nayaindia south korea USA दो व्हेल मछलियों (अमरीका और चीन) में फंसे झींगे की मुश्किल

दो व्हेल मछलियों (अमरीका और चीन) में फंसे झींगे की मुश्किल

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-इयोल पिछले हफ्ते अमरीका पहुंचे। उनकी यात्रा का उद्देश्य अमरीका और दक्षिण कोरिया के बीच 70 साल पुराने गठबंधन का जश्न मनाना और उसे मजबूती देना था। जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से किसी भी राष्ट्राध्यक्ष की यह दूसरी अमरीका यात्रा थी और लगभग एक दशक बाद कोई दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति अमरीका की राजकीय यात्रा पर आया था। राष्ट्रपति यून ने उनके सम्मान में दिए गए भोज में ‘अमेरिकन पाई’ गाकर अमरीकियों को गदगद कर दिया।

कूटनीतिक दृष्टि से यात्रा महत्वपूर्ण थी। इसके दौरान भाषणबाजी हुई, दिल जीते गए और पुरानी कसमें फिर से खाईं गईं। कोरिया की भौगोलिक स्थिति की ओर इशारा करती एक पुरानी कोरियाई कहावत कहती है कि यह देश दो व्हेल मछलियों (अमरीका और चीन) के बीच फंसे झींगे के मानिंद है।

कोरियाई युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया ने अमरीका के साथ पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते को सत्तर बरस पूरे हो गए हैं। उस युद्ध में 1,40,000 कोरियाई और 37,000 अमरीकी सैनिक मारे गए थे और दोनों देशों की सबसे बड़ी इच्छा यही है वैसा कुछ फिर न हो। कोरियाई प्रायद्वीप पर 28,500 अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी (यद्यपि ट्रम्प ने उन्हें वापस बुलाने की धमकी दी थी) इसी का सबूत है। पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों के सम्बन्ध और गहरे हुए हैं। दक्षिण कोरिया ने वियतनाम, अफ़ग़ानिस्तान और इराक में अमरीका सेना की युद्ध में मदद के लिए अपने सैनिक भेजे थे। करीब 10 साल पहले दोनों देशों ने मुक्त व्यापर समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिससे उनके व्यावसायिक रिश्तों में और मजबूती आई। दोनों देशों में एक-दूसरे के नागरिकों के बड़े समुदाय हैं और दोनों देश पॉप संगीत, फिल्में, टीवी धारावाहिक और बढ़िया भोजन पसंद करते हैं।

दोनों व्हेलों के अलावा, दक्षिण कोरिया का एक और सिरदर्द है उत्तर कोरिया। पिछले कुछ सालों में उत्तर कोरिया का एटमी हथियारों के जखीरा इतनी तेज़ी से बढ़ा है कि अमरीकी और दक्षिण कोरियाई अधिकारियों के अनुसार उन्होंने उनका ठीक-ठीक हिसाब-किताब रखना ही बंद कर दिया है। और यही कारण है कि अमरीका ने अपना यह संकल्प दोहराया है कि अगर उत्तर कोरिया ने उसके या उसके मित्र देश दक्षिण कोरिया के खिलाफ परमाणु अस्त्रों का प्रयोग किया तो यह किम योंग उन के शासन का अंत होगा। एक नए समझौते, जिसे ‘वाशिंगटन घोषणा’ का नाम दिया गया है, के अंतर्गत अमरीका अपने सामरिक अस्त्र कोरिया प्रायद्वीप के आसपास तैनात करेगा और दोनों देशों का एक संयुक्त परमाणु सलाहकार समूह सामरिक सूचनाएं साझा करेगा, संयुक्त सैनिक अभ्यास आयोजित करेगा और उत्तर कोरिया द्वारा किसी भी हमलावर कार्यवाही की स्थिति में सैनिक प्रतिक्रिया का समन्वय करेगा। ऐसी किसी स्थिति में परमाणु हथियारों का प्रयोग करने या न करने के बारे में अंतिम निर्णय वाशिंगटन लेगा। परन्तु 40 सालों में पहली बारे बाइडन ने नेतृत्व में अमरीका परमाणु हथियारों से लैस अपनी पनडुब्बियां इस क्षेत्र में भेजेगा। इस कवायद का उद्देश्य दक्षिण कोरिया के रक्षा की प्रति अमरीकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करना भर है और ये पनडुब्बियां स्थाई रूप से वहां तैनात नहीं रहेंगी। दक्षिण कोरिया में तैनात अमरीकी सामरिक परमाणु हथियारों को 1991 में वहां से हटा लिया गया था।

मगर समस्या यह है कि केवल उत्तर कोरिया से सुरक्षा का वायदा हासिल करने से न तो उत्तर कोरिया, न राष्ट्रपति यून और ना ही उनके देश की जनता खुश हैं।

राष्ट्रपति यून ने एक साल पहले सत्ता में आने के बाद इस आशय के संकेत दिए थे कि दक्षिण कोरिया परमाणु अस्त्रों का विकास करेगा परन्तु वाशिंगटन घोषणा के बाद उनका सुर बदल गया है और अब वे वही पुराना वायदा दोहरा रहे हैं कि दक्षिण कोरिया का अपने परमाणु अस्त्र विकसित करने का कोई इरादा नहीं है। देश की जनता इस घोषणा से नाराज़ है। लोगों का मानना है कि अपनी सुरक्षा के लिए दक्षिण कोरिया के पास अपने परमाणु हथियार होने चाहिए। उन्हें डर है कि अगर उत्तर कोरिया मनमानी पर उतारू हो गया तो इस बात कि कम ही सम्भावना है कि अमरीका जैसी महाशक्ति और उसके मित्र देश, उनके देश की मदद के लिए आगे आएंगे। और यही कारण है कि राष्ट्रपति यून के आलोचक ‘वाशिंगटन घोषणापत्र’ को खोखला बता रहे हैं और एक समाचारपत्र, जो अपनी पारंपरिक सम्पादकीय नीति के लिए जाना जाता है, ने कहा है कि दरअसल बाइडन प्रशासन ने अपने मित्र देश के हाथ-पैरों को और जकड़ दिया है। फिर चीन का मसला भी है। दक्षिण कोरिया के चीन से मज़बूत आर्थिक रिश्ते हैं और यही कारण है कि उसने अब तक यूक्रेन की मदद के लिए अपनी सेना नहीं भेजी है। दोनों भीमकाय व्हेल मछलियों की बीच बढ़ती कड़वाहट के कारण भी दक्षिण कोरिया असमंजस में है। दोनों ने जापान से दूरी बना कर रखी है, यद्यपि अमरीका ने अपने दोनों साथियों (जापान और दक्षिण कोरिया) से अनुरोध किया है कि वे मिल कर चीन और उत्तर कोरिया के कदम थमने का प्रयास करें। परन्तु अपनी हालिया अमरीका यात्रा में शायद राष्ट्रपति यून भावनाओं में बह गए और चीन और अमरीका के बीच संतुलन नहीं बनाये रख सके। इसकी भी उनके देश में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हुई है। चीन पर हमलावर होते हुए उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यथास्थिति को बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास का विरोध किया फिर चाहे वह समुद्री क्षेत्र पर गैर-कानूनी दावों के ज़रिये हो, सैन्यीकरण के ज़रिये या बल के इस्तेमाल से।

जहाँ तक उत्तर कोरिया के युवाओं का सवाल है, उसके लिए अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंता का सबब है, न कि उत्तर कोरिया या व्हेलों के बीच शीतयुद्ध। वे यह जानते भी हैं और इससे चिंतित भी हैं कि अमरीका के मुद्रास्फीति कम करने के प्रयासों और सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन व विज्ञान के क्षेत्र में उठाए जा रहे क़दमों से दक्षिण कोरिया के दो प्रमुख उद्योगों – इलेक्ट्रिक कार और सेमीकंडक्टर – पर बुरा असर पड़ेगा। अपने संयुक्त वक्तव्य में राष्ट्रपति यून और बाइडन ने चर्चा जारी रखने पर सहमति व्यक्त की परन्तु इससे युवाओं को कुछ हासिल नहीं हुआ।

अन्तर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर निर्णायक भूमिका निभाना दक्षिण कोरिया की पुरानी तमन्ना रही है। परन्तु उसकी यह इच्छा पूरी होते नहीं दिख रही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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