 से 2024 तक यूपीए को सत्ता में रखा और इस सोनिया ही एकमात्र नेत्री है, जो मौजूदा हालातों में प्रतिपक्षी दलों को सत्ता नसीब करवाकर मोदी से छुटकारा दिला सकती है।
इस प्रकार कुल मिलाकर आज यदि यह कहा जाए कि प्रतिपक्ष की पूरी राजनीति सिमट कर सोनिया पर केंद्रित हो गई है, तो कतई गलत नहीं होगा और सोनिया ने भी इस भावी चुनौती को स्वीकार करने की मानसिक रूप से तैयारी कर ली है, इसलिए अब यह तय है कि 2024 का मुख्य मुकाबला मोदी व सोनिया के बीच ही होगा और यह राजनीतिक युद्ध देश के लिए कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।