नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के अधिकार को लेकर बहुत बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि तमिलनाडु सरकार के 10 जरूरी विधेयकों को राज्यपाल द्वारा रोक कर रखना अवैध है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्यपाल को संविधान के हिसाब से काम करना चाहिए राजनीतिक दलों के हिसाब से नहीं। यह तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के लिए बहुत बड़ा झटका है तो एमके स्टालिन सरकार के लिए बड़ी राहत की खबर है। पूर्व आईपीएस अधिकारी आरएन रवि 2021 से तमिलनाडु के राज्यपाल हैं।
राज्यपाल आरएन रवि द्वारा तमिलनाडु विधानसभा से पास विधेयकों को रोक कर रखने को सुप्रीम कोर्ट ने मनमाना कदम बताया और कहा कि यह कानून के नजरिए से सही नहीं है। अदालत ने कहा कि राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के लिए विधानसभा से पास बिल पर काम करने की टाइमलाइन भी तय कर दी है। अदालत ने कहा कि विधानसभा से पास बिल पर राज्यपाल एक महीने के भीतर कदम उठाएं। गौररतलब है कि तमिलनाडु से लेकर पंजाब और केरल तक जहां भी भाजपा विरोधी पार्टियों की सरकारें हैं वहां राज्यपाल विधेयकों को लंबित रखते रहे हैं।
इस मामले में लंबी सुनवाई के बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘राज्यपाल को एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए। आप संविधान की शपथ लेते हैं। आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए। आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं। राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो’। गौरतलब है कि विधानसभा से पास विधेयकों को रोक कर रखने के मामले में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने यह फैसला सुनाया गया है।
जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की बेंच ने फैसले में कहा कि राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना है। यह कार्रवाई रद्द की जाती है। राज्यपाल की सभी कार्रवाई अमान्य है। दो जजों की बेंच ने कहा कि राज्यपाल रवि ने भले मन से काम नहीं किया। इन बिलों को उसी दिन से मंजूर माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने बिलों को पास करके दोबारा राज्यपाल को भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को निर्देश दिया कि उन्हें अपने विकल्पों का इस्तेमाल तय समय सीमा में करना होगा, वरना उनके उठाए गए कदमों की कानूनी समीक्षा की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों पर फैसले के लिए समय सीमा तय करते हुए कहा कि राज्यपाल बिल रोकें या राष्ट्रपति के पास भेजें, उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा। विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह राज्यपाल की शक्तियों को कमजोर नहीं कर रहा, लेकिन राज्यपाल की सारी कार्रवाई संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए।