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गपशप

अदानी चिपका तो ब्राह्मणों पर ठीकरा!

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यह बेतुकी बात लगेगी। लेकिन कर्नाटक चुनाव पर जरा गौर करें। कर्नाटक में भाजपा की दुर्दशा क्यों? इसके जवाब में मीडिया और मोदी-शाह के नैरेटिव में जातीय गणित है। कांग्रेस और राहुल गांधी ने भी जातीय जनगणना की बात करके मंडल कार्ड का महत्व बनवाया। मतलब सामाजिक समीकरण बिगड़े इसलिए भाजपा की दुर्दशा। ऐसा नहीं है। मैं मानना हू कि कर्नाटक यदि दक्षिण भारत में हिंदू राजनीति की पहली प्रयोगशाला बना तो वजह प्रदेश के लोगों का सहज-सर्वजनीय मिजाज है। कर्नाटक जातिवादी नहीं था और न है। मैं इंदिरा गांधी-जनता पार्टी के वक्त से कर्नाटक को ऑब्जर्व करते हुए हूं। कन्नड संस्कृति, कन्नड मिजाज में गुंडुराव, रामकृष्ण हेगड़े, देवराज अर्स से कर देवगौड़ा, येदियुरप्पा मतलब ब्राह्मण से ओबीसी सभी मुख्यमंत्री स्वभाव में बिहार के लालू, नीतीश जैसे मंडलवादी नेता कतई नहीं थे। येदियुरप्पा को इन दिनों केवल लिंगायत नेता करार दिया जा रहा है जबकि वे कांग्रेस के वीरप्पा मोईली, एसएम कृष्णा, धर्म सिंह, ऑस्कर फर्नांडीज जैसे निराकार सलाहकार तथा मुख्यमंत्रियों के बनने के परिणामों के खालीपन में हिंदू राजनीति के उभरे एक सर्वमान्य नेता थे। संघ के एचवी शेषाद्री, अनंत कुमार आदि ब्राह्मण, ओबीसी सभी नेताओं ने उन्हें आगे किया। येदियुरप्पा ने भी सबको ले कर राजनीति बनाई। रामकृष्ण हेगड़े ब्राह्मण होते हुए भी सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री थे। कर्नाटक कतई जातिवादी नहीं था। देवराज अर्स ने पिछड़ों का पहला आयोग बनाया लेकिन लालू, नीतीश, मुलायम की तरह प्रदेश में जातीय राजनीति का जहर नहीं फैलाया।

सो, पहली बात जातीय समीकरण बिगड़ने से भाजपा के हालात खराब नहीं हुए है। कर्नाटक का नंबर एक मुद्दा 40 प्रतिशत कमीशन के भ्रष्टाचार का हल्ला है। घर-घर यह हल्ला है। यह हल्ला हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद एक और एक ग्यारह की ताकत में घर-घर नरेंद्र मोदी और अडानी के रिश्तों की चर्चा फैलाता हुआ था।  बेंगलूरू जैसे महानगर में अपने आप नरेंद्र मोदी का जादू घटा। कांग्रेस के राहुल गांधी और सिद्धरमैया दोनों की ईमानदार इमेज ने वह माहौल बनाया, जिससे चुनाव पहले ही लोगों का मन भाजपा के खिलाफ बना।

मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर माहौल ने ही मल्लिकार्जुन खड़गे, शिवकुमार और पूरी कांग्रेस में वह जान डाली, जिससे पहली बार किसी प्रदेश में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चाहे जो बोला गया। तथ्य है कि मोदी-शाह ने अपने जादू के अहंकार में येदियुरप्पा की जगह गुजरात जैसा प्रयोग किया। एक तो मैसेज बनाया कि लिंगायत भाजपा का कोर है इसलिए उसी का मुख्यमंत्री होगा। मतलब जातिवादी राजनीति का पोषण। इससे दूसरी जातियों में उलटी मैसेजिंग। जैसे गुजरात में पटेलों के एक निराकार पटेल को सीएम बनाना जो जैसा दिल्ली कहे वैसे राज करे तो कर्नाटक में बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री। यह वह दूसरी गलती थी, जिससे भ्रष्टाचार का आरोप न केवल भाजपा से चिपका, बल्कि वह अदानी कांड से मोदी के जादू को फीका भी बना गया।

इस सबको मोदी बूझते हुए हैं। तभी गुलाम मीडिया में बिगड़े सामाजिक समीकरण का रोना रोया जा रहा है। पहली बार लिंगायत समुदाय की ब्राह्मण विरोधी तासीर तथा प्रहलाद्ध जोशी और भाजपा के संगठन मंत्री बीएल संतोष की उम्मीवारों के चयन में गड़बड़ी जैसी बातों से ठीकरा फूटता हुआ है क्योंकि इनके ब्राह्मण होने के कारण सभी चुपचाप इसे मान लेंगे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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