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05-05-2025 Vol 19

जानें केदारनाथ धाम के बाद कब खुलेंगे जगत पालनकर्ता बद्रीनाथ धाम के कपाट

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चार धाम यात्रा के शुभारंभ के साथ ही समस्त देशवासियों में एक नई आस्था की लहर दौड़ जाती है। गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद अब श्रद्धालु बेसब्री से बद्रीनाथ धाम के दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

30 अप्रैल से उत्तराखंड की पवित्र चार धाम यात्रा का विधिवत शुभारंभ हो चुका है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ चारों धामों के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित एक अत्यंत पूजनीय स्थल है, जो समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

यह भगवान विष्णु का प्रमुख धाम है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस मंदिर में प्रवेश करने मात्र से भक्तों के समस्त पापों का नाश हो जाता है और मनुष्य पुण्य की ओर अग्रसर हो जाता है।

बद्रीनाथ धाम का उल्लेख पुराणों और अनेक ग्रंथों में मिलता है, और इसे भगवान विष्णु के बद्री रूप की तपोभूमि कहा गया है।

4 मई को प्रातः 6:00 बजे खोले जाएंगे बद्रीनाथ धाम

इस वर्ष, 2025 में बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को प्रातः 6:00 बजे विधिवत पूजा-अर्चना और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खोले जाएंगे। इससे पहले 2 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खोले जा चुके हैं। इस प्रकार चार धाम यात्रा की अगली कड़ी में अब बद्रीनाथ धाम के दर्शनों की बारी है।

विशेष बात यह है कि बद्रीनाथ धाम यात्रा को चार धाम यात्रा का अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब तक कोई श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम के दर्शन नहीं कर लेता, तब तक उसकी चार धाम यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती।

श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड प्रशासन ने इस बार भी यात्रा के लिए विशेष प्रबंध किए हैं। मौसम की स्थिति से लेकर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, ठहरने की व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित किया गया है।

इस पावन यात्रा में शामिल होकर, भक्त न केवल अलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव करते हैं, बल्कि आत्मिक शांति और परमात्मा से साक्षात्कार की अनुभूति भी प्राप्त करते हैं। बद्रीनाथ धाम केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और मुक्ति की जीवंत अनुभूति है।

रावल करते हैं बद्रीनाथ धाम की पूजा

हिमालय की गोद में बसे बद्रीनाथ धाम को हिंदू धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है। यह स्थान न केवल चारधामों में से एक है, बल्कि भगवान विष्णु की विशेष कृपा स्थली भी माना जाता है। इस पवित्र धाम में पूजा-अर्चना की परंपरा अत्यंत प्राचीन है और इसे निभाने का परम सौभाग्य जिस व्यक्ति को प्राप्त होता है, उसे ‘रावल’ कहा जाता है।

रावल, बद्रीनाथ धाम मंदिर के मुख्य पुजारी होते हैं। यह केवल एक धार्मिक पद नहीं है, बल्कि यह एक अत्यंत गरिमामय उत्तरदायित्व भी है, जिसमें श्रद्धा, अनुशासन और दिव्यता की गहराई समाहित होती है।

बद्रीनाथ धाम जी के गर्भगृह में प्रवेश का और उनकी दिव्य मूर्ति को स्पर्श करने का अधिकार केवल रावल को ही प्राप्त है। यह विशेषाधिकार उन्हें भगवान के प्रति उनकी अगाध भक्ति और अनुशासित जीवन के कारण प्राप्त होता है।

हर वर्ष जब मंदिर के कपाट शीतकाल के बाद खुलते हैं, तब रावल नरसिंह मंदिर, जो जोशीमठ में स्थित है, से भगवान विष्णु की चल मूर्ति एवं पूजा सामग्री के साथ एक पवित्र यात्रा आरंभ करते हैं।

यह यात्रा केवल मूर्ति स्थानांतरण की नहीं होती, बल्कि यह एक प्रकार की आध्यात्मिक साधना होती है, जिसमें भक्त और भगवान के बीच पुनः एक जीवंत संपर्क स्थापित होता है।

आध्यात्मिक उन्नति के लिए तप और साधना अनिवार्य

जब बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं और मंदिर में फिर से पूजा शुरू होती है, तब अगले छह महीनों तक रावल भगवान बद्रीनाथ के श्रृंगार और पूजन में विशेष रूप से तिल के तेल का प्रयोग करते हैं।

यह परंपरा न केवल धार्मिक नियमों के अनुसार होती है, बल्कि उसमें गहरा प्रतीकात्मक अर्थ भी छिपा होता है—तिल का तेल शुद्धता, स्थायित्व और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर की विशेषता यह भी है कि यहाँ भगवान विष्णु के साथ-साथ उनके नर-नारायण रूप की भी पूजा होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यही वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूप में अवतार लेकर घोर तपस्या की थी।

यही कारण है कि बद्रीनाथ धाम मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ ध्यान मुद्रा में स्थित नर-नारायण की मूर्ति भी विराजमान है। यह ध्यानावस्था न केवल योग और तप का प्रतीक है, बल्कि यह इस बात की गवाही देती है कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए तप और साधना अनिवार्य हैं।

इस प्रकार, रावल की पूजा न केवल एक परंपरा का निर्वहन है, बल्कि यह एक गहन आत्मिक साधना और सेवा का रूप है, जो पीढ़ियों से निर्विघ्न रूप से चल रही है।

बद्रीनाथ धाम की दिव्यता और वहाँ होने वाली हर एक क्रिया में आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है, और इस मिलन के साक्षी बनते हैं रावल—भगवान के सच्चे सेवक।

Disclaimer: इस लेख/सामग्री में दी गई सभी जानकारियां और मान्यताएं केवल सामान्य सूचना और परंपरागत मान्यताओं पर आधारित हैं। Naya India इन जानकारियों या मान्यताओं की किसी भी प्रकार से पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी पर अमल करने या निर्णय लेने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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