पाकिस्तान में जनता के आवाज़ तेज और तीखी होती जा रही है। यह आवाज़ देश के मूड और मिजाज को बतला दे रही है। ‘द गार्डियन’ के अनुसार जेल से उ रिहाई के बाद सत्तर साल के इमरान खान लोगों की उम्मीद, उनके मसीहा बन कर उभरे हैं। लोग मान रहे है कि वे ही पाकिस्तान का उद्धार कर सकते हैं।ध्यान रहे पिछले साल से ही लोग इमरान की बातें ध्यान से सुन रहे थे।अब लोगों में मानना है कि केवल इमरान ही पाकिस्तान को सेना की चंगुल से मुक्त करा सकते हैं। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकाल सकते हैं।
सबसे पहले पिछले दिनों के घटनाक्रम पर एक नज़र। पिछले एक हफ्ते की हिंसा, अनिश्चितता और राजनैतिक ड्रामेबाजी के बाद पाकिस्तान में फिलहाल अपेक्षाकृत शांति है। कहने की ज़रुरत नहीं कि यह शांति ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकेगी। नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (एनएबी) संपत्ति से जुड़े भ्रष्टाचार के एक मामले में इमरान की कथित भूमिका के चलते उन्हें दो हफ्ते हिरासत में रखना चाहता था। परन्तु वे 48 घंटे में ही बाहर आ गए। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ़्तारी को गैर-क़ानूनी ठहराया और यह आदेश भी दिया कि दो हफ़्तों तक उन्हें किसी भी मामले में गिरफ्तार नहीं किया जाए।
देश की न्यायपालिका जो कह और कर रही है उससे ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में जल्द ही बदलाव की बयार बहेगी। अपनी रिहाई के बाद इमरान पूरी तैयारी और मजबूती के साथ फिर पिच पर हैं। घर पहुँचने के बाद अपने एक वीडियो भाषण, जिसे प्रसारित नहीं होने दिया गया, में उन्होंने अपने विरोधियों को ‘माफिया’ बताया। कहा कि देश में प्रजातंत्र एक पतले और कमज़ोर धागे से झूल रहा है। वे एक बार फिर सेना पर हमलावर हैं। उन्होंने नाम लेकर सेना प्रमुख आसिम मुनीर पर उन्हें गिरफ्तार करने का हुक्म जारी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सेना के मुखिया अपने आप को कानून से ऊपर समझते हैं। इमरान ने अपने समर्थकों से इतवार को “आज़ादी” के लिए प्रदर्शन करने को कहा। निश्चित तौर पर अदालत के हालिया फैसले से इमरान को मजबूती मिली है। यही कारण है कि उन्होंने ऐलान किया है कि वे बुधवार से चुनाव तुरंत करवाने की अपनी मांग को लेकर फिर आन्दोलन शुरू करेंगे। पाकिस्तान की सड़कों और बाज़ारों के फोटो देखने से लगता है कि इमरान के हिमायतियों की संख्या में जबरदस्त इज़ाफा हुआ है। लोग उनसे और उनके इरादों से प्रभावित हैं तथा उनकी ओर खिंच रहे हैं।
एक इश्कबाज़ क्रिकेटर से पाकिस्तान के लोकप्रिय मसीहा नेता बनने की दांस्ता में इमरान ने एक लम्बी दूरी तय की है। राजनीति में उनकी एंट्री के शुरूआती सालों में उनका मजाक होता था। उन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता था। परन्तु समय ने करवट बदली। इमरान की राजनीति ने गति पकड़ी। उनके भाषण बेहतर होने लगे। हावभाव से आत्मविश्वास झलकने लगा और वे जनता में जोश भरने लगे।तब भ्रष्टाचार और अमरीका उनके निशाने पर होते थे। इससे पाकिस्तान के युवाओं और महिलाओं पर ख़ासा असर हुआ। फिर इमरान ने अपना सूफियाना मिजाज़ बनाया। उन्होंने रूहानी मामलों की अपनी सलाहकार बुशरा बीबी से शादी कर ली। इससे व्यक्ति के रूप में उनकी छवि में जबरदस्त बदलाव आया। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा जो मानो फिर से मुसलमान बना हो। अपनी पत्नी (जिनके बारे में पाकिस्तान में अफवाह है कि वे जादूटोना करने में माहिर हैं) की मदद और सेना के समर्थन से 2018 में इमरान प्रधानमंत्री बने। परन्तु देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकलने में नाकाम रहे। इसके बाद भी, लोगों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती रही जबकि सेना का उनसे मोहभंग हुआ। सेना से उनका टकराव तब चरम पर पहुंचा जब वे सेना के मुखिया जनरल कमर जावेद बाजवा से सीधे भिड़ गए। मुद्दा था कि सेना में बड़े पदों पर नियुक्ति का अधिकार किसका हो? सेना ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखला दिया। परन्तु प्रधानमंत्री पद से उनकी विदाई ने जनता में उन्हें और लोकप्रियता दी। और हाल में उन्होंने जो कुछ कहा और किया उससे वे और मकबूल हुए। लोगों का दिल जीतने की उनकी स्टाइल वही है जो अन्य देशों के नेताओं की होती है – अर्थात धर्म और राष्ट्रवाद की बातें करना और मतभेदों और मनभेदों को उभारना।
जैसा कि मैंने इस कॉलम में पिछले हफ्ते भी लिखा था, पाकिस्तान अब बुरी तरह बंटा हुआ है। जनता बनाम सेना का नैरेटिव देश पर हावी है। इमरान खान इस युद्ध का एक मोहरा हैं। उनकी रिहाई हुई है परन्तु वे ज्यादा दिनों तक आजाद नहीं रह पाएंगे क्योंकि उनके खिलाफ अदालतों में 100 से भी ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं। उन पर भ्रष्टाचार से लेकर हिंसा भड़काने तक के आरोप हैं। इमरान ने सेना के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला है। जबकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के राजनैतिक-प्रशासनिक ढांचे में सेना का गढ़ काफी मज़बूत है। सेना की बैसाखियों पर चल रही शहबाज़ शरीफ सरकार ने अधिकारियों को हिंसा में शामिल सभी लोगों को पकड़ने के लिए 72 घंटे का समय दिया है। शरीफ ने यह भी कहा है कि हिंसा की योजना इमरान ने बनाई। उन्होंने ही लोगों को हिंसा करने के लिए उकसाया। इमरान जवाब में अपने समर्थकों को गोलबंद कर रहे हैं। जहाँ तक जनता का सवाल है वह असमंजस में है। एक तरफ इमरान का राष्ट्रवादी प्रोपगेंडा है तो दूसरी ओर सरकार-सेना से बेरहम-बदहाही वाले राज से प्रजातंत्र की प्यास भी है। लोग जाग उठे हैं और यही देश में मची अफरातफरी का कारण है। पाकिस्तान अराजकता के भंवर में फंसता हुआ है। केवल प्रजातंत्र ही नहीं बल्कि एक देश के रूप में भी पाकिस्तान की स्थिरता एक पतले, कमज़ोर धागे से झूल रही है।(कॉपी: अमरीश हरदेनिया)