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20-06-2025 Vol 19

प्रतिबंध तेरे रूप अनेक!

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स्वस्थ प्रतिक्रिया यह होती कि भाजपा डॉक्यूमेंटरी के खिलाफ अपना जवाबी नैरैटिव सामने रखती। दरअसल, भाजपा से असहमत बहुत से लोग भी इस मौके पर यह डॉक्यूमेंटरी बनाने की बीबीसी की मंशा पर सवाल उठा रहे थे। लेकिन प्रतिबंध की मानसिकता ने कहानी पलट दी है।

बीबीसी ने अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए असहजता पैदा करने वाली डॉक्यूमेंटरी बनाई, तो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के पास पूरा अधिकार है कि वह बीबीसी की मंशा और डॉक्यूमेंटरी में बताई गई कहानी के तथ्यों सवाल उठाएं। उसकी स्वस्थ प्रतिक्रिया यह होती कि डॉक्यूमेंटरी के खिलाफ अपना जवाबी नैरैटिव दुनिया के सामने रखती। दरअसल, भाजपा से असहमत बहुत से लोग भी इस मौके पर यह डॉक्यूमेंटरी बनाने की बीबीसी की मंशा पर सवाल उठा रहे थे। लेकिन डॉक्यूमेंटरी पर प्रतिबंध लगा कर भारत सरकार ने एक स्वस्थ चर्चा और बहस का मौका खत्म कर दिया है। अगर सरकार आकलन करे, तो उसे अहसास होगा कि प्रतिबंध लगाने का उलटा असर हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रतिबंध की खबर व्यापक रूप से आई है। इससे जो मामला एक टीवी चैनल के ब्रिटेन के अंदरूनी प्रसारण तक सीमित था, उसकी बात दुनिया भर में पहुंच गई है।

इधर भारत में इस कारण डॉक्यूमेंटरी के प्रति लोगों में नई उत्सुकता पैदा हुई है और कई सरकार विरोधी समूह एक तरह के राजनीतिक प्रतिरोध के रूप में डॉक्यूमेंटरी की स्क्रीनिंग कर रहे हैं। इसे रोकने की कोशिश कर सत्ता पक्ष से सहानुभूति रखने वाले समूह समाज में एक नए विवाद को जन्म दे रहे हैं। मसलन, जिस तरह स्क्रीनिंग रोकने के लिए पूरे जेएनयू की बिजली काटी गई और जिस तरह अपने निजी मोबाइल पर डॉक्यूमेंटरी देख रहे छात्रों पर पथराव किया गया, उसे लोकतंत्र के न्यूनतम तकाजों का उल्लंघन माना जाएगा। यह समझना मुश्किल है कि इस डॉक्यूमेंटरी से सत्ता पक्ष इतना परेशान क्यों हुआ है? देश की राजनीति में गुजरात दंगों से जुड़े घटनाक्रम पर निर्णय एक तरह से हो चुका है और यह भाजपा के पक्ष में गया है। इससे उस ध्रुवीकरण में मदद मिली है, जो नरेंद्र मोदी के काल में भाजपा की ताकत का बड़ा आधार बना हुआ है। इसलिए इस डॉक्यूमेंटरी से उसकी इस ताकत में सेंध नहीं लग सकती। फिर भी सक्षा पक्ष विचलित हुआ है, तो उससे उसके विरोधियों को यह कहना मौका मिला है कि सच घूम-फिर कर बोल ही पड़ता है। इसलिए सत्ता पक्ष को डॉक्यूमेंटरी से संबंधित अपनी मौजूदा रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए।

NI Editorial

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