mana gaon pushkar kumbh : उत्तराखंड के पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित माणा गांव, जिसे देश का अंतिम गांव भी कहा जाता है, आज एक बार फिर आस्था और परंपरा का केंद्र बन गया है।
12 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद यहां आयोजित होने वाले पुष्कर कुंभ का शुभारंभ बुधवार को विधिवत पूजा-अर्चना के साथ हो गया। इस शुभ अवसर की जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर साझा की।
पुष्कर कुंभ का आयोजन बृहस्पति ग्रह के मिथुन राशि में प्रवेश के उपलक्ष्य में होता है, और यह परंपरा हर 12 वर्षों में एक बार निभाई जाती है। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम स्थल केशव प्रयाग में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं।
यह संगम स्थल माणा गांव mana gaon pushkar kumbh) में स्थित है और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां स्नान करने से सारे पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माणा गांव में शुरू हुआ पुष्कर कुंभ
इस वर्ष का पुष्कर कुंभ न (mana gaon pushkar kumbh) केवल स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि देश भर के आस्थावानों के लिए भी एक विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
दक्षिण भारत से वैष्णव संप्रदाय के श्रद्धालु विशेष रूप से इस आयोजन में भाग लेने आते हैं, जो यह दर्शाता है कि यह मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय श्रद्धा का भी प्रतीक है।
चमोली जिले के माणा गांव में आरंभ हुआ यह कुंभ (mana gaon pushkar kumbh) मेला अगले कई दिनों तक चलेगा, और इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है।
स्थानीय प्रशासन, साधु-संतों और भक्तों द्वारा इस आयोजन को सफल बनाने के लिए व्यापक तैयारियाँ की गई हैं। पूरे क्षेत्र में धार्मिक मंत्रोच्चार, वैदिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और आध्यात्मिक प्रवचन की ध्वनि गूंज रही है, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय और दिव्य बन गया है।
यह पुष्कर कुंभ न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह हमारी भारतीय सांस्कृतिक विरासत, वेदों की परंपरा और लोक आस्था का जीवंत उदाहरण भी है। (mana gaon pushkar kumbh) देशभर से आए श्रद्धालु यहां आकर प्रकृति, धर्म और अध्यात्म के अद्भुत संगम का अनुभव कर रहे हैं।
जो भी इस पुण्य अवसर पर माणा गांव पहुंचता है, वह यहां की पवित्र नदियों, देवस्थलों और हिमालय की गोद में बसे इस तीर्थ स्थल की दिव्यता से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता। पुष्कर कुंभ 2025, निस्संदेह, आस्था और अध्यात्म का एक ऐसा पर्व है, जिसे हर हिंदू को अपने जीवन में एक बार अवश्य अनुभव करना चाहिए।
क्या है मान्यताएं?
पुष्कर कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है, जो भारत की गहराई से जुड़ी मान्यताओं, श्रद्धा और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
यह आयोजन 14 मई से शुरू हो चुका है और आने वाले कई दिनों तक आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहेगा। इस पावन कुंभ मेले ( mana gaon pushkar kumbh) के पीछे अनेक धार्मिक मान्यताएं और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हुए हैं, जो इसे विशेष बनाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने केशव प्रयाग में तपस्या के दौरान प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। इस क्षेत्र की भूमि को इसलिए भी पावन माना जाता है क्योंकि यहाँ वेदों और पुराणों की रचना की गई थी।
वहीं, दक्षिण भारत के दो प्रमुख आचार्य – रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य ने भी सरस्वती नदी के तट पर ही मां सरस्वती से ज्ञान की प्राप्ति की थी। यह स्थान न केवल साधना की भूमि रहा है, बल्कि ज्ञान और मोक्ष की दिशा में अग्रसर होने का प्रमुख केंद्र भी रहा है।
पुष्कर कुंभ में दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। वे अपनी धार्मिक परंपराओं और आस्था को निभाने के लिए इस पवित्र धरती पर स्नान करने आते हैं। (mana gaon pushkar kumbh) यह एक ऐसा आयोजन है जो उत्तर और दक्षिण भारत की आध्यात्मिक एकता को सजीव रूप में प्रस्तुत करता है।
ग्रहों की चाल और कुंभ का आयोजन
धार्मिक ज्योतिष के अनुसार, दक्षिण भारतीय परंपरा में बृहस्पति ग्रह (गुरु) जब अपनी राशि बदलता है, तब कुंभ (mana gaon pushkar kumbh) का आयोजन किया जाता है। यह एक विशेष खगोलीय घटना होती है, जो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ मानी जाती है।
हर साल यह कुंभ विभिन्न नदियों के तट पर आयोजित होता है, और किसी एक स्थान पर इसका आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर दोबारा आता है।
माणा गांव के प्रशासक पीतांबर मोल्फा बताते हैं कि प्रारंभ में स्थानीय लोगों को पुष्कर कुंभ के महत्व की जानकारी नहीं थी। (mana gaon pushkar kumbh) दक्षिण भारत के श्रद्धालु यहां आते, स्नान करते और लौट जाते थे।
लेकिन 2013 में इस आयोजन के बारे में स्थानीय समुदाय को विस्तार से जानकारी मिली और तब से यह आयोजन भव्य रूप में मनाया जाने लगा।पुष्कर कुंभ के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। सुरक्षा, स्वच्छता, रहने और भोजन की व्यवस्था के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों की योजना भी बनाई गई है।
हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस पुण्य अवसर का लाभ उठाने आ रहे हैं। (mana gaon pushkar kumbh) यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पुष्कर कुंभ एक ऐसा पर्व है जो आस्था की गहराइयों को छूता है, परंपरा को जीवित रखता है और भारत की सांस्कृतिक विविधता को एक सूत्र में पिरोता है।
क्यों कहा जाता है पहला गांव?
माणा गांव को ‘पहला गांव’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित अंतिम सीमावर्ती गांव है, जो भारत-तिब्बत सीमा के बेहद निकट है।
तिब्बत (अब चीन) की ओर से जब कोई भारत में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले जो गांव दिखाई देता है, वह माणा है। इसीलिए इसे ‘भारत का पहला गांव’ कहा जाता है। इसके साथ ही यह गांव धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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