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अदानी को बचाने कौन आया?

अहम सवाल है और इससे भारत के क्रोनी पूंजीवाद के भाई-भाई चेहरों का एक्सपोजर होता है। सवाल है गौतम अदानी की कंपनी का एफबीओ सब्सक्राइव नहीं हो रहा था तब कौन उनको बचाने आया? संकट के समय जो बचाने के लिए आगे आता है वह या तो सच्चा मित्र होता है या साझेदार होता है। अदानी समूह के एफपीओ यानी फॉलोऑन पब्लिक इश्यू को सब्सक्राइव करने में जिन लोगों का नाम आ रहा है उन्हें देख कर यह नहीं कहा जा सकता है कि वे अदानी के सच्चे मित्र हैं। हां, उनसे यह जरूर पता चलता है कि शेयर बाजार के खेल में और देश की संपत्ति पर एकाधिकार बनाने के खेल में कौन-कौन और लोग शामिल हैं। अंदाजा सभी को पहले से था अब लोगों को यकीन भी हो गया है।

ध्यान रहे गौतम अदानी अपना एफपीओ वापस ले चुके हैं। उन्होंने ‘नैतिकता’ का तकाजा देते हुए कहा कि बाजार की उथलपुथल को देखते हुए कंपनी के बोर्ड ने फैसला किया कि ऐसे समय में निवेशकों को जोखिम में नहीं डाला जा सकता है। इसलिए 20 हजार करोड़ रुपए का एफपीओ पूरी तरह से सब्सक्राइब होने के बाद भी नैतिकता के आधार पर कंपनी एफपीओको रद्द कर रही है। इसे वापस ले रही है। कंपनी सभी निवेशकों के पैसे वापस करेगी। हालांकि इसके बावजूद शेयर बाजार में उनकी कंपनियों के शेयरों का गिरना नहीं रूका। नैतिकता की उनकी दुहाई पर न तो किसी को यकीन हुआ और न किसी ने उसको गंभीरता से लिया।

कंपनी ने यह एफपीओ 27 जनवरी को पेश किया था।पहले दिन यह एक फीसदी से भी कम सब्सक्राइव हो पाया। इसलिए क्योंकि जिस दिन पेश किया गया उसके ठीक एक दिन पहले हिंडनबर्ग की यह रिपोर्ट आ गई थी कि कंपनी ने धोखाधड़ी करके अपने शेयरों के भाव बढ़ रखें हैं। कंपनी के शेयर 85 फीसदी तक गिर सकते हैं। सो, पहले दिन एफपीओ एक फीसदी से कम सब्सक्राइव हुआ। इसके बाद सोमवार यानी 30 जून को जब शेयर बाजार फिर खुला तो अदानी के शेयरों में गिरावट जारी रही। उस दिन मेरे सुबह छपे ‘अपन तो कहेंगे’ में ये लाइन थी- गौतम अदानी येन केन प्रकारेण प्रधानमंत्री से किसी जुगाड़, किसी खाड़ी देश या चाइनीज या रूसी प्रभाव वाले निवशेक फंडों, क्रोनी देशी निवेशकों से अपने शेयर खरीदवा कर बाजार में और गिरावट को रोकने की कोशिश करेंगे।

दो दिन बाद वहीं हुआ। सोमवार को एफपीओ तीन फीसदी सब्सक्राइव हुआ। उसी समय कंपनी ने साफ कर दिया था कि वह समय सीमा नहीं बढ़ाएगी और मंगलवार को एफपीओ बंद हो जाएगा। अचानक मंगलवार को अदानी समूह का एफपीओ सौ फीसदी से ज्यादा सब्सक्राइव हो गया। लेकिन तीन हजार रुपए से ज्यादा कीमत का शेयर सौ फीसदी सब्सक्राइव होने के अगले ही दिन 22 सौ रुपए पर आ गया था, जिसके बाद अदानी ने इसे वापस लेने का ऐलान किया।

एफपीओ बंद होने से पहले इसे खरीदने वालों में अलग अलग स्रोत से मीडिया में छह नाम सामने आए है। सचमुच खाडी के एक इनवेस्टर और क्रोनी देशी निवेशकों ने एफपीओं में पैसा लगाया। पहला नाम संयुक्त अरब अमीरात के एक शेख की अबू धाबी स्थित कंपनी आईएचसी है। इसके बारे में रिपोर्ट है कि खुद गौतम अदानी ने आईएचसी के मालिक से बात की। तब उसने 32 सौ करोड़ रुपए एफपीओ में लगाने का फैसला किया। इसके बाद अदानी के उभार से पहले देश के नंबर एक उद्योगति रहे और एक बार फिर नंबर एक की पोजिशन पर पहुंचे मुकेश अंबानी का नाम था। उसके बाद जिंदल समूह के सज्जन जिंदल और एयरटेल के मालिक सुनील भारती मित्तल का नाम था। उसके बाद टोरेंट फार्मा और जायडस फार्मा का नाम है। हालांकि किसी ने आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की है। लेकिन इन नामों से अपने आप जाहिर है कि जिस क्रोनी कैपिटलिज्म के भारत में फलने-फूलने की चर्चा है उसमें अदानी के अलावा भारत में फिलहाल और कौन कौन शामिल हैं।

सोचें, किस तरह से योजनाबद्ध तरीके से अदानी के एफपीओ को बचाने की कोशिश हुई थी? यह हकीकत है कि खुदरा निवेशक इस एफपीओ से दूर रहे थे। कुल 4.55 करोड़ शेयरों में से खुदरा निवेशकों के लिए 2.29 करोड़ रुपए शेयर आरक्षित किए गए थे। यह कुल शेयरों का आधा था। लेकिन इसमें से सिर्फ 12 फीसदी शेयर सब्सक्राइव हुए। यानी खुदरा निवेशकों ने अपने लिए आरक्षित शेयरों में सिर्फ 12 फीसदी खरीदा। इतना ही नहीं कंपनी के कर्मचारियों के लिए 1.6 लाख शेयर आरक्षित थे पर वह भी पूरी तरह से सब्सक्राइव नहीं हुए। कर्मचारियों के लिए आरक्षित शेयर में से भी सिर्फ 55 फीसदी ही बिके।

सबसे ज्यादा जो शेयर बुक हुआ वह नॉन इंस्टीट्यूशनल निवेशकों के लिए आरक्षित था। उनके लिए आरक्षित 96.16 लाख शेयर आरक्षित थे लेकिन उन्होंने इससे तीन गुना ज्यादा बुक किया। इसके बाद क्वालिफायड इंस्टीट्यूशनल बायर्स यानी क्यूआईबी के लिए 1.28 करोड़ शेयर आरक्षित थे और उन्होंने लगभग इतना ही बुक किया। बांबे स्टॉक एक्सचेंज के डाटा के मुताबिक नॉन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने तीन गुना और क्यूआईबी ने सौ फीसदी शेयर बुक किया। इसकी डिटेल अभी आनी बाकी है कि ये लोग कौन हैं। हालांकि शेयर बाजार में एफपीओ आने से पहले ही अदानी समूह ने 59 सौ करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा जुटा लिए थे। और यह इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स के जरिए जुटाया गया था। इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स में अबू धाबी इन्वेस्टमेंट ऑथोरिटी, गोल्डमैन सैक्स, नोमुरा फाइनैंशियल्स, सिटी ग्रुप, मॉर्गन स्टेनले आदि शामिल हैं। बाद में जब शेयर बाजार गिर रहा था तब भी भारत सरकार की दो बड़ी कंपनियों, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और एलआईसी ने अडानी के शेयरों में पैसा लगाया।

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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