nayaindia Madhya Pradesh Rahul Gandhi Kamal Nath Govind Singh 'गर्म' राहुल के सिपहसालार नाथ- गोविंद क्यों 'ठंडे'
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‘गर्म’ राहुल के सिपहसालार नाथ- गोविंद क्यों ‘ठंडे’

ByNI Editorial,
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मध्यप्रदेश में कांग्रेस खासतौर से कमलनाथ और गोविंद सिंह की जोड़ी तीन मुद्दों को चाह कर भी धार नहीं दे पाई या फिर जरूरी रणनीति नहीं बना पाई। विधानसभा सत्र के दौरान होली से लेकर रंग पंचमी और सदन दोबारा शुरू होने तक 3 बड़े मुद्दे उसके हाथ लगे। पहला कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन राहुल गांधी को ताकत देने के लिए जिस अदानी के मुद्दे पर कांग्रेस सड़क पर उतरी थी उस पर जिम्मेदार नेताओं का कोई वक्तव्य नहीं आया। दूसरा कार्यकारी अध्यक्ष विधायक जीतू पटवारी का निलंबन खत्म करने और विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कांग्रेस की रणनीति कारगर साबित नहीं हुई। तीसरा बड़ा मुद्दा आदिवासियों की लड़ाई लड़ने का। व्यस्तता कहे या फिर तालमेल का अभाव शिवराज की तर्ज पर न तो कमलनाथ और ना ही गोविंद सिंह मृतक आदिवासी के घर पहुंचे। अलबत्ता जांच दल जरूर भेजा गया और कमलनाथ ने फोन पर उसके पिता से बात भी की। कमलनाथ यदि मृतक आदिवासी के घर खुद पहुंचते हैं और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह सदन में तुरंत सरकार की इस मुद्दे पर सफल घेराबंदी करते तो संदेश जाता कि मुद्दों को लपकना उसे आता और वह गंभीर है।

कॉन्ग्रेस और कमलनाथ लगभग रोज एलान करते हैं। कि इतने महीने दिन बाद कांग्रेस सत्ता में लौट रही है। एक बार फिर कमलनाथ ने दावा कर दिया कि 6 महीने बाद सत्ता में लौट कर आदिवासियों को न्याय दिलाएंगे। इस दावे को पूरा करने के लिए कांग्रेस को जो लड़ाई अपने नेता राहुल गांधी की तर्ज पर मध्य प्रदेश में लड़ना चाहिए वह नजर नहीं आ रही। भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा करने और मुद्दों पर जनसमर्थन हासिल करने में या तो कांग्रेस की दिलचस्पी नहीं। या फिर वह करिश्माई नेतृत्व और कार्यकर्ता और जनता के दिल पर राज करने वाले नेता के अभाव में कर नहीं पा रही। राहुल गांधी जैसा जोश जज्बा और जुनून कम से कम इस जोड़ी में तो नजर नहीं आ रही। फिर भी शायद उसे भरोसा है की भाजपा सरकार से जनता का मोहभंग होगा। इसका सीधा फायदा कांग्रेस और खासतौर से कमलनाथ को ही मिलेगा। बिल्ली के भाग से छींक एक दिन जरूर टूटेगा इस कहावत को चरितार्थ होता हुआ वह जरूर देखना चाहती है।

मुख्यमंत्री बनकर कौन-कब-कहां से तिरंगा फहरायागा यह बात तो पुरानी हो गई। तख्तापलट के बाद विपक्ष में भी उदयपुर डिक्लेरेशन हो या रायपुर अधिवेशन कांग्रेस के दिन-महीने-साल गुजरते जा रहे। जीत के लिए जरूरी फार्मूला, टिकट के लिए क्राइटेरिया..सर्वे रिपोर्ट का आकलन सामने आना बाकी। वर्तमान विधायकों की दावेदारी के साथ हारी हुई सीट पर भी रणनीति बहुत कुछ स्पष्ट नहीं। लेकिन कड़वा सच यह भी है कि सारे सूत्र कमलनाथ के पास थे… है और आगे भी रहेंगे, कमलनाथ ही कांग्रेस की ताकत और अंतिम कोशिश लेकिन पार्टी के अंदर अब यह मानने वाले भी मिल जाएंगे कि कमलनाथ ही कमजोर कड़ी भी साबित हो सकते हैं। कमलनाथ मीडिया स्पेस हासिल कर समय-समय पर जरूर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे।

दिल्ली में नाथ का दखल राज्य की राजनीति में क्षत्रपों का समर्पण व्यक्तिगत तौर पर उनकी ताकत में लगातार इजाफा कर रहा है.. कांग्रेस मैदान की लड़ाई में न तो कोई बड़ा आंदोलन भोपाल से बाहर कर पाई और ना ही सार्वजनिक तौर पर सभी दिग्गजों के बीच तालमेल का बड़ा संदेश दे पाई है। राष्ट्रीय नेतृत्व की गाइडलाइन पर राजभवन का घेराव और विरोध प्रदर्शन दूसरे दिन भोपाल में ही केजरीवाल की सभा की तुलना में भीड़ के मापदंड पर कमजोर ही साबित हुआ। विरोध प्रदर्शन के दौरान कमलनाथ द्वारा सांकेतिक गिरफ्तारी नहीं देना भी मकसद पर सवाल खड़ा कर गया। पिछले एक पखवाड़े में जिन 3 बड़े मुद्दों पर कॉन्ग्रेस उसके नेता सीएम इन वेटिंग कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह से विधायकों कार्यकर्ताओं को जो अपेक्षाएं थी।

विधानसभा सत्र के दौरान वह दूर दूर तक पूरी होती नजर नहीं आ रही। नेता चाहे फिर विधायक ही क्यों ना हो फोटो सेशन और न्यूज़ की हेडलाइंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तक सीमित होकर रह गए। कमलनाथ और जीतू पटवारी के बीच तनातनी कम ज्यादा नजर आई लेकिन खत्म हो गई हो ऐसा स्पष्ट संकेत अभी तक निकलकर नहीं आया है। विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का ऐलान ठंडे बस्ते में पहले ही जा चुका है। तो जीतू पटवारी विरोधियों से ज्यादा अपनी ही पार्टी कांग्रेस के अंदर उलझ कर रह गए। सत्ता पक्ष से लड़ने के लिए जरूरी जुझारू तेवर उनकी ताकत लोकप्रियता में इजाफा करती है लेकिन बड़बोला पर और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा उनकी अपनी पार्टी नेताओं को रास नहीं आ रही।

संदेश यही निकल कर आ रहा या तो हाईकमान का उन्हें वरद हस्त प्राप्त है जो हिडेन एजेंडे को आगे बढ़ा रहे या फिर वह राहुल गांधी का भरोसा जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। सबसे बड़ा मुद्दा विधायक जीतू पटवारी का निलंबन जो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी है। होली से पहले उपजा इस विवाद के समाधान में कांग्रेस की दिलचस्पी होली के बाद सदन के कई बैठके हो जाने के बाद नजर नहीं आ रही। मानो जीतू पटवारी को उनके रहमो करम पर छोड़ दिया गया। नेता प्रतिपक्ष हो या फिर प्रदेश अध्यक्ष ने सदन दोबारा शुरू होने के बाद इस मुद्दे पर अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

विधानसभा परिसर में जिस जोश के साथ जीतू किसान का हल लेकर पहुंचे और जो उन्होंने बड़ी-बड़ी बातें और दावे किए थे। उस पर उनकी पार्टी के नेता कोई नोटिस नहीं ले रहे। सदन के अंदर फोकस उस वक्त नरोत्तम के साथ सज्जन सिंह वर्मा पर बना। तो विरोध प्रदर्शन के दौरान सड़क पर जीतू अपने चिर परिचित तेवर के साथ छाप नहीं छोड़ पाए । कमलनाथ के पीछे खड़े होकर उन्होंने अपनी मौजूदगी जरूर दर्ज कराई। व्यक्तिगत शक्ति प्रदर्शन का दावा भी कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गया। पार्टी के नेता ही अब यह कहने लगे हैं जीतू ने भी कमलनाथ के सामने समर्पण कर दिया। मध्यप्रदेश में युवाओं के बीच लोकप्रिय जीतू दिल्ली की तर्ज पर मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ राहुल गांधी की तरह ना तो आगे बढ़ पा रहे ना ही स्वीकार और जोड़ी भी नहीं बना पा रहे हैं । ना नुकर कर के ही सही तमाम जोर आजमाइश और हठधर्मिता के बाद एक बार फिर सीएम का चेहरा अपना नेता कमलनाथ को सशर्त प्रदेश अध्यक्ष रहते ही सही लेकिन मान लिया। कमलनाथ के साथ कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन में वह सड़क पर भी जरूर नजर आए। लेकिन यहीं पर अधिकांश नेताओं ने दूसरे बड़े मुद्दे पर कॉन्ग्रेस ने राहुल गांधी की लाइन को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ली।

प्रदेश अध्यक्ष रहते कमलनाथ ने अडानी के मुद्दे पर मीडिया या पब्लिक के बीच ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे राहुल गांधी को मध्य प्रदेश से ताकत मिले। जिससे कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का एजेंडा आगे बढ़ता हुआ नजर आता। पूरा फोकस भाजपा और शिवराज सरकार के खिलाफ सीमित होकर रह गया। अलबत्ता पार्टी की विज्ञप्ति जो प्रदर्शन की तैयारी जानकारी और विरोध प्रदर्शन के खत्म हो जाने के बाद जारी की गई उसमें लिखित तौर पर इसका जिक्र जरूर रहा।जीतू जो निलंबन के कारण सदन में नहीं आ रहे जो लगातार एग्रेसिव रुख अख्तियार कर भाजपा को निशाने पर लेते रहते थे। सवाल क्या पार्टी में अलग-थलग पड़ गए। तो फिर इसकी वजह क्या है। प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल जोक खुद उस वक्त विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे इस विवाद पर पार्टी को एकजुट नहीं पाए।

प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ जो विधायक भी है। और नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह भी इन दोनों मुद्दों को धार देने में सफल रहे हो यह कहना जल्दबाजी होगी। इसमें कोई दो राय नहीं संख्या के मापदंड पर और पुलिस से भिड़ंत के साथ सामने आई तस्वीरों ने जरूर कांग्रेस की मौजूदगी सड़क पर दर्ज कराई थी। दिल्ली की अपनी व्यस्तता के चलते दिग्विजय सिंह इस प्रदर्शन का हिस्सा नहीं बने। इसे दिल्ली की तात्कालिक जरूरत और रणनीति से जोड़कर पेश किया जा रहा लेकिन राजा की कमी सड़क की इस लड़ाई में मध्यप्रदेश में जरूर चर्चा का विषय बनी। शायद इसे कमलनाथ को फ्री हैंड देने से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

तीसरा बड़ा मुद्दा जो आदिवासी कांड के तौर पर सामने आया उस पर कमलनाथ का ट्वीट दूसरे नेताओं के बयान अपनी जगह लेकर यहां जीतू पटवारी की कमी सदन के अंदर कांग्रेस को जरूर महसूस हुई। कमलनाथ ने मृतक के पिता और आदिवासी से फोन पर बात की लेकिन उसका मजाक कभी उनके मीडिया कोऑर्डिनेटर रहे नरेंद्र सलूजा ने मजाक उड़ा कर उसकी गंभीरता को खत्म करने की कोशिश की। विक्रांत भूरिया ने जरूर इस मोर्चे पर अपनी प्रभावी सक्रियता और मौजूदगी दर्ज कराई।महू आदिवासी कांड में आदिवासी की मृत्यु पर कॉन्ग्रेस के पास राजनीतिक हित साधने के लिए ना सिर्फ बहुत समय था बल्कि इस मुद्दे को गरमाने के लिए करने के लिए भी बहुत कुछ था। सदन चल रहा लेकिन संदेश देने के लिए ट्वीट की औपचारिकता और जांच दल के गठन से आगे वह समय रहते कुछ ज्यादा नहीं कर पाई। आदिवासी वोट बैंक को लेकर जद्दोजहद कांग्रेस और भाजपा के बीच लगातार आगे बढ़ रही है। स्वीकार्य नेतृत्व विश्वसनीय चेहरे और भरोसेमंद रणनीतिकार के अभाव में कॉन्ग्रेस गच्चा खा ही जाती है।

कभी मंदसौर गोली कांड पर किसानों को आगे रखकर उस वक्त अरुण यादव की टीम ने मुद्दे को गरमा दिया था। दोनों मामले अपनी जगह अलग-अलग लेकिन आदिवासी के मुद्दे को कॉन्ग्रेस धार दे पाए इससे पहले भाजपा और शिवराज का डैमेज कंट्रोल उन पर भारी साबित हो रहा है। राहुल गांधी जो भाजपा और अपने विरोधियों के आंख की किरकिरी बन चुके हैं। भारत जोड़ो यात्रा के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस को पहले ही एक ताकत दे चुके। बावजूद इसके कॉन्ग्रेस के अंदर सदन से लेकर सड़क की लड़ाई में जोश और जुनून नजर नहीं आता।

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