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बेबाक विचार

इराक की कोख से जन्मा यूक्रेन का युद्ध!

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अगर आप दूसरों को बर्बाद करने पर उतारू हैं तो आप भी बर्बाद होने के लिए तैयार रहें। अगर आप दूसरों का खून बहाने के लिए आतुर हैं तो आपका भी खून बहेगा। ये डींगें सन् 2003 में दुनिया ने बहुत सुनी। 9/11 से खौफजदा दुनिया को अमरीका के हुंकारे तबसही लगे थे। पहले अफगानिस्तान पर हमले और उसके बाद इराक युद्ध – दोनों को दुनिया ने सही और शुभ माना।

आज 20 साल बाद पलटकर देखेंतो क्या नजर आएगा? क्या इराक युद्ध ने दुनिया का भला किया? इस बेजा हमले, के क्या नतीजे निकले? क्या अमरीका और ब्रिटेन का मिलकर इराक पर हमला करना सही निर्णय था?  कतई नही। और ऐसा अमेरिका और ब्रिटेन में भी माना जा रहा है!

एक मई 2003 को अमरीका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने “मिशन हासिल हुआ” वाला भाषण दिया तब वह झूठी शेखी थी।इराक लगभग बर्बाद हो चुका था। वहां देश को अस्थिर और कमजोर करने वाले नेताओं में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया था। इसमें संदेह नहीं है कि सद्दाम हुसैन एक आततायी था जिसे खत्म करना सही था। उसने हजारों इराकियों की जान ली थी। हजारों इराकियों को जेलों में डाल रखा था। उसने विद्रोही कुर्दों के खिलाफ रासायिनक हथियारों का प्रयोग किया था।

ऐसे ही अफगानिस्तान को भी तालिबान के पंजों से छुड़ाना जरूरी था। परंतु उस समय किसी को यह समझ में नहीं आया कि इसका अंतिम नतीजा क्या होगा? सबको तब सब कुछ हरा-हरा नज़र आ रहा था। किसी को यह बात खली नहीं कि अमरीका और ब्रिटेनने ओसामा-बिन-लादेन और जेहादी अतिवादियों की विचारधारा को नष्ट करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून तोड़ा था।

आज बीस साल बाद उन हमलों और उन युद्धों के घातक दुष्परिणाम जाने हुए है। अफगानिस्तान पर वापिस तालिबान काबिज़ हैं। उनका शासन पहले से भी अधिक क्रूर और सख्त है।इराक में अब भी अव्यवस्था और उथलपुथल मची हुई है।इराक में वह अराजकता बनी जिसने इस्लामी स्टेट उर्फ आईसिस नाम का एक दानव पैदा किया।

कोई2,500 साल पहले यूनानी दार्शनिक थ्यूसीइाइदीज ने लिखा था, “युद्ध एक कठोर शिक्षक है’।बीस साल पहले इराक पर हमले ने साबित किया कि युद्ध एक बेवकूफाना हथियार है जो अक्सर आत्मरक्षा के लिए नहीं बल्कि बदला लेने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जार्ज बुश और टोनी ब्लेयर ने एक अनचाहा और अनावश्यक लड़ाई छेड़ी जिसमें लाखों मारे गए। बाद में पता चला कि जिन महासंहारक अस्त्रों के भंडार को नष्ट करने के लिए युद्ध शुरू किया गया था वे हथियारइराक में थे ही नहीं।ब्रितानी प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर लगातारक कहते रहे थे कि इन अस्त्रों ने सद्दाम को दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बना दिया है।जाहिर है इराक लड़ाई पश्चिम की इंटेलिजेंस की ही नहीं बल्कि उसकी लीडरशीप की भी असफलता थी।

इराक के बाद अब यूक्रेन युद्ध की विभीषिका भोग रहा है। अगर इराक नहीं हुआ होता तो शायद यूक्रेन भी नहीं होता क्योंकि इराक ने पुतिन को एक बहाना, जो काफी हद तक तार्किक भी था, दे दिया और वह यह कि रूस जो कर रहा है वह पश्चिम पहले ही कर चुका है। आज जब पश्चिम, उसके मित्र देश और अंतर्राष्ट्रीय संगठन दुनिया के दूसरे देशों को अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करने का पाठ पढ़ाते हैं तो वह इराक के आईने में थोथा पाखंड नजर आता है। उनका दृष्टिकोण शायद यह है कि हम तो अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए कुछ भी करेंगे परंतु जब दूसरे देश अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए कुछ करेंगे तो हम उन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाएंगे, उन्हें खलनायक बताएंगे। मैं साफ़ कर दूं कि मैं किसी भी तरह से यूक्रेन में पुतिन का जो अपराध, पाप हैं उसे सही या उचित नहीं ठहरा रही हूं। परंतु इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि रूस या चीन या ईरान जो कह रहे हैं, वह वे इसलिए कह पा रहे हैं क्योंकि पश्चिम ने इराक पर अकारण हमला किया था।

यह तर्क दिया जा सकता है कि इराक युद्ध गलत जानकारियों का नतीजा था। परंतु झूठ के जिस जाल का सहारा उस युद्ध को शुरू करने के लिए लिया गया था, उसने दुनिया में अराजकता फैलाई। नतीजे में आज चीन और रूस की नई जोड़ी दुनिया के रंगमंच पर उभरती हुई है।हम दो दशक बाद भी इराक युद्ध की छाया से मुक्त नहीं हुए हैं। उस पुराने युद्ध के साथ-साथ अब हमें एक नए युद्ध की कीमत भी अदा करनी पड़ रही है।सो युद्ध एक कठोर शिक्षक नहीं है। वह तो नए युद्धों का जन्मदाता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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