Chhath Puja 2024: सर्दियों की शुरूआत होने वाली है. दीवाली से थोड़ी-थोड़ी सर्दियों की शुरूआत हो जाएगी. शुरूआती ठंड को गुलाबी ठंड कहा जाता है. गुलाबी ठंड की भीनी सी खुशबू बड़ी सुहानी सी लगती है. दीवाली के बाद ही छठ पूजा की शुरूआत होती है. छठ पूजा का पर्व की शुरूआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है.
छठी मैया का महापर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. छठ पूजा का मुख्य व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है, जब माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करती हैं.
इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं, जिसे सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. छठ पूजा की शुरुआत पहले दिन नहाय-खाय से होती है, जिसके बाद दूसरे दिन लोहंडा और खरना मनाया जाता है. तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है, और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है, जिससे इस पर्व का समापन होता है. (Chhath Puja 2024)
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कब है छठ पूजा?
पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि के साथ छठ पूजा का आरंभ हो जात है. वहीं षष्ठी तिथि को शाम के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर को 12.41 मिनट (ए एम) से आरंभ हो रही है, जो 8 नवंबर को 12 बजकर 34 मिनट (ए एम) पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार 7 नवंबर को ही सूर्य को संध्या अर्घ्य दी जाएगी.
कैलेंडर छठ पूजा 2024
छठ पूजा का पहला दिन 5 नवंबर 2024- नहाय खाय
दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024- संध्या अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उषा अर्घ्य
नहाय खाय का महत्व
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस दिन स्नान करने और भोजन करने का विधान है. नहाय-खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं विशेष रूप से नदी या तालाब में स्नान करती हैं. यदि नदी में नहाना संभव न हो, तो वे अपने घर पर भी स्नान कर सकती हैं.
स्नान के बाद, व्रती महिलाएं भात (चावल), चना दाल, और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं. यह भोजन केवल पूजा की तैयारी के रूप में होता है और व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. नहाय-खाय के इस दिन का महत्व बहुत अधिक होता है, क्योंकि यह छठ पूजा के पर्व की शुरुआत का संकेत देता है.
छठ पूजा में खरना
दूसरे दिन को लोहंडा या खरना कहा जाता है. यह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती हैं.
खरना के प्रसाद को विशेष रूप से मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर तैयार किया जाता है. इस दिन आम की लकड़ी की जलती हुई आग से बनी हुई खीर या अन्य प्रसाद का विशेष महत्व होता है. माताएं इस प्रसाद को अपने परिवार के सदस्यों के साथ बांटकर अपने व्रत को और भी शुभ बनाती हैं. खरना का दिन छठ पूजा के महत्वपूर्ण चरणों में से एक है, जो व्रत के कठिनाइयों को सहन करने का संकल्प और समर्पण दर्शाता है.
तीसरा दिन संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है.
चौथा दिन उषा अर्घ्य
चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं.