नई दिल्ली। आखिरकार भारत को जी-7 की बैठक में शामिल होने का न्योता मिला। बैठक शुरू होने से आठ दिन पहले कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भारत को मेहमान देश के तौर पर इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने का न्योता दिया। मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करके सम्मेलन में शामिल होने के लिए बुलाया। मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट लिख कर इसकी जानकारी दी है। प्रधानमंत्री ने कनाडा का न्योता स्वीकार कर लिया है। वे इस बैठक में शामिल होने के लिए जाएंगे।
प्रधानमंत्री मोदी सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि उन्होंने न्योते के लिए कार्नी का आभार जताया और कनाडा के चुनाव में जीत हासिल करने पर बधाई भी दी। साथ ही कहा कि उन्हें सम्मेलन में कार्नी से मुलाकात का बेसब्री से इंतजार है। गौरतलब है कि जी-7 सम्मेलन कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कनानास्किस में 15 से 17 जून तक होगा। गौरतलब है कि भारत और कनाडा के संबंध पिछले कुछ समय से ठीक नहीं हैं। तभी कनाडा की ओर से भारत को न्योता भेजे जाने में देरी को लेकर कई तरह के कयास लगे जा रहे थे।
गौरतलब है कि कनाडा ने सदस्य देशों के अलावा कई मेहमान देशों को न्योता भेजा था। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को कई दिन पहले ही न्योता मिल गया। ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको आदि देशों को भी न्योता पहले ही मिल जाने की खबर है। इस तरह कनाडा ने सबसे अंत में भारत को न्योता भेजा। कुछ दिन पहले कनाडा की विदेश मंत्री भारतीय मूल की अनिता आनंद से भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की बातचीत हुई थी।
भारत 2019 से जी-7 सम्मेलन में मेहमान देश के तौर पर शामिल हो रहा है। पिछले छह साल से प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन में हिस्सा लेते हैं। हर साल G7 की मेजबानी करने वाला देश कुछ मेहमान देशों को आमंत्रित करता है। बहरहाल, भारत और कनाडा के बीच पिछले कुछ दिनों से कूटनीतिक गतिरोध चल रहा था। पिछले प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के समय दोनों देशों के संबंध बिगड़े। 2023 में कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री ट्रूडो ने यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया था कि खालिस्तान आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंटों की भूमिका हो सकती है। भारत ने इन आरोपों को बेहूदा और राजनीति से प्रेरित कह कर सिरे से खारिज कर दिया था। इसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंधों में तनाव आया था और दोनों ने एक दूसरे के यहां राजनयिकों की संख्या घटाई थी। ट्रूडो की जगह कार्नी के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद दोनों देशों के संबंधों में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है।