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एक नए बाबा की जरूरत थी

भारत में बड़े दिन से बाबाओं की कमी हो गई है। सारे बाबा जेल में हैं या काम धंधा बंद कर चुके हैं या दूसरे धंधे में लग गए हैं। जो अब भी पुराने काम में लगे हैं वे अपनी चमक खो चुके हैं। आशाराम और उनके बेटे नारायण साईं दोनों लंबे समय से जेल काट रहे हैं। गुरमीत राम रहीम भी सजायाफ्ता है और जेल में बंद है। भले भाजपा की राज्य सरकार उसको बार बार पैरोल पर रिहा करे लेकिन असल में उसका असर कम हो गया है। हरियाणा का ही एक और बाबा संत रामपाल भी जेल में है। लाल और हरी चटनी के सहारे कृपा बरसाने वाले निर्मल बाबा ने लाइव दरबार लगाने का काम धंधा बंद कर दिया है। योग सिखाने वाले रामदेव अब कारोबार में रम गए हैं और उनका ज्यादा समय हिसाब किताब करने या विज्ञापन आदि की शूटिंग में जाता होगा। श्री श्री रविशंकर जरूर अभी जीने की कला सीखा रहे हैं लेकिन उनकी भी पहले जैसी चमक नहीं रह गई है।

तभी देश को एक नए और चमत्कारिक बाबा की जरूरत थी। बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वह जरूरत पूरी की है। वे अचानक धूमकेतु की तरह उभरे हैं। चारों तरफ उन्हीं की चर्चा है। कुछ लोग उनको हिंदू धर्म का सबसे प्रबल उद्धारक और सनातन का रक्षक मान रहे हैं तो कुछ लोगों की नजर में वे अंधविश्वास फैलाने वाले ढोंगी हैं। लेकिन यह मामूली बात नहीं है कि सिर्फ 26 साल की उम्र के एक नौजवान को लेकर देश की पूरी बौद्धिक जमात परेशान है तो व्यापक हिंदू समाज में एक नया उत्साह देखने को मिल रहा है। उनका दरबार पिछले दिनों नागपुर में लगा तो वहां की अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने बाबा को चुनौती दे डाली कि वे उनके सामने चमत्कार दिखाएं। परंतु चमत्कार दिखाने की नौबत नहीं आई क्योंकि बागेश्वर धाम के बाबा का दरबार दो दिन पहले ही समाप्त हो गया और वे रायपुर चले गए। हालांकि रायपुर जाकर उन्होंने नागपुर के अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति की चुनौती स्वीकार की और उनको रायपुर आने को कहा। सो, चमत्कार दिखाने के दावे और उसकी पोल खोलने की चुनौती दोनों अभी अपनी अपनी जगह कायम हैं। आने वाले दिनों में इसमें और दिलचस्पी पैदा होने की उम्मीद की जा सकती है।

सवाल है कि एक युवा बाबा को लेकर इतनी चर्चा, वाद-विवाद और दिलचस्पी क्यों है? इसका कारण यह है कि बागेश्वर धाम के स्वामी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का मामला पिछले 30 साल में देश में अवतरित हुए दूसरे बाबाओं से जरा अलग है। एक तो धीरेंद्र कृष्ण में नाटकीयता बाकी बाबाओं से थोड़ी ज्यादा है। अब तक नाटकीयता दिखाने में आशाराम और गुरमीत राम रहीम में टक्कर थी, लेकिन धीरेंद्र कृष्ण उन दोनों से एक कदम आगे हैं। दूसरा कारण यह है कि उनकी वक्तृता बाकी बाबाओं से बेहतर है। यह अलग बात है कि उनकी भाषा पर बुंदेली बोली का बहुत स्पष्ट असर है इसके बावजूद वे अपनी बात ज्यादा पावरफुल तरीके से टारगेट ऑडिएंस तक पहुंचा पा रहे हैं। तीसरा कारण यह है कि वे जान बूझकर विवाद पैदा करने वाली बातें कर रहे हैं। जैसे विरोधियों के लिए वे बार बार ‘पैंट गीली हो जाएगी’, ‘जीवन भर बागेश्वर धाम में पानी भरना होगा’, ‘ठठरी बांध देंगे’, ‘इलू इलू भी बता देंगे’, जैसे जुमलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आमतौर पर बाबा लोग ऐसी भाषा नहीं बोलते हैं।

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के अत्यधिक ध्यानाकर्षण का एक कारण यह है कि उन्होंने अपने प्रवचन को या भक्तों के साथ अपने संवाद को समकालीन राजनीतिक विमर्श के साथ जोड़ दिया है। समकालीन राजनीति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विमर्श धर्मांतरण रोकने या सनातन की रक्षा का है। वे भक्तों के मन की बात जान लेने या चमत्कार दिखाने के साथ साथ धर्मांतरण रूकवाने, घर वापसी कराने, हिंदू धर्म का गौरव लौटाने और सनातन की रक्षा की बात भी कर रहे हैं। अपने ऊपर हो रहे हमले को लेकर वे समर्थकों से बार बार कह रहे हैं कि यह सनातन को मिटाने के प्रयास का हिस्सा है, आगे अभी और चुनौतियां आएंगी। याद करें कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने समर्थकों से कहते रहते हैं कि और हमले झेलने के लिए तैयार रहें। बहरहाल, धीरेंद्र कृष्ण को लेकर सच या झूठ लेकिन यह प्रचार है कि उनके प्रयास से बुंदेलखंड में अनेक लोगों ने घर वापसी की है। यानी दूसरा धर्म छोड़ कर हिंदू धर्म में लौटे हैं। तभी संभव है कि इन कारणों से उनके खिलाफ या समर्थन का अभियान ज्यादा तेजी से फैलना शुरू हुआ हो। इसके अलावा कोई और कारण नहीं दिख रहा है कि किसी बाबा को लेकर तमाम बौद्धिक जमात इतनी बेचैन हो जाए और दूसरी ओर हिंदुवादी राजनीति की सारी ताकतें उसके समर्थन में उतर जाएं।

जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में देश के तमाम न्यूज चैनलों पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के इंटरव्यू हुए हैं या उनको लेकर खबरें चली हैं वह अनायास नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं कि देश की बाकी समस्याओं या विवाद के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा किया जा रहा है लेकिन असलियत यह है कि शुरुआत अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने की और सोशल मीडिया के जरिए बौद्धिक जमात ने उसको विस्तार दिया। उनके समर्थक तो बाद में मैदान में उतरे। लेकिन जब उतर गए तो उन्होंने कमान संभाल ली है। हिंदुवादी संगठनों के साथ साथ न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के योद्धा भी मैदान में डटे हैं। कम से कम अगले लोकसभा चुनाव तक हिंदू मानस को प्रभावित करने के लिए बागेश्वर धाम के बाबा को विमर्श के केंद्र में बनाए रखा जाएगा।

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को लेकर चल रही राष्ट्रीय बहस से एक अच्छी बात यह हुई है कि मिशनरियों से जुड़े ईसाई धर्मगुरुओं और मस्जिद-मदरसों से जुड़े मौलानाओं के चमत्कारों पर भी चर्चा शुरू हुई है। बागेश्वर धाम बाबा के समर्थक इसे ‘फादर और चादर’ कह कर संबोधित कर रहे हैं। ध्यान रहे अनेक पादरियों के लाइव शो देश में चलते हैं, जिनमें वे मंच पर चमत्कार दिखाते हैं और असाध्य रोगियों को ‘हालेलुया हालेलुया’ कह कर ठीक कर देते हैं। इसी तरह झाड़-फूंक करने वाला मौलाना भी जगह जगह चमत्कार दिखाते रहते हैं। बाबा के समर्थकों का कहना है कि ‘फादर और चादर’ का चमत्कार अगर आस्था का मामला है तो बागेश्वर धाम के बाबा का चमत्कार अंधविश्वास कैसे है? यह अच्छा और तार्किक सवाल है। निश्चित रूप से देश की बौद्धिक जमात को पहल करनी चाहिए और हर तरह के अंधविश्वास को लेकर विमर्श शुरू करना चाहिए। अगर इसी बहाने देश के हर धर्म के नागरिकों को अंधविश्वास और अंधश्रद्धा से मुक्ति मिल जाए तो उससे अच्छी बात क्या हो सकती है?

बहरहाल, अब बागेश्वर धाम के बाबा का परिचय जान लें। बागेश्वर धाम मध्य प्रदेश के छतरपुर में है। यह बालाजी को समर्पित सिद्ध स्थान माना जाता है, जहां के बारे में कहा जाता है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा भी सत्संग किया करते थे। कोई चार साल पहले 22 साल की उम्र में शास्त्री की उपाधि लेने के बाद धीरेंद्र कृष्ण ने बागेश्वर धाम में अपना सत्संग शुरू किया। चार साल में उन्होंने और उनके प्रतिबद्ध भक्तों ने सोशल मीडिया का ऐसा शानदार इस्तेमाल किया, जैसा इससे पहले किसी बाबा ने नहीं किया था। आज सोशल मीडिया उनके चमत्कारों के वीडियो से भरा है और समूचा देश उनके बारे में चर्चा कर रहा है। कई बड़े बाबाओं की गद्दी खतरे में दिख रही है और उधर से भी हमले शुरू हो गए हैं। उनकी ताकत यह है कि रामभद्राचार्य जैसे सम्मानित संत का समर्थन उनको है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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