नई दिल्ली। दलबदल को सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के विधायकों की अयोग्यता के मामले में विधानसभा स्पीकर को तीन महीने में फैसला करने को कहा है। आमतौर पर स्पीकर ऐसे मामलों में फैसला विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक लंबित रखते हैं। लेकिन अदालत ने बीआरएस से दलबदल करने वाले 10 विधायकों के मामले में स्पीकर को आदेश दिया कि वे संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत इन विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर तीन महीने में फैसला करें।
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति को अनुमति नहीं दे सकते जहां ऑपरेशन सफल हो, लेकिन मरीज मर जाए’। अदालत का कहना था कि विधायकों पर फैसले लेने में इतनी देरी न हो जाए कि उनका कार्यकाल ही खत्म हो जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के 22 नवंबर को दिए गए उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें सिंगल जज के स्पीकर को कार्यवाही का समय तय करने का निर्देश देने वाले फैसले को रद्द कर दिया गया था।
गौरतलब है कि 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को बहुमत मिला और बीआरएस सत्ता से बाहर हो गई। चुनाव के बाद बीआरएस के 10 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस ने इसे दलबदल कानून का उल्लंघन बताते हुए उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने बीआरएस की याचिका पर कोई फैसला नहीं किया। पैसले में देरी के खिलाफ बीआरएस नेता पी कौशिक रेड्डी ने तेलंगाना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अध्यक्ष से जल्दी फैसला करने का निर्देश देने की मांग की।