यूक्रेन-रूस युद्ध ने सात देशों के समूह जी-7 को नया जीवन और नए आयाम दिए है। पिछले कुछ वर्षों में भू-राजनैतिक परिवर्तनों और नए साझा खतरों जैसे क्लाइमेट चेंज और आतंकवाद के उभरने से जी-20, जिसके सदस्यों में चीन और भारत सहित कई विकाशील देश शामिल हैं, जी-7 से ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया था। दुनिया के सबसे बड़े और सबसे धनी प्रजातान्त्रिक देशों के जमावड़े जी-7 की पूछ-परख कुछ कम हो गई थी। वह पुराना और आउट ऑफ़ डेट लगने लगा था। परन्तु इस साल जी-7ने अपने पुराने जलवे दिखाए।
जी-7 का गठन सन 1970 के दशक के पहले ‘ऑयल शॉक’ (अनेक कारणों से तेल की कीमतों में इज़ाफे और सप्लाई में कमी) के बाद हुआ था।उसके बाद इस संगठन ने वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने में महती भूमिका निभायी।इस बार जी-7 देशों के शीर्ष नेता एक अंतर्राष्ट्रीय संकट की छाया में मिले। निसंदेह युद्ध दुनिया के लिए नए नहीं हैं परन्तु यूक्रेन-रूस युद्ध का असर बहुत व्यापक है। इसी युद्ध ने जी-7 को महत्वपूर्ण बनाया।
शिखर बैठक हिरोशिमा में हुई। हिरोशिमा जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा का गृहनगर है और परमाणु हमले का शिकार होने वाला दुनिया का पहला शहर है। इस शहर को इसलिए चुना गया क्योंकि यह कल, आज और कल तीनों का प्रतिनिधित्व करता है। यह शहर हमें याद दिलाता है कि परमाणु हमले कितनी त्रासदी और कितनी बर्बादी लाते हैं। यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में भी परमाणु अस्त्रों के इस्तेमाल की बात होती रहती है क्योंकि रूस के पास करीब 6,000 एटॉमिक हथियारों का जखीरा है।
और फिर चीन भी तो है। शिखर बैठक एक तरह से चीन की देहरी पर हुई। बीजिंग, हिरोशिमा के पश्चिम में केवल 1,000 मील की दूरी पर है। चीन की बढ़ती आर्थिक और सैनिक ताकत और प्रभाव, जी-7 देशों, विशेषकर अमेरिका और जापान, के लिए चिंता का सबब है। यूक्रेन युद्ध के मामले में सातों देश एकमत हैं। सभी मानते हैं कि यूक्रेन की मदद की जानी चाहिए और रूस पर प्रतिबन्ध लगने चाहिए। परन्तु चीन के मामले में वे एकमत नहीं है। अप्रैल में बीजिंग की यात्रा के बाद, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से जब चीन द्वारा ताइवान पर हमले की सम्भावना के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, “यूरोप को केवल अमरीका का पिछलग्गू नहीं बने रहना चाहिए।”
जी-7 शिखर बैठक के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा चर्चा यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के अचानक हिरोशिमा पहुँचने पर रही। हिरोशिमा आते समय वे इसी तरह बिना पूर्व घोषणा के सऊदी अरब में अरब लीग की बैठक में पहुँच गए थे। जाहिर है कि वे अपने मित्रों का दायरा नाटो और अमेरिका के साथी देशों से बड़ा करना चाहते हैं। हिरोशिमा में पहली बार उन्हें मोदी और ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इंसियो लूला दा सिल्वा से आमने-सामने मिलने का मौका मिला। भारत और ब्राज़ील दोनों यूक्रेन पर हमले के बाद भी रूस से दोस्ताना सम्बन्ध बनाये हुए हैं। ज़ेलेंस्की के साथ अपनी पहली बैठक में मोदी ने हमले की निंदा करने से बचते हुए केवल यह कहा कि भारत युद्ध ख़त्म करवाने के लिए ‘जो कुछ भी कर सकता है वह करेगा’।मोदी ने युद्ध को राजनैतिक या आर्थिक मसला न बताते हुए उसे केवल मानवता का मसला बताया। ज़ेलेंस्की ने युद्ध ख़त्म करने और शांति बहाल करने के यूक्रेन के प्रयासों में साझेदार बनने का मोदी से अनुरोध किया। भारत अब भी यूक्रेन के मामले में साफ़-साफ़ बात करने के लिए तैयार नहीं है। परन्तु ज़ेलेंस्की ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। इस मामले में अब दुनिया ही निगाहें जी-20 पर हैं।
हिरोशिमा में जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की अध्यक्षता में आयोजित जी-7 की दो-दिवसीय शिखर बैठक आज के अनिश्चितता से भरे परिदृश्य में सफल मानी जा सकती हैं। जी-7 देशों की आर्थिक ताकत कम हुई है। अपेक्षाकृत छोटे और निर्धन देश अमरीका के साथ हाथ मिलाने में हिचकिचा रहे हैं और चीन उनकी पहली पसंद है। इस साल की शिखर बैठक में जी-7 देशों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को लचीला बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। यह संकल्प भी लिया कि हम “ज़रूरी सामान की सप्लाई चैनों पर अपनी ज़रुरत से ज्यादा निर्भरता समाप्त करेंगे।” यह संकल्प इस बात का सुबूत है कि जी-7 के देशों के चीन से कितने करीबी व्यापारिक रिश्ते हैं।
शिखर बैठक की सफलता के पीछे है किशिदा की मेहनत। बैठक के पहले किशिदा ने जम कर होमवर्क किया। वे कई देशों की यात्रा पर गए। वे मिश्र, घाना, भारत, केन्या, मोजाम्बिक और सिंगापुर के नेताओं से मिले और उनके विचार जाने। उनके विदेश मंत्री ने लैटिन अमरीका की यात्रा की। द इकोनॉमिस्ट के साथ इंटरव्यू में किशिदा ने कहा था, “रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण आर्थिक और औद्योगिक दृष्टि से कम विकसित देशों को बहुत परेशानियाँ झेलनी पड़ रही हैं…और इस तरह की स्थितियों का फायदा उठाकर पूरी दुनिया को दो हिस्सों में बांटने का अभियान भी चल रहा है।”
जापान की जी-7 के अध्यक्षता के दौरान समूह के स्थायित्व और एकता में बेहतरी आने के साथ-साथ उसकी शोहरत में भी बढोत्तरी होने की उम्मीद है। दुनिया के मंच पर उसकी भूमिका में भी इज़ाफा होगा। इस साल की शिखर बैठक का इस्तेमाल जी-7 यूरोप और अटलांटिक महासागर के आसपास के देशों और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा सरोकारों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए भी किया गया। यह बैठक एक युद्ध पर प्रतिक्रिया के साथ-साथ भविष्य में युद्ध न होने देने की कवायद भी थी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)