Wednesday

30-07-2025 Vol 19

धड़कते दिलों को चुराती ‘स्टोलन’

150 Views

डेब्यू डायरेक्टर करण तेजपाल की यह फिल्म काफ़ी परतदार है और हर लेयर के साथ एक अंडरकरेंट मुद्दा है, जो अनकहा सा तो है मगर दर्शक उसे भांपकर बेचैन होने लगता है। बच्ची के गायब हो जाने के साथ ही तनाव शुरू हो जाता है और जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, यह एक इमोशनल क्राइम-थ्रिलर में तब्दील होने लगती है।

सिने-सोहबत

आज के ‘सिने-सोहबत’ में इसी हफ़्ते आई एक क्राइम-थ्रिलर, ‘स्टोलन’ पर विमर्श करना बेहद दिलचस्प होगा। कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में धूम मचाने वाली, ‘स्टोलन’ सिर्फ़ 90 मिनट की फिल्म है जो दर्शकों को अपनी जगह पर बंधे रहने को विवश कर देती है। फ़िल्म का निर्देशन किया है नए निर्देशक करण तेजपाल ने। ‘स्टोलन’ सिनेमाघरों में नहीं, बल्कि एक ओटीटी ओरिजिनल के तौर पर स्ट्रीम हुई है।

वास्तविक घटना से प्रेरित इस फिल्म की कहानी की शुरुआत होती है राजस्थान के एक छोटे से रेलवे स्टेशन से, जहां एक निर्धन मजदूर-सी लगने वाली महिला झुंपा (मिया मेल्जर) अपनी पांच महीने की बच्ची के साथ स्टेशन की बेंच पर सो रही है। उसी प्लेटफॉर्म पर परेशान हाल-सा दिखने वाला गौतम (अभिषेक बनर्जी) अपने भाई रमन (शुभम वर्धन) को रिसीव करने आया है। रमन की फ्लाइट मिस हो गई, इसलिए वह ट्रेन से आ रहा है। अगले दिन इन दोनों भाइयों की मां की शादी है और घर पर इनका इंतजार हो रहा है, मगर तभी एक अनजान महिला प्लेटफॉर्म की बेंच पर सोती झुंपा की बेटी को अगवा कर ले जाती है।

प्लेटफॉर्म पर रमन की मौजूदगी से झुंपा को संदेह होता है कि उसकी बेटी को गायब करने में उसका भी हाथ हो सकता है। रमन के साथ झुंपा की झड़प हो जाती है, हालांकि बहुत जल्द यह साफ भी हो जाता है कि बच्ची के गायब होने में रमन की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन गवाह के रूप में रमन के साथ गौतम को भी स्टेशन पर रोक दिया जाता है। उधर, झुंपा को चायवाले पर शक होता है और पुलिस की पूछताछ में वह सुराग देता है कि बच्ची का अपहरण कर उसे कहां ले जाया गया है।

गौतम जल्द से जल्द इस पचड़े से निकलकर घर जाना चाहता है, मगर रमन को अहसास होता है कि पुलिस झुंपा के साथ इन्वेस्टिगेशन में कोताही कर रही है। तब वह पुलिस के साथ जाकर बच्ची का पता लगाने का फैसला करता है, जिसके लिए गौतम बिलकुल भी तैयार नहीं है। फिर रमन के मनाने पर वह तैयार हो जाता है। अभी ये दोनों भाई झुंपा को अपनी गाड़ी में बैठाकर पुलिस के साथ गंतव्य पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि उनकी गाड़ी और उन लोगों का वीडियो इस खबर के साथ वायरल हो जाता है कि यही तीनों बच्चा चोर हैं। स्थिति उस वक्त और भयावह हो जाती है, जब गुस्साई भीड़ इनकी गाड़ी का पीछा करके मॉब लिंचिंग पर आमादा हो जाती है। क्या ये भीड़ से बच पाते हैं? क्या झुंपा को उसकी बच्ची का सुराग मिलता है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

डेब्यू डायरेक्टर करण तेजपाल की यह फिल्म काफ़ी परतदार है और हर लेयर के साथ एक अंडरकरेंट मुद्दा है, जो अनकहा सा तो है मगर दर्शक उसे भांपकर बेचैन होने लगता है। बच्ची के गायब हो जाने के साथ ही तनाव शुरू हो जाता है और जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, यह एक इमोशनल क्राइम-थ्रिलर में तब्दील होने लगती है। निर्देशक ने झुंपा के किरदार के जरिए मार्मिकता से समाज में व्याप्त क्लास कॉनफ्लिक्ट दिखाया है। फ़िल्म के संवाद भी काफ़ी कैसे हुए हैं। इसी खूबी के साथ इंटरनेट पर फैली अफवाहों की भयावहता को भी दर्शाया है। फिल्म सामाजिक और न्याय व्यवस्था के साथ-साथ नैतिकता पर भी सवाल करती है।

अपनी दुधमुंही बच्ची को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने वाली झुंपा का चरित्र चित्रण बेहद मार्मिक है। रात की अराजकता को निर्देशक एक लोकल स्टेशन और अंधेरे में लिपटे हुए रास्तों और जंगल से सेट कर देते हैं। फिल्म दो अलग वर्ग के लोगों को विश्वास और नैतिकता की डोर से जोड़ती है।

सुष्मित नाथ का बैकग्राउंड स्कोर कहानी के अनुरूप है। ईशान घोष और सचिन एस पिल्लई का कैमरा वर्क ज़बरदस्त है।

कलाकारों की परफॉर्मेंस फिल्म की बहुत बड़ी खूबी के तौर पर सामने आती है। गौतम की भूमिका में अभिषेक बनर्जी ने उदासीन, घमंडी, सेल्फ़-सेंटर्ड और फिर कहानी के आगे बढ़ते ही इमोशनल हो जाने वाले किरदार को बहुत ही जानदार ढंग से निभाया है। अभिषेक की परफॉर्मेंस ज़बर्दस्त है। इसके पहले भी उन्होंने वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ और ‘स्त्री’, ‘वेदा’ और ‘भेड़िया’ जैसी फिल्मों से अपने आप को अभिनय के क्षेत्र में स्थापित कर ही लिया है लेकिन ‘स्टोलन’ की ख़ास बात ये है कि इसमें अभिषेक लीड अभिनेता हैं। अभिषेक ने पूरी की पूरी फ़िल्म को ख़ुद अपने कंधों पर सफलतापूर्वक अपने अंजाम तक पहुंचा कर फिल्मकारों को एक उम्मीद दे दी है कि हिंदी फिल्मोद्योग में एक और लीड अभिनेता पूरी धमक के साथ लैंड कर चुका है।

अपने भाई गौतम की तुलना में रमन का किरदार शांत, सौम्य और सामाजिक विषमताओं को लेकर फिक्रमंद नजर आता है, जिसे शुभम वर्धन ने संयमित और प्रभावशाली ढंग से अदा किया है। इन दो दमदार मेल एक्टर्स के बीच मिया मेल्जर एक शक्तिस्वरूपा की तरह उभरती हैं। अगवा की गई बच्ची की मां के रूप में उसकी दुर्दशा देखते बनती है। मगर वह पूर्वाग्रह से ग्रस्त व्यवस्था और समाज के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है।

क्राइम-थ्रिलर के शौकीन दर्शकों के लिए यह एक ग्रिपिंग मूवी  है।

हिंदी फिल्मों के नाम अंग्रेजी में रखने का सिलसिला कोई आज का नहीं है। बरसों पुराना है और इसकी एक वजह नई पीढ़ी के दर्शकों को अपनी ओर खींचना हो सकता है। समय समय पर हिंदी फिल्मोद्योग में ये चर्चा चलती ज़रूर है कि हिंदी फिल्मों के नाम हिंदी में ही होने चाहिए। हालांकि इस बहस में उलझने वालों की तादाद काफ़ी कम है। दर्शक अब बख़ूबी समझते हैं कि फ़िल्म का नाम किसी भी भाषा में हो, सबसे ज़रूरी ये है कि फ़िल्म में दम हो। आख़िर गैस से उड़ने वाले गुब्बारे अपने लाल पीले रंगों की वजह से कहां उड़ते हैं। उनके उड़ने के लिए सबसे ज़रूरी है, उनके भीतर हवा से भी हल्की हाइड्रोजन गैस की मौजूदगी।

‘स्टोलन’ की पटकथा लिखी है निर्माता गौरव धींगरा और करण ने।

फिल्म प्राइम वीडियो पर है, देख लीजिएगा।  (पंकज दुबे मशहूर पॉप कल्चर कहानीकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, ‘स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़’ के होस्ट हैं।)

पंकज दुबे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *