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दो पाटन के बीच में…

कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के कारण छोटे देशों की बनी मुसीबत के बीच दुनिया की दो बड़ी ताकतें अपनी गोटी खेल रही हैं। उन्होंने संकट में मदद देने के नाम पर इन देशों को दूसरे के पाले से खींचने की रणनीति अपना ली है।

पाकिस्तान सरकार के लिए यह समझना टेढ़ी खीर हो गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) उसे 6.5 बिलियन डॉलर के मंजूर कर्ज की किस्तें जारी क्यों नहीं कर रहा है। शहबाज शरीफ सरकार ने कहा है उसने भारी सियासी जोखिम उठा कर आईएमएफ की सख्त शर्तों को लागू किया है। इसके बावजूद आईएमएफ का रुख नरम नहीं हुआ है। तो उसने फिर से अमेरिका से गुहार लगाई है। इसके पहले भी अमेरिका से पाकिस्तान के  उच्च अधिकारी गुजारिश करते रहे रहें हैं कि वह आईएमएफ में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। यह तो जग-जाहिर है कि आईएमएफ में अंतिम फैसला अमेरिका की मर्जी से होता है। मगर उससे तमाम गुजारिशों के बावजूद हकीकत यह है, जैसाकि पाकिस्तान सरकार के अधिकारियों ने कहा है कि आईएमएफ बार-बार “गोल पोस्ट बदल” रहा। तो क्या पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशहाक डार की मंगलवार को अमेरिका के उप वित्त मंत्री वैली अडेयमो के साथ हुई ऑनलाइन बातचीत के बाद उसका रुख कुछ बदलेगा? इस बात के कोई संकेत नहीं हैं। इस बीच पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति हर रोज अधिक बिड़गती जा रही है।

पाकिस्तान सरकार के डिफॉल्टर होने की आशंका गंभीर रूप ले चुकी है। उधर इस हफ्ते पाकिस्तान को एक और बड़ा झटका लगा, तब अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने उसका दर्जा और गिरा दिया। पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने मीडिया से बातचीत में आईएमएफ के नजरिए पर खुला असंतोष जताया है। उनके मुताबिक पाकिस्तान पर कई तरह के दबाव डाले जा रहे हैं। वैसे अगर इस प्रकरण के भीतर जाकर झांकें, तो पाकिस्तान की मुसीबत का असल कारण उसका मौजूदा भू-राजनीतिक होड़ के बीच क्रॉस-फायरिंग में फंस जाना नजर आएगा। कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के कारण छोटे देशों की बनी मुसीबत के बीच दुनिया की दो बड़ी ताकतें अपनी गोटी खेल रही हैं। उन्होंने संकट में मदद देने के नाम पर इन देशों को दूसरे के पाले से खींचने की रणनीति अपना ली है। तो आईएमएफ की चिंता पाकिस्तान का आर्थिक संकट नहीं, बल्कि यह है कि कैसे वहां चीन का प्रभाव कम किया जाए।

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