Thursday

22-05-2025 Vol 19

बर्फ की चादर ओढ़ना भूली बदरीनाथ धाम की चोटियां, जलवायु संकट से वैज्ञानिकों में चिंता

42 Views

उत्तराखंड के पवित्र चार धामों में से एक, बदरीनाथ धाम न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह हिमालयी प्राकृतिक संतुलन का भी प्रतीक रहा है। किंतु आज यह पावन स्थल एक नई और गंभीर पर्यावरणीय चुनौती का सामना कर रहा है।

बदरीनाथ धाम की चोटियां, जो कभी साल के इस समय बर्फ की सफेद चादरों में लिपटी रहती थीं, अब लगभग पूरी तरह से बर्फविहीन हो चुकी हैं। यह बदलाव केवल दृश्यात्मक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह परिवर्तन सामान्य मौसमी बदलाव नहीं, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम है।

जहां एक समय था जब बदरीनाथ धाम अप्रैल महीने तक बर्फ की मोटी परतों से ढका रहता था, वहीं अब अप्रैल की शुरुआत में ही यहां बर्फ नाम मात्र की रह गई है। मई के अंतिम सप्ताह तक जो बर्फीली चोटियां श्रद्धालुओं का स्वागत किया करती थीं, वे अब नंगे पत्थरों में तब्दील हो रही हैं।

also read: मंच बदला…धमाल नहीं, BIGG BOSS और खतरों के खिलाड़ी अब सोनी टीवी पर मचाएंगे तहलका!

इस असमय बर्फ के पिघलने का सबसे बड़ा खतरा हिमालयी ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि (बदरीनाथ धाम) यदि यह स्थिति बनी रही, तो निकट भविष्य में गंगा, अलकनंदा और अन्य हिमालयी नदियों का जलस्तर बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।

ग्लेशियरों का तेजी से सिकुड़ना केवल जल संकट को ही जन्म नहीं देगा, बल्कि इससे पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि, जैव विविधता और स्थानीय जनजीवन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

बढ़ती मानवीय गतिविधियां, जैसे अंधाधुंध पर्यटन, सड़कों का चौड़ीकरण, निर्माण कार्य और जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या ने मिलकर इस प्राकृतिक असंतुलन को और गहरा कर दिया है।

ऐसे पवित्र स्थलों पर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना न केवल सरकार की, बल्कि हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। यदि समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में यह पावन धाम अपने पारंपरिक स्वरूप से पूरी तरह वंचित हो सकता है।

बदरीनाथ धाम की बर्फविहीन चोटियां हमें प्रकृति के उस मौन क्रंदन की याद दिलाती हैं, जिसे अब अनसुना नहीं किया जा सकता। यह समय है चेतने का, और पृथ्वी के इस अमूल्य रत्न को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने का।

जलवायु परिवर्तन का बढ़ता प्रभाव

आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां प्रकृति अपने संतुलन को खोती जा रही है। मौसम के मिजाज में हो रहे निरंतर बदलाव और तापमान में हो रही अप्रत्याशित बढ़ोतरी का प्रभाव अब साफ़ तौर पर हमारे पर्यावरण पर दिखने लगा है। विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र (बदरीनाथ धाम) और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बदरीनाथ धाम इस परिवर्तन की चपेट में है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों से मौसम की नियमितता में भारी बदलाव आया है। पहले जहां सर्दियों में समय पर और पर्याप्त बर्फबारी हुआ करती थी, वहीं अब न तो वह नियमितता रही और न ही वह मात्रा।

बर्फबारी या तो समय से बहुत देर से होती है, या बहुत कम होती है। जो बर्फ गिरती भी है, वह भी इतनी तेज़ी से पिघल जाती है कि उसका लाभ ग्लेशियरों को नहीं मिल पाता।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण बदरीनाथ धाम में बर्फ का तेजी से पिघलना आने वाले समय में पर्यावरण के लिए एक गंभीर चेतावनी है। दो दशक पहले जब बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते थे, तो पूरा धाम बर्फ की मोटी चादर से ढका होता था।

बदरीनाथ धाम और ग्लेशियरों पर मंडराता खतरा

भक्तों को बर्फ के बीच से रास्ता बनाकर मंदिर तक पहुंचना पड़ता था। यह दृश्य प्रकृति की शीतलता और पवित्रता का प्रतीक था। लेकिन अब जैसे ही कपाट खुलते हैं, धाम में मुश्किल से कुछ हिस्सों में ही बर्फ दिखाई देती है, और वह भी कुछ ही दिनों में पूरी तरह पिघल जाती है।

यह स्थिति केवल धार्मिक पर्यटन या आस्था का विषय नहीं है, बल्कि इससे जुड़ा है हमारे ग्लेशियरों का भविष्य। वैज्ञानिक बताते हैं कि बर्फ की यह परत ग्लेशियरों के लिए जैकेट की तरह काम करती है, जो उन्हें सूर्य की तीव्र किरणों से बचाती है।

यह जैकेट जैसे-जैसे कम होती जा रही है, वैसे-वैसे ग्लेशियर सूर्य की गर्मी के सीधे संपर्क में आ रहे हैं, जिससे उनका पिघलना तेज़ हो गया है।

ग्लेशियर केवल बर्फ के पहाड़ नहीं होते, ये लाखों लोगों के जीवन का आधार हैं। नदियों का स्रोत, जलवायु का संतुलन, और पारिस्थितिक तंत्र की निरंतरता इन्हीं पर निर्भर करती है। अगर ये तेज़ी से पिघलते रहे, तो आने वाले समय में जल संकट, प्राकृतिक आपदाएं और जैव विविधता का संकट और भी गहराता जाएगा।

इसलिए यह आवश्यक है कि हम समय रहते चेतें, पर्यावरण संरक्षण को केवल एक अभियान न मानें, बल्कि अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।

केवल नीतियों और योजनाओं से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत प्रयासों और सामूहिक जागरूकता से ही हम इस बदलते मौसम की चुनौती का सामना कर सकते हैं। बदरीनाथ और हमारे ग्लेशियरों को बचाना, केवल पहाड़ों की नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज की ज़िम्मेदारी है।

Naya India

Naya India, A Hindi newspaper in India, was first printed on 16th May 2010. The beginning was independent – and produly continues to be- with no allegiance to any political party or corporate house. Started by Hari Shankar Vyas, a pioneering Journalist with more that 30 years experience, NAYA INDIA abides to the core principle of free and nonpartisan Journalism.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *