nayaindia king charles ब्रिटेन के नए सम्राट की ताजपोशी

ब्रिटेन के नए सम्राट की ताजपोशी

ब्रिटेन को एक नया सम्राट मिला और हमें देखने को मिला अतीत से उधार लिया गया एक भव्य समारोह। परंतु ब्रितानी खुश थे। उन्होंने जश्न मनाया, सोमरस का भरपूर पान किया और यूनियन जैक फहराती सुनहरी बग्घियों के पाल माल से गुजरते समय अपने नए राजा की जय जयकार भी की। ब्रिटिश मीडिया इतना रोमांचित था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या छोड़े और क्या दिखाए। उसने इस रंगारंग ऐतिहासिक समारोह के शानदार मंजर के जम कर कसीदे पढ़े। इस बीच ट्रैफलगर स्क्वायर पर “नॉट माय किंग” के नारे लगाते ब्रिटेन के सबसे बड़े राजशाही-विरोधी समूह ‘रिपब्लिक’ के समर्थकों को ‘गलत आचरण’ के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। आखिर हर प्रजातंत्र में कुछ न कुछ खोट तो होता ही है!

ब्रिटेन के साथ-साथ पूरी दुनिया ने इस समारोह को मंत्रमुग्ध होकर देखा। कुछ इसकी भव्यता पर फिदा थे तो कुछ को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि 74 साल का एक बुजुर्ग, रिटायर होने और अपना कामकाज अगली पीढ़ी को सौंपने की बजाय खुद राजा बन रहा है। सभी के लिए यह राज्याभिषेक परीकथाओं की तरह सुंदर नहीं था। कईयों के अपने ऐतराज थे।

हां, लंदन एकदम सजाधजा था। आकाश धूसर था और हवा में सीलन थी परंतु जब सुनहरी और जरुरत से ज्यादा सजी बग्घियां ऐबी की ओर बढ़ रही थीं तब सैनिकों के मार्च और ट्रम्पेट के स्वर ने वातावरण में उत्साह भरने का पूरा प्रयास किया। काली छतरियों की छांव में इन बग्घियों से उतरे पुराना जमाने की सफेद, रोमदार पोशाकें, जिनमें कहीं-कहीं लाल और नीला रंग भी छिटका हुआ था, पहने हुए एक वृद्ध दंपत्ति। वेस्टमिन्स्टर ऐबी में ब्रिटेन की तुलना में कहीं कम प्रसिद्ध अन्य शाही परिवार, राष्ट्र प्रमुख, पूर्व प्रधानमंत्री, विभिन्न समुदायों और हॉलीवुड़ के प्रतिनिधि और हां प्रिंस हैरी भी, मौजूद थे। समारोह कुछ ज्यादा ही भड़कीला और चमकीला था। आपका दिमाग कहता था यह सब शाही है, इसका सम्मान करो परंतु आंखों को केवल नुमाइशबाजी दिख रही थी। सप्रानो गायकों और गोस्पेल क्वायर के स्वर, ठंडी हवा में घुल रहे थे। सब कुछ परिकथा की तरह दिखने और महसूस करने के लिए बनाया गया था। परंतु दरअसल वह एक बेतुका-सा मध्यकालीन तमाशा लग रहा था।

वेस्टमिन्स्टर में हुए समारोह को शाही वेबसाइट ने ‘एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान’ बताया। सफेद अरमाईन केप पहने चार्ल्स और कैमिला अपनी गद्दी पर कुछ असहज से बैठे हुए बुजुर्ग ध्रुवीय भालुओं जैसे लग रहे थे जो एक मध्यकालीन और चापलूसी से भरे समारोह के बीच किसी तरह जागते रहने का प्रयास कर रहे हों।

चार बार किंग चार्ल्स को ‘जो निःसंदेह आपके राजा हैं’ बताया गया परंतु इस पर असहमति का कोई स्वर सुनाई नहीं पड़ा। उन्होंने जो शपथ ली, उसमें एंग्लिकन चर्च ने तनिक भी परिवर्तन नहीं होने दिया है। उन्होंने प्रोटोस्टेंट मत को बनाए रखते और कानून और प्रथाओं के अनुरूप शासन करने की शपथ ली। समारोह के बीच शाही दंपत्ति ने कई बार कपड़े बदले। उन्हें स्टोन ऑफ डेस्टिनी और स्वोर्ड ऑफ स्पिरिचुअल जस्टिस भेंट की गई और एक विशेष राज्याभिषेक चम्मच से पवित्र तेल से अभिषिक्त किया गया। ये तेल यरूसलम की मैरी मैगब्लीन मोनास्ट्री से लाए गए जैतून के पत्तों से बना था। सब कुछ ठीक वैसे ही किया गया जैसा कि 14वीं सदी के ‘लाईबो रेगालिस’, जो कि राज्याभिषेक का इंस्ट्रक्शन मैन्युअल है, में बताया गया है।

परंतु समारोह में धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता जैसे ‘आधुनिक मूल्यों’ की झलक भी थी, जो ब्रिटेन में पिछले सात दशकों में आए सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक थे। देश के हिंदू प्रधानमंत्री ने पूरी श्रद्धा से कुलुस्सियों की पत्री के पहले अध्याय का पाठ किया। इसके आलवा, हिंदू, यहूदी, सिख, मुस्लिम और बौद्ध धार्मिक नेताओं ने भी समारोह में भूमिका निभाई। भक्ति वेदांत मैनर कृष्ण मंदिर के हिंदू पुजारी हिज ग्रेस मोहन दास ने अंगूठी तो विंबलडन के लार्ड सिंह ने शाही दंपत्ति को दस्ताने भेंट किए। यह सब इस मध्यकालीन अनुष्ठान में प्रजातंत्र और समावेशिता का तड़का लगाने के प्रयास थे। फिर, हाउस ऑफ कॉमंस की नेता पैनी मोरडेंट, सर्विस के सबसे लंबे हिस्से में रत्न-जड़ित स्वोर्ड ऑफ स्टेट हाथों में लेकर एकदम सीधी खड़ी रहीं। चर्च ऑफ इंग्लैंड की महिला बिशप्स ने ईसाई प्रार्थना में भाग लिया और वेल्श, स्कॉटिश एवं आयरिश केल्ट भाषाओँ में स्तुतियां गाईं गईं। और जब चार्ल्स ने प्रोटोस्टेंट मत की रक्षा करने की शपथ ली तब उन्होंने एक व्यक्तिगत प्रार्थना भी की, जिसमें उन्होंने एक विविधवर्णी समाज का बहुवादी सम्राट बनने का वायदा किया। नए राजा ने कहा- मैं सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने के लिए हूं। हे ईश्वर, मुझे ये वरदान दें कि मैं सभी धर्मों और आस्थाओं की तेरी संतानों का भला कर सकूं”।

परंतु इस सबके बाद भी, प्राचीन राज्याभिषेक सिंहासन पर विराजमान राजा और एक धार्मिक अनुष्ठान, जिसमें उसे लोगों से कहीं ऊपर, ईश्वर की तरह का दर्जा दिया गया, इस समारोह का मुख्य संदेश था। चार्ल्स पर पवित्र तेल का लेप एक स्क्रीन के पीछे किया गया। यह खुदा और बादशाह की मुलाकात की निजता बनाए रखने का प्रतीक था। और अंत में, धर्मनिरपेक्ष प्रजा को आर्चबिशप ऑफ कैंटरबरी द्वारा राजा की प्रति वफ़ादारी की शपथ लेने के लिए ‘आमंत्रित’ किया गया।

समारोह शाही था, शानदार था, ऐतिहासिक था और उसे धर्मनिरपेक्ष कलेवर देने का प्रयास भी किया गया। परंतु फिर भी वह आधुनिक नहीं था। मुझे लगता है कि 1953 में जब 27 साल की रानी एलिजाबेथ (तब चार्ल्स चार साल के थे) की ताजपोशी हुई होगी तब एक दूसरा जमाना था। शाही परिवार को स्वीकार किया जाता था, स्वीकार करना पड़ता था। परंतु आज एआई और चैटजीपीटी के युग में, उस काल में जब हम मंगल और चांद पर बस्तियां बसाने की बात कर रहे हैं, जब पोपुलिज्म, मीटू और प्रजातंत्र के समक्ष खतरे चर्चा में हैं तब भी ब्रिटिश राजशाही को स्वीकार किया जा रहा है, उसका जश्न मनाया जा रहा है। क्या कारण है कि पूरी दुनिया के लोगों और मीडिया को भी जितना ब्रिटिश राजशाही आकर्षित करती है उतना एशिया और यूरोप के अन्य राजा नहीं करते? क्या कारण है कि ब्रिटेन जैसे एक सही अर्थों में आधुनिक समाज में भी शाही परिवार इतना महत्वपूर्ण बना हुआ है?

आप इस समारोह को एक ऐसी विरासत का शानदार प्रदर्शन मान सकते हैं जो धर्मनिरपेक्ष बनने और आज के समय के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रही है। क्या आप ऐसे किसी अन्य प्रजातंत्र की कल्पना कर सकते हैं जहां एक दूसरे धर्म को मानने वाला नेता, एक अत्यंत प्राचीन परंपरागत ईसाई अनुष्ठान में न्यू टेस्टामेंट का एक अध्याय पढता है। या फिर आप यह भी कह सकते हैं कि समस्याओं से भरे इस काल में यह विशेषाधिकारों का भद्दा और खर्चीला प्रदर्शन है।

कुछ भी हो परंतु आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि जब एक बूढ़े राजा ने अपनी उतनी ही बूढी रानी के साथ, शाही परिवार के अन्य युवा और कामकाजी सदस्यों से घिरे हुए, बालकनी से जनता की ओर हाथ हिलाया, तब ब्रिटेन के साथ-साथ पूरी दुनिया ने चमत्कृत हो इस नजारे को देखा।

पाल माल पर इकठ्ठा पर्यटक इस तड़क-भड़क भरे प्रदर्शन को देख कर अति प्रसन्न थे। आखिर इतिहास की एक फांक उनकी इन्स्टाग्राम रीलों और टिकटॉक वीडियो का हिस्सा बन गई थी। कम्युनिस्ट विचारधारा में यकीन करने वालों और ब्रिटेन के उपनिवेशों के रहवासियों के लिए यह घिनौना और शर्मिंदगी पैदा करने वाला दिखावटी समारोह था। ‘रिपब्लिक’ से जुड़े ब्रिटिश नागरिकों के लिए चार्ल्स उनके राजा नहीं हैं और देश के 14 प्रतिशत रहवासी राजशाही का उन्मूलन चाहते हैं। परंतु राजा को गद्दी से उतारने के लिए किसी क्रांति की संभावना दूर दूर तक नहीं है।

अतीत की धुंध से निकले इस भव्य समारोह पर अपने लेख के अंत में मैं अपने पाठकों को रानी एलिजाबेथ की मृत्यु पर ‘द इकोनॉमिस्ट’ में प्रकाशित लेख के एक अंश पर विचार करने का अनुरोध करूंगी। “संवैधानिक राजतंत्र एक मायने में नाममात्र के राष्ट्रपति वाली प्रणालियों से बेहतर है और वही एलिजाबेथ की आश्चर्यजनक सफलता का कारण है। और वह है निरंतरता और परंपरा का मिश्रण…सभी राजनीतिक प्रणालियों को परिवर्तन और परस्पर विरोधाभासी हितों से शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीकों से निपटना होता है। जो प्रणालियां रुकी रहतीं हैं, वे किसी न किसी दिन फूट पड़तीं हैं, और जो प्रणालियां बहुत तेज भागती हैं वे समाज के एक बड़े हिस्से को पीछे छोड़ देतीं हैं और एक दिन वे भी फट जातीं हैं”।

ब्रिटेन ने बहुत अच्छे और सुंदर तरीके से एक ऐसी विरासत को बुना है जो नए और पुराने का मिश्रण है। और शायद इसलिए ब्रेक्जिट, जनमत संग्रहों और राजनीतिक अस्थिरता के बाद भी वह देश और उसकी संस्थाएं मजबूती से खड़ीं हुईं हैं। यह बात अन्य पुराने और नए और बड़े प्रजातंत्रों के बारे में नहीं कही जा सकती। सभी प्रजातंत्र परफेक्ट नहीं हो सकते। परंतु ब्रिटेन ने अपने अतीत, अपने वर्तमान और अपने भविष्य को जोड़ने का एक सामंजस्यपूर्ण तरीका खोज निकाला है। तभी तो एक हिंदू प्रधानमंत्री, परंपरा में रचे-बसे एक अत्यंत दकियानूसी ईसाई राजशाही को भविष्य की ओर ले जा रहा है।

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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