सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर सावरकर की भूमिका को स्वीकार किया है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी कहा है कि वे भी इसे स्वीकार करें। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को फटकार लगाते हुए कहा कि उनको इतिहास, भूगोल का ज्ञान नहीं है और वे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अनापशनाप नहीं बोल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर राहुल फिर से सावरकर के बारे में कुछ अपमानजनक कहेंगे तो अदालत खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगी। इस फटकार के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट ने कुछ और बातें जोड़ीं। जैसे अदालत ने सावरकर के माफी मांगने और ब्रिटिश सरकार से वजीफा लेने की तुलना महात्मा गांधी की लिखी एक चिट्ठी से कर दी, जिसमें गांधी ने खुद को ब्रिटिश सरकार का वफादार सेवक लिखा था। यह पूरे मामले का सरलीकरण करना है और इतिहास के दो व्यक्तित्वों और दो अलग अलग संदर्भ के घटनाक्रम की ऐसी तुलना खतरनाक है, जो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।
लेकिन सवाल है कि सावरकर और गांधी की तुलना करने के बाद क्या सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करेगा कि जो बात उसने सावरकर के संदर्भ में कही है वह बाकी स्वतंत्रता सेनानियों पर भी लागू होगी? उसने कहा कि राहुल ने फिर ऐसी बात कही तो अदालत संज्ञान लेगी। तो क्या अगर कोई दूसरा नेता किसी और स्वतंत्रता सेनानी के बारे में ऐसी बात करता है तब भी अदालत संज्ञान लेगी? ध्यान रहे भाजपा समर्थकों का एक बड़ा वर्ग आजादी की लड़ाई में जवाहर लाल नेहरू के योगदान को कमतर दिखाने और तरह तरह की झूठी बातों से उनको अपमानित करने का प्रयास करता है। बतौर प्रधानमंत्री नेहरू के काम की आलोचना अलग है। लेकिन आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को कमतर बताने वालों पर क्या अदालत कार्रवाई करेगी? पिछले कुछ दिनों से मोतीलाल नेहरू की सूट पहने और टाई लगाई फोटो दिखा कर उनको अंग्रेज बताने का प्रयास हो रहा है। सोचें, जो व्यक्ति महात्मा गांधी से पहले कांग्रेस अध्यक्ष रहा और अपनी वकालत छोड़ कर आजादी की लड़ाई में शामिल हुआ उसको अपमानित किया जा रहा है। तभी ऐसा नहीं होना चाहिए कि अदालत का खून तभी खौले, जब सावरकर के लिए कोई कुछ कहे। यह नियम होना चाहिए कि किसी भी स्वतंत्रता सेनानी के बारे में उलजलूल बात कहने पर कार्रवाई हो।