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सुधार का विकल्प नहीं

आईएमएफ के बोर्ड ने अभी सिर्फ बांग्लादेश को राहत दी है। इससे यह संकेत जरूर मिला है कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद पाकिस्तान और श्रीलंका से अधिक मजबूत है। लेकिन बांग्लादेश को भी कठिन सुधार लागू करने ही होंगे।

इस वक्त एक ऐसी स्थिति हमारे सामने है, जब भारत के तीन पड़ोसी देश आर्थिक संकट में फंस चुके हैँ। तीनों ने आस अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से जोड़ी, लेकिन बोर्ड ने अभी सिर्फ बांग्लादेश को राहत दी है। इससे यह संकेत जरूर मिला है कि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद पाकिस्तान और श्रीलंका से अधिक मजबूत है। पाकिस्तान और श्रीलंका का हाल यह है कि आईएमएफ ने उनके लिए जो कर्ज मंजूर किया है, उसकी रकम भी जारी नहीं हो पा रही है, क्योंकि ये दोनों देश आईएमएफ की शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहे हैँ। जाहिर है, इसका एक बड़ा कारण उनकी आर्थिक बुनियाद का हिल जाना है। इस बीच इस हफ्ते आईएमएफ के बोर्ड ने बांग्लादेश को 4.7 बिलियन डॉलर का कर्ज भुगतान करने को मंजूरी दे दी। लेकिन विशेषज्ञों ने उचित चेतावनी दी है कि इस राहत से बांग्लादेश की आर्थिक मुश्किलें हल नहीं होंगी। इसलिए कि वहां भी ये समस्याएं अब काफी गंभीर रूप ले चुकी हैं। अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि आईएमएफ से मिली मदद फ़ौरी तौर पर समस्या का सिर्फ आंशिक समाधान है। वास्तिवक समाधान तो आर्थिक नीतियों में ऐसा बदलाव लाकर ही हो सकता है, जिससे वित्तीय अनुशासन कायम हो और साथ ही दीर्घकालिक विकास का रास्ता तैयार हो।

बांग्लादेश के आर्थिक इंडिकेटर मिली-जुली तस्वीर पेश करते हैं। कुछ संकेतकों से स्थिति में सुधार की झलक मिली है। मसलन, पिछले नवंबर और दिसंबर में बांग्लादेश को कुल निर्यात से होने वाली आमदनी में तेजी से सुधार हुआ। लेकिन वस्त्र के मुख्य निर्यात की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले महीने वस्त्र निर्यात के ऑर्डर में 30 प्रतिशत गिरावट आई। कई मोर्चों पर सरकार के सामने कठिन फैसले लेने की चुनौती बनी हुई है। लेकिन इस चुनावी साल में ऐसे निर्णय लेना प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की सरकार के लिए आसान नहीं होगा। पहले ही सब्सिडी में लगातार कटौती से गैस, केरोसीन, बिजली और पानी के शुल्कों में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है। सरकार इस वर्ष दो किस्तों में बिजली शुल्क में दस प्रतिशत से अधिक की वृद्धि कर चुकी है। लेकिन ऐसे कदम उठाने के अलावा उसके पास शायद कोई और चारा भी नहीं है।

By NI Editorial

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