nayaindia uddhav thackeray shiv sena उद्धव को नहीं मिली राहत

उद्धव को नहीं मिली राहत

नई दिल्ली। शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह के मामले में सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे को राहत नहीं मिली है। सर्वोच्च अदालत ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिव सेना मानने के चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में  संसद भवन और महाराष्ट्र विधानसभा में स्थित शिव सेना के कार्यालयों पर शिंदे गुट के नियंत्रण को लेकर भी कुछ नहीं कहा है और पार्टी फंड को लेकर शिव सेना की ओर से उठाई जा रही चिंताओं पर कुछ कहा है। अदालत ने सिर्फ नोटिस जारी किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के बाद कहा- हम आदेश पर रोक नहीं लगा सकते। चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाले उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। उनसे दो हफ्ते में जवाब देने को कहा गया है। बैंक खाते, पार्टी संपत्ति और कार्यालयों को लेकर कोई आदेश नहीं दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के आदेश की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की तीन हफ्ते बाद सुनवाई करेगा।

एकनाथ शिंदे गुट को असली शिव सेना मान कर उसे तीर धनुष चुनाव चिन्ह देने के चुनाव आयोग के फैसले पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने सुनवाई की। एकनाथ शिंदे गुट ने याचिका पर सवाल उठाया। उनके वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि ये मामला हाई कोर्ट जाने का है, ये लोग पहले भी दो बार हाई कोर्ट गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को कार्रवाई करने को हरी झंडी दी थी।

उद्धव ठाकरे की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- चुनाव आयोग के फैसले का आधार बहुमत है। 38 विधायकों के आधार पर फैसला दिया गया। लेकिन चुनाव आयोग ने यह कह कर गलती की है कि विभाजन हुआ है। चुनाव आयोग ने उन विधायकों की संख्या पर भरोसा करके गलती की है, जो अयोग्यता के दायरे में हैं। सिब्बल ने कहा- चुनाव आयोग को संविधान पीठ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए था। शिंदे खेमे के विधायकों के अयोग्य होने की संभावना है।

सिब्बल ने चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि शिव सेना का संविधान ऑन रिकॉर्ड नहीं था, जबकि उसके प्रमाण हैं। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 1999 के संविधान को आधार बना कर फैसला सुनाया, जबकि शिव सेना का संविधान 2018 में बदला जा चुका है।

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