अगर केंद्रीय मंत्रियों से लेकर अरुणाचल भाजपा के वक्तव्यों को स्वीकार कर लिया जाए, तो यह समझना किसी भारतीय नागरिक के लिए मुश्किल हो जाएगा कि चीन के साथ हमारी नई दिक्कत क्या है?
ये दोनों खबरें परेशान करने वाली हैं। पहली खबर यह है कि लद्दाख के देपसांग क्षेत्र में चीन के साथ चल रही सैनिक कमांडरों की पिछली बैठक में चीन ने वहां 15 किलोमीटर का बफर जोर बनाने की मांग की। चीन की मर्जी यह है कि उसमें कम से कम दस किलोमीटर का बफर जोन उन इलाकों में बने, जिन पर भारत का नियंत्रण है। इसके पहले टकराव के दूसरे स्थलों पर भारत पांच किलोमीटर का बफर जोन बनाने पर राजी हुआ था। संभवतः भारत के लिए इस पर राजी होने की मजबूरी भाजपा सरकार के इस रुख की वजह से बनी थी कि अप्रैल 2020 से लद्दाख में चीन ने कोई घुसपैठ नहीं की। बहरहाल, दूसरी खबर अरुणाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के एक दल का यह दावा है कि चीन ने वहां 1962 के बाद भारत की जमीन पर कोई कब्जा नहीं किया है। प्रदेश भाजपा के दल का दावा है कि चार महीनों तक हर सीमाई गांव का दौरा करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा।
अब सवाल है कि क्या लद्दाख के देपसांग में भारत चीन की मांग पर राजी होगा? रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा करने का मतलब चीन की वहां आक्रामक हुई सामरिक रणनीति को मान्यता दे देना होगा। प्रश्न यह भी है कि जिस समय चीन के साथ एक कूटनीतिक टकराव का दौर है, सत्ताधारी दल की एक प्रदेश इकाई ने सार्वजनिक रूप से ऐसा बयान क्यों दिया, जिससे चीन का पक्ष मजबूत होता है? चीनी मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 19 जून 2020 के ‘ना कोई घुसा है…’ वाले बयान से लेकर विभिन्न मंत्रियों की तरफ से उसे क्लीन चिट देने से संबंधित बयानों को खूब प्रचारित किया गया है। दरअसल, अगर केंद्रीय मंत्रियों से लेकर अरुणाचल भाजपा के वक्तव्यों को स्वीकार कर लिया जाए, तो यह समझना किसी भारतीय नागरिक के लिए मुश्किल हो जाएगा कि चीन के साथ हमारी नई दिक्कत क्या है? आखिर, क्यों भारत उसके खिलाफ लामबंदी में शामिल हो रहा है? स्पष्ट है, ऐसे बयानों से सत्ताधारी दल को देश के अंदर भले लाभ होता हो, लेकिन भारत को इनसे खासा नुकसान हो रहा है।