nayaindia PM Modi arvind Kejriwal मोदी अधिक घायल या केजरीवाल?

मोदी अधिक घायल या केजरीवाल?

शनिवार को कर्नाटक की एक जनसभा में नरेंद्र मोदी घायल दिखलाई दिए। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा ‘जहरीला सांप’ कहे जाने पर जनसभा में अपनी गिनती बताते हुए कहा कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गाली दी है। सोचें, वे नरेंद्र मोदी गालियों की काउंटिंग करते हुए हैं, जिन्होंने 2014 से अब तक के नौ वर्षों में भारत को गालियों की खर-पतवार बनवाया है। शायद 2014 के ही चुनाव प्रचार की बात है जब नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी को शहजादा और साल भर बाद 2015 में दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल को नक्सली आदि न जाने क्या-क्या कहा! उनके राज में शायद ही देश का कोई विरोधी, स्वतंत्रचेता दिमागदार नेता या व्यक्ति हो, जिसे सत्ता के श्रीमुख से, उसकी आईटी सेल और सोशल मीडिया व प्रवक्ताओं से गालियां नही मिली हों। लोग ट्रोल नहीं हुए हों। जर्सी गाय, शूर्पणखा, पप्पू, भ्रष्ट, दलाल, पाकिस्तानी, खालिस्तानी आदि की गालियों से न केवल सत्तावान नेताओं, उनके गुलाम टीवी चैनलों, सोशल मीडिया ने जहां विरोधियों को वैयक्तिक तौर पर बदनाम किया वहीं समाज के अलग-अलग समुदायों, मुसलमान-सिख-ईसाई-किसानों-वैश्विक चेहरों-संस्थाओं को भी इतनी किस्म की गालियां दीं या दिलाई गईं कि हिसाब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी सौवीं मन की बात में भारतीयों में यह गौरव भरना था कि उन्होंने मौलिकता से भारत को विश्व का सिरमौर गाली प्रधान, जुमला प्रधान, झूठ प्रधान बनाया है।

क्या मैं गलत हूं? बावजूद इसके और गजब बात जो प्रधानमंत्री गालियों को काउंट करते हुए भी। कल 91 की काउंटिंग और रविवार को जनसभा में उन्होंने कहा कि कांग्रेस इसी चुनाव में उन्हें सौ गालियां दे देगी!

सो, कांग्रेस को सावधान होना चाहिए। नरेंद्र मोदी अब श्रीकृष्ण की तरह उंगली में सुदर्शन चक्र लिए हुए इंतजार कर रहे हैं कि कांग्रेस कब सौ गालियों की संख्या पूरी करे और वे अपने सुदर्शन चक्र से कांग्रेस का सिर वैसे ही धड़ से अलग करें जैसे श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का किया था! वे कांग्रेस की मान्यता खत्म करने की ताकत रखते हैं तो खड़गे-राहुल-प्रियंका-सोनिया सबको ईडी, सीबीआई से जेल में डाल कर जुबान बंद करा सकते हैं। आखिर वे भक्त हिंदुओं के भगवान हैं!

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को और कमाल किया। कर्नाटक की जनसभा में कहा- भाइयों और बहनों, सांप तो भगवान शंकर के गले की शोभा है। फिर उन्होंने कहा कि मुझे मंजूर है ईश्वर रूपी जनता के गले का सांप होना। सोचें, वे जनता की तरफ से सांप हो गए हैं। उस जनता के जिसने सुना हुआ है भक्तों के मुंह से हर, हर मोदी, घर-घर मोदी का राग! जो नाग देवता को दूध पिलाना धर्म मानते हैं तो वे हर-हर मोदी को वोट देने में क्यों संकोच करेंगे।

मतलब किसी भी रूप में गालियों की खर-पतवार से वोट की फसल पकाने की कला दुनिया को यदि किसी से सीखनी चाहिए तो भारत की हिंदू राजनीति से सीखनी चाहिए।

सचमुच भारत में राजनीति और सार्वजनिक नेतृत्व और विमर्श में संस्कार, सत्य, विवेक और मनुष्यता की समाप्ति के पिछले सौ महीनों के अनुभवों की जो दास्तां है वह आजादी के 75 वर्षों की वह अनहोनी है, जिस पर जितनी चर्चा की जाए कम होगी। तभी एक मायने में 140 करोड़ आबादी के भारत में भक्त 40-50 (जो चाहे संख्या मानें) करोड़ हिंदुओं के अलावा बाकी सब लोगों पर मोदीजी का बस चले तो सुदर्शन चक्र चला दें। क्योंकि ये लोग शिशुपाल की तरह मोदीजी को कोसते हैं, उन्हें गालियां देते हैं। ये मोदी विरोधी राजद्रोही, देशद्रोही, हिंदूद्रोही हैं। ये नरेंद्र मोदी के महल पर कमेंट के पत्थर फेंकते हैं। आंदोलन-विरोध करते हैं।

औरमोदी काउंटिंग करते है। इस वाक्य पर गौर करें कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गाली दी है। तभी मैं उन्हें घायल हुआ बूझ रहा हूं? उनकी घायल दशा से अरविंद केजरीवाल की तुलनाकर रहा हूं। सत्य है राहुल गांधी ने लोकसभा में मोदी-अडानी का पुराण पढ़ कर, केजरीवाल ने विधानसभा में अनपढ़-भ्रष्ट राजा की कथा सुना कर और सत्यपाल मलिक ने पुलवामा में खून से रंगे हाथ दिखला कर मोदीजी को घायल किया है। तभीगहराई से सोचें कि पिछले चार महीनों में नरेंद्र मोदी मानसिक तौर पर कितने घायल हुए होंगे। छोड़ें इस बात को कि वे घायल तो देश घायल!  दिल्ली के देवता केजरीवाल घायल हैं तो वे तमाम लोकल देवता भी जो सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स आदि से दिन-रात सपरिवार अपमान में लहुलुहान हैं।

तो सार क्या? सबसे बड़ी असल बात कि अब्सोल्यूट पावर के सर्वशक्तिमान नरेंद्र मोदी घायल हैं! और इतने घायल जो दिन प्रतिदिन गालियों की काउंटिंग कर रहे हैं।

क्या ऐसा पहले, पिछले 75 वर्षों के इतिहास में कब किस प्रधानमंत्री के साथ हुआ था? कमाल देखिए कि प्रधानमंत्री गालियां काउंट करते हुए अपने को घायल बता रहे हैं, जबकि देश का मीडिया अरविंद केजरीवाल को घायल बूझ हल्ला बना रहा है कि यो तो गयो! घायल प्रधानमंत्री की हेडलाइंस से ध्यान बंटवाने के लिए सबने मिलकर केजरीवाल को इतना घायल कर दिया कि उन्हे भी शायद ही अब समझ आ रहा हो कि अब वह करें तो क्या करें!

मैं नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को समतुल्य मानता रहा हूं। हिंदू राजनीति के वक्त की यह वह राम मिलाई जोड़ी है, जिसके पीछे का सर्वकालिक सत्य है कि पॉवर करप्ट्स एंड एब्सोल्यूट पावर करप्ट्स एब्सोल्यूटली! मतलब सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता व्यक्ति को संपूर्ण भ्रष्ट बनाती है। भारत का दुर्भाग्य है कि इक्कीसवीं सदी में भारत सांप-सपेरों के अंधकार, सांप-नेवले के खेल की सियासत का जंगल बना। क्या सोचा था और क्या हुआ। सामान्य परिवार के सहज हिंदू नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को क्या गजब अवसर मिला। दोनों परिस्थितियों की देन। कैसे ये लोगों की उम्मीदों, ख्यालों के सत्यवादी हरिशचंद्र हुए। नई व्यवस्था, अच्छे दिनों को लिवा लाने वाले विजनरी महानायक। दोनों मध्यवर्गी और बनिया। दोनों राष्ट्रवादी।

और दोनों से अनुभव क्या? एक सत्ता मिलते ही नेमप्रिंट वाले सूट को पहन कर दुनिया को दिखलाते हुए कि मैं अमेरिका के राष्ट्रपति के आगे भारत का विश्वगुरू प्रधानमंत्री! ऐसा महंगा सूट जो नीलामी में करोड़ों रुपए में बिका। अरबों रुपए की लागत के नए विमान से ले कर अरबों रुपए के खर्च पर नए दफ्तर, नए प्रधानमंत्री आवास की भव्यता से अपने मंदिर बनवाते हुए तो दूसरे ने वह मुख्यमंत्री आवास बनाया, जिसके बार में मैंने सुना कि पर्दे आठ-आठ लाख रुपए के, एक करोड़ रुपए के टीवी सेट और घर की साज-सज्जा का कुल खर्चा 45 करोड़ रुपए तो मुझे भी भरोसा नहीं हुआ कि केजरीवाल को भला शानोशौकत की इतनी ललक!

हां, अरविंद केजरीवाल पावर में आने से पहले नरेंद्र मोदी के मुकाबले सचमुच आम आदमी थे। नरेंद्र मोदी तो अमीर गुजरात में मुख्यमंत्री रहते खूब सत्ता भोगे हुए थे। उनके लिए अडानी का विमान हवाईअड्डे पर खड़ा रहता था। अमीर गुजरात की राजनीति की अमीरी से देश जीता। लेकिन अरविंद केजरीवाल की तो दिल्ली की सर्दियों में मफलर पहने, ठिठुरते हुए, भारत माता की जय के नारों के साथ राजनीति शुरू हुई थी। वे सादगी के प्रतीक थे। पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी रखा था तो चुनाव चिन्ह झाड़ू!

वही केजरीवाल सत्ता में बैठने के बाद 45 करोड़ रुपए की साज-सज्जा के घर में!  मामला रहस्यमयी है कि सत्ता कैसे व्यक्ति को तुरंत इतना भोगी बना देती है! गुलामी में पके-रचे हिंदू मिजाज और इतिहास में मेरी पुरानी थीसिस है कि सत्ता की भूख और सत्ता से भयाकुलता का हिंदू स्वभाव बेजोड़ है। उस नाते नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल ने पावर को जैसे भोगा है या भोग रहे हैं वह सामान्य बात है। फिर भी केजरीवाल का मामला चौंकाता है कि कैसे हैं हम हिंदू। सत्ता के वैभव को दिखलाने का ऐसा पागलपन!

हिसाब से केजरीवाल चतुर हैं। पर आश्चर्य जो यह नहीं बूझा कि नरेंद्र मोदी और उनका तंत्र उनके एक-एक पल पर नजर रखे हुए है। केजरीवाल को समझना था कि वे जो मुख्यमंत्री आवास बना रहे हैं तो उसके खर्च पर नजर होगी। जाहिर है केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को कमतर आंका। नतीजतन अब चारों खाने चित्त घायल पड़े हुए हैं। दिल्ली के घर-मोहल्लों के पार्क की चर्चा हो या घरों के बैठक खाने की चख-चख या झुग्गी-झोपड़ी से आई हेल्पर सब केजरीवाल के घर खर्च की चर्चा करते हुए। देश में इतनी चर्चा अंबानी के घर की नहीं हुई, जितनी अरविंद केजरीवाल के घर की चर्चा होते हुए है।

सोचें, मोदी-भाजपा ने अरविंद केजरीवाल को कैसा धोबीपाट मारा है। उनका अडानी-अनपढ़ पुराण खत्म और उसकी जगह केजरीवाल के पर्दो पर लोग चटखारे लेते हुए। मोदीशाही के टीवी मीडिया-सोशल मीडिया के शेषनागों से पहले तो बेचारे शराब घोटाले के डंक झेलते हुए और अब केजरीवाल को ऐसे डंसाते हुए है कि यह लोक मुहावरा सही साबित होता हुआ कि सांप का काटा पानी भी नहीं मांगता। केजरीवाल सफाई दें भी तो क्या दें! कल्पना करें इस घायल अवस्था के बाद केजरीवाल को मोदी जब सीबीआई-ईडी से जेल में डलवाएंगें तो उनका और उनकी पार्टी व सरकारों का क्या होगा!

मगर मैं मानता हूं केजरीवाल और मोदी की राम मिलाई जोड़ी है। दोनों डाल-डाल, पात-पात के चतुर खिलाड़ी हैं। पता नहीं कितने पाठकों ने सांप-नेवले का खेल देखा है। मैंने देखा है। साठ-सतर के दशक के बचपन में मदारी लोग डमरू बजा कर सड़कों पर सांप-नेवले की लड़ाई दिखलाया करते थे। सांप फुफकारता हुआ डसता था तो दर्शकों की कंपंकपी छूटती थी मगर नेवला हार नहीं मानता था। लड़ाई में कभी सांप का पलड़ा भारी होता तो कभी नेवले का। दोनों लहूलुहान हो जाते। मदारी खेल को आगे नहीं बढ़ने देता था। लेकिन मान्यता है कि ज्यादातर लड़ाइयों में नेवला सांप को मार देता है। बशर्ते की सांप कोबरा न हो!

सो, पाठक माईबाप, आनंद लीजिए आजादी पूर्व की भारत पहचान के सांप-सपेरों, सांप-नेवलेलडाई के लाइव शो का! मगर हां,कथित अमृतकाल में सांप-सपेरों, साप-नेवलों, सौ गालियां, हजार गालियां, संसद-विधानसभा और घर-घर गालियों का आनंद लेते हुए यह जरूर सोचिए कि हमारी विश्वगुरूता कितनी अनहोनी है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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