करीब बारह साल पहले, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद से दुनिया ने किनारा कर लिया था। अपने देश के नागरिकों को कुचलने के लिए उन्हें जम कर लताड़ा गया। सीरिया पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगे। उनकी दमनकारी नीतियों के चलते सीरिया में बर्बर गृहयुद्ध हुआ। बशर अल-असद ने सत्ता में बने रहने के लिए रासायनिक बमों, वैगनर समूह के भाड़े के सैनिकों और ईरान-समर्थित निजी सेनाओं का जम कर उपयोग किया। सीरिया के हजारों नागरिक उनकी बेरहमी का शिकार होकर अपनी जान से गए। सीरिया की आबादी के करीब आधे अर्थात 1.3 करोड़ लोगों को अपना घरबार छोड़ना पड़ा। ऐतिहासिक इमारतें धूल में मिल गईं।शहर के शहर बर्बाद हो गए और जो बचे, उनमें रहने वाले नहीं थे। देश की अर्थव्यवस्था पर माफिया काबिज है। युद्ध के पहले तक 50 सीरियाई पौंड के बदले एक अमरीकी डॉलर मिलता था। अब एक डॉलर खरीदने के लिए 8,700 सीरियाई पौंड देने पड़ते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि उन्होंने इस्लामी आईएसआईएस को बढ़ावा दिया। तभी फ्रांस, अमेरिका, योरोपीय संघ की पश्चिमी बिरादरी में कई देश वैश्विक रंगमंच पर असद को ‘युद्ध अपराधी’ करार देते रहे है।
लेकिन अचानक अब दुनिया में असद को ले कर नज़रिया बदला है। इसकी शुरुआत फरवरी में सीरिया में आये भयावह भूकंप के बाद हुई। बशर अल-असद ने इस आपदा में अवसर देखा। उन्हें लगा कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनकी वापसी का यह अच्छा मौका है। उन्होंने सभी देशों के अपील की कि भूकंप के कारण हुई बर्बादी की हकीकत में उनके देश पर लगे प्रतिबंध हटाए जाएं। कुछ देशों ने प्रतिबन्ध स्थगित किए। मध्यपूर्व के कुछ देशों ने राहत सामग्री से लदे कई हवाईजहाज़ भेजे और अपने उच्च अधिकारियों को भी हालात का जायजा लेने सीरिया भेजा।
भूकंप की बर्बादी असद के लिए अच्छे दिन लाई। सुन्नी अरब देशों कीबिरादरी ने अपनी जमात की अरब लीग बैठक में असद को न्यौता। सीरिया की अरब लीग की सदस्यता, जो 2011 में निलंबित कर दी गयी थी, 18 मई को बहाल कर दी गयी। उस दिन जब बशर अल-असद जेद्दाह पहुंचे तो उनका शानदार स्वागत हुआ। उनका चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था। सड़कों पर सीरिया के झंडे लहरा रहे थे। सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने मुस्कुराते हुए उन्हें गले लगाया। यह निश्चित रूप से असद के लिए अनहोनी थी। शिखर बैठक में असद ने शांति पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि आज हम अरब देशों के बीच एकता के एक नए दौर की शुरुआत होगी ताकि हमारे क्षेत्र में शांति रहे, विकास हो और समृद्धि आये और हम जंग और बर्बादी से बच सकें।” उन्होंने कहा कि अरब देशों को अन्य देशों के हस्तक्षेप के बिना अपने भविष्य को स्वयं आकार देना चाहिए। मजे की बात यह है कि सीरिया स्वयं ईरान और रूस के सैन्य समर्थन पर निर्भर है!
असद की अरब देशों के कुनबे में बिना-शर्त वापसी बहुत अहम है। अरब दुनिया ने असद से अपनी दूरियां ख़त्म करने का निर्णय लिया है। यही कारण है कि यूएई के बाद अब सऊदी अरब ने भी सीरिया में सरकार के विरोधियों को धन और हथियार उपलब्ध करवाना बंद कर दिया है। शायद उन्हें अहसास हो गया है कि असद को सत्ता से बाहर करने का उनका दस वर्ष तक चला अभियान असफल हो गया है। फिर अरब देश यह भी चाहते कि उनके यहाँ पनाह लिए हुए सीरियाई नागरिक, जिनकी संख्या में भूकंप के बाद और वृद्धि हुई है, अपने देश वापस चले जाएं। इसके अलावा ईरान का मसला भी है। सऊदी अरब और ईरान के बीच की गहरी खाई में रिश्ता बनते हुए भी खुन्नस है। बावजूद इसके मध्यपूर्व के इन दो सबसे शक्तिशाली देशों के बीच सीरिया अब टकराव का कारण नहीं है। अरब देशों का यह भी मानना है कि यदि सीरिया को अकेला छोड़ दिया गया तो वह एक मुसीबत बन जायेगा क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पर ड्रग माफिया का कब्ज़ा है।
असद के विरोधियों का कहना है सीरिया पर असद की पकड़ कमज़ोर है और देश के उत्तरी भाग का एक बड़ा हिस्सा उनके नियंत्रण में नहीं है। सीरिया के आसपास के देशों में शरण लिए हुए लाखों सीरियाई उनके एकदम खिलाफ हैं। एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि क्या अरब देशों की तर्ज पर पश्चिमी देश भी असद को गले लगायेंगे? क्या अमरीका और यूरोप, असद को एक और मौका देना चाहेंगे? क्या युद्ध में जो ज़ुल्म उन्होंने किये हैं उन्हें भुला दिया जायेगा, उन्हें माफ़ कर दिया जायेगा? और यदि सीरिया को माफ़ कर दिया जाता है तो फिर क्या रूस को भी माफ़ किया जायेगा।
अगर मिस्त्र, सऊदी अरब और यूएई ने सीरिया के साथ व्यापार करना शुरू कर दिया तो अमरीका को सीरिया पर प्रतिबंधों को कमज़ोर होने से बचाने के लिए अपने इन मित्र देशों पर भी प्रतिबन्ध लगाने होंगे। और अगर वह ऐसा नहीं करता तो दुनिया में अमरीका की कूटनीतिक, रणनैतिक और आर्थिक हैसियत में कमी आएगी। जाहिर है कि अन्यों के साथ-साथ पश्चिम के लिए भी असद को निगलना और उगलना दोनों ही मुश्किल है।
पिछले कुछ सालों से अमरीका और यूरोप दुनिया के अन्य हिस्सों में फौजी कार्यवाही से बचने रहे हैं और दबाव बनाने के लिए आर्थिक प्रतिबंधों पर ज्यादा भरोसा करते आये हैं। क्यूबा, म्यांमार, रूस सहित कई अफ़्रीकी और लातिन अमरीकी देशों पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये गए हैं। ऐसे देश चीन की मुंह तक रहे हैं। और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति कायम करवाने में भूमिका निभाई थी। जाहिर है कि इससे चीन दुनिया के दूसरे चौधरी के रूप में उभरा और यह आशा जागी कि मध्यपूर्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
जहाँ तक बशर अल-असद का सवाल है, उनके राजनैतिक और कूटनैतिक कद में इज़ाफा हुआ है। और वे इसका पूरा फायदा उठाएंगे। सीरिया के अरब लीग में शामिल होने से यह समूह अब दुनिया के लड़ाई-झगड़ों को निपटाने (या बढ़ाने) में ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सकेगा। पहले से बंटी दुनिया की मुसीबतें कम होती नहीं दिख रही हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)