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थाईलैंड में युवा जोश, लौटा लोकतंत्र!

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रविवार, 14 मई का दिन दुनिया के लिए अहम रहा। मानो बदलाव का, दुनिया को नया आकार देने की जद्दोजहद का दिन। जहां तुर्की में तानाशाह शासक से मुक्ति पाने के लिए वोट पड़े वही थाईलैंड की जनता ने सैनिक शासन और राजतंत्र का अंत करने के लिए मतदान किया। तुर्की में तो सफलता नहीं मिली लेकिन थाईलैंड की जनता को जबरदस्त कामयाबी मिली। एक दशक से चले आ रहे सैनिक शासन के अंत की शुरुआत हो गयी। थाई लोगों ने ऐसी दो विपक्षी पार्टियों को जीताया जिन्होंने कहा है कि वे देश के लिए मुसीबत बन चुके सेना और शाही परिवार की ताकत कम करेगी।

कुछ साल पहले तक थाईलैंड में शाही परिवार के बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने-सुनने की सख्त मनाही थी। परन्तु 2020 में यह सब बदल गया। हजारों लोग सड़कों पर इस मांग के साथ उतर आये कि शाही परिवार की शक्तियों में कटौती की जाए। तबसे शाही परिवार देश में एक राजनैतिक मुद्दा बना है।

थाईलैंड पर प्रयुत चान-ओ-चा शासन कर रहे थे। अब वे भूतपूर्व प्रधानमंत्री होने की राह पर हैं। मूलतः सेना के जनरल प्रयुत ने नौ साल पहले निर्वाचित सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथियाई थी। उनका और उनके समर्थकों का तर्क है कि कानून में बदलाव कर राजशाही को कमज़ोर करने से राजशाही का ही अंत हो जायेगा। उन्होंने शाही परिवार का साथ देने की घोषणा की है।

प्रयुत सेन ने थकशिन शिनावात्रा से सत्ता छीनी थी। तिहत्तर साल के थकशिन एक अरबपति व्यापारी थे। उनकी पार्टी फुआ थाई देश में लोकशाही लागू करने की हिमायती थी। वे 2006 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उस साल उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसके बाद हुए एक सैनिक विद्रोह में उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा। परन्तु जनता ने उन्हें ग्रामीण गरीबों के मददगार के रूप में याद रखा और उनकी पार्टी ने 2001 से लेकर 2019 तक थाईलैंड में हुआ हर चुनाव जीता। इस बार ऐसा कहा जा रहा था कि उनकी सबसे छोटी बेटी, 36 साल की पीथुंटार्न शिनावात्रा, प्रधानमंत्री पद की मज़बूत दावेदार होंगी।

परन्तु 14 मई को जब नतीजे आए तब पता चला कि जनता ने जीत का सेहरा थकशिन शिनावात्रा की फुआ थाई पार्टी की बजाय युवा उदारवादियों की पार्टी मूव फॉरवर्ड के सिर पर बाँधा है। मूव फॉरवर्ड, राजतंत्र और सेना दोनों के मामलों में सुधार की हामी रही है। मूव फॉरवर्ड को 500 सीट के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स में 151 सीटें मिलीं। फुआ थाई को 141 और प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा की पार्टी को 76 सीटें हासिल हुईं।

मूव फॉरवर्ड के नेता हैं 42 साल के पीटा लिम्जारोंरेट। वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट हैं। इसके पहले ग्रैब, जो कि दक्षिणपूर्व एशिया का उबर है, में काम कर चुके हैं। उन्होंने प्रस्ताव किया है कि फुआ थाई सहित छह पार्टियों की गठबंधन सरकार बनाई जाए। पीथुंटार्न शिनावात्रा ने प्रस्तावित गठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छा जताई है। अगर यह गठबंधन बन जाता है तो इसमें केवल प्रजातंत्र-समर्थक पार्टियाँ होंगीं और उनके पास 500 सदस्यों के निचले सदन में 309 सीटें होंगीं।

परन्तु मूव फॉरवर्ड और फुआ थाई की सरकार बनने में एक बड़ी बाधा है। थाईलैंड में सेना और पूर्व जनरल व प्रधानमंत्री प्रयुत चान-ओ-चा की तूती बोलती है। प्रयुत नौ साल से प्रधानमंत्री हैं। उनकी सरकार थाईलैंड पर सबसे लम्बी अवधि तक राज करने वाली सैनिक सरकार है। यह तब जब कि थाईलैंड में सरकारों का तख्ता पलटते देर नहीं लगती। प्रयुत के राज में देश की अर्थव्यवस्था की बुरी गत बनी। यद्यपि थाईलैंड, दक्षिणपूर्व एशिया में अमरीका के दो औपचारिक मित्र देशों में से एक है परन्तु प्रयुत के शासनकाल में थाईलैंड ने वाशिंगटन से दूरियां बनायीं और बीजिंग के नज़दीक आया।

सन 2020 में उनकी सरकार ने बैंकाक की सड़कों पर प्रजातान्त्रिक सुधारों की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों को बेरहमी से कुचला। इससे प्रयुत की अलोकप्रियता और बढ़ी।

सैनिक सरकार ने सन 2017 में ही देश के संविधान को बदल दिया था। अब प्रधानमंत्री का चुनाव उच्च सदन सीनेट के 250 और निम्न सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स के 500 सदस्य मिल कर करते हैं। सीनेट के सदस्यों को सेना नियुक्त करती हैं जबकि हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं। चुनाव की इस प्रक्रिया में हफ़्तों या महीनों भी लग सकते हैं। थाईलैंड के प्रजातन्त्र-समर्थक दलों के लिए एक दूसरी मुसीबत यह है कि वहां की संवैधानिक अदालत, इलेक्टोरल कमीशन और एंटी-करप्शन कमीशन में सेना के वफादारों का जमावड़ा है। इसलिए, मूव फॉरवर्ड और फुआ थाई के लिए मिल कर भी सरकार बनाना आसान नहीं होगा। अंततः सेना ही किंगमेकर होगी।

ऐसा माना जा रहा है कि पीटा लिम्जारोंरेट और उनकी मूव फॉरवर्ड पार्टी का रास्ता रोकने के लिए सैनिक सरकार संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल करने की बजाय कोई दूसरा खेल खेलेगी। ऐसा पहले भी हो चुका है। मूव फॉरवर्ड पार्टी का गठन 2018 में हुआ था। उस समय उसका नाम फ्यूचर फॉरवर्ड था और उसकी पीछे थे देश के युवा और प्रगतिशील नागरिक। गठन के एक वर्ष बाद हुए चुनाव में मूव फॉरवर्ड तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। सेना का आकार घटाने के पार्टी के प्रस्ताव से घबराई सत्ता ने पार्टी के उस समय के नेता पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें राजनीति में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया और उनकी पार्टी को भंग कर दिया। ऐसा ही कुछ फिर से करने की तैयारी चल रही है। एक सेना-समर्थक उम्मीदवार ने थाईलैंड के इलेक्टोरल और एंटी-करप्शन कमीशनों में शिकायत दर्ज करवाई है कि पीटा ने यह पूरी तरह साफ़ नहीं किया है कि एक विशिष्ट स्टॉक (शेयर) कितनी संख्या में उनके पास हैं। मूव फॉरवर्ड के नेता ने आरोप को गलत बताया है।

कहने की ज़रुरत नहीं कि राजशाही-समर्थित सैनिक सरकार इतनी आसानी से हार नहीं मानेगी और नयी सरकार को बनने में हफ़्तों या महीनों लग सकते हैं। पिछले 100 सालों में थाईलैंड चुनी हुई और सैनिक सरकारों के बीच झूलता रहा है। इस अवधि में सेना ने कम से कम 12 बार विद्रोह कर सत्ता पर कब्ज़ा जमाया है। इस बार थाईलैंड के करीब 5।2 करोड़ मतदाताओं ने प्रजातंत्र-समर्थक पार्टियों को भारी समर्थन देकर यह साफ़ कर दिया हैं कि वे अब सेना और शाही परिवार की दादागिरी और झेलने के लिए तैयार नहीं है। इस अर्थ में 14 मई का चुनाव लोकशाही के पक्ष में आवाज़ है। यह चुनाव देश के इतिहास में एक नया मोड़ लाने वाला साबित हो सकता है। बहुत लम्बे समय बाद थाईलैंड के लोगों में यह आशा जागी है कि उनके देश एक बेहतर भविष्य की ओर आगे बढ़ रहा है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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