कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2013 का एक वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर किया है। उस समय वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमत पर चिंता जता रहे थे। उस समय सिर्फ नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि भाजपा के दूसरे नेता भी कहते थे कि रुपए की कीमत गिरने का मतलब होता है देश की प्रतिष्ठा गिरना। ध्यान रहे उस समय एक डॉलर की कीमत 60 रुपए के करीब थी। आज जब एक डॉलर की कीमत 90 रुपए के करीब पहुंच गई है तो कांग्रेस के नेता और सोशल मीडिया में कांग्रेस इकोसिस्टम के लोग पुराने वीडियो या सोशल मीडिया पोस्ट निकाल कर सार्वजनिक कर रहे हैं। इसी क्रम में जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी का वीडियो साझा किया तो एक कांग्रेस समर्थक ने आर्ट ऑफ लिविंग वाले रविशंकर की पोस्ट साझा की, जिसमें वे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर डॉलर की कीमत 40 रुपए हो जाने की उम्मीद जता रहे थे।
इसी तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर पुरानी बातें भी याद दिलाई जा रही हैं। लोग सोशल मीडिया में शेयर कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ अमिताभ बच्चन से लेकर अक्षय कुमार और बाबा रामदेव तक का मजाक बना रहे हैं। एक समय था जब फिल्म और क्रिकेट के सितारों सहित रामदेव जैसे लोग इस बात से परेशान रहते थे कि पेट्रोल की कीमत 60 रुपए प्रति लीटर हो गई है और अब आम आदमी का काम कैसे चलेगा। एक अभिनेता ने तो लिखा था कि उनके ड्राइवर को बड़ी मुश्किल हो गई है और उन्होंने ड्राइवर को साइकिल से चलने के लिए कहा है। लेकिन अब पेट्रोल की कीमत एक सौ रुपए प्रति लीटर है और किसी के ड्राइवर को समस्या नहीं हो रही है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ रुपए के कमजोर होने या पेट्रोल की कीमत बढ़ने को लेकर विपक्षी पार्टियों के नेता या उनके समर्थक देश के नागरिकों की याद्दाश्त के ताले खोलने की कोशिश कर रहे हैं। कई और मामलों में ऐसा करने की कोशिश हो रही है। विदेशों में जमा काला धन लाने की बात उनमें से एक है। ध्यान रहे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2014 में कहा था कि विदेशों में भारत का इतना काला धन जमा है कि अगर वह वापस आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ सकते हैं। उनका संकल्प था काला धन विदेश से लाना है। लेकिन बाद में पता चला कि जितना बताया जा रहा उसके एक प्रतिशत के बराबर भी काला धन बाहर नहीं है और यह भी पता चला कि जो है वह भी काला धन नहीं है। उसमें बढ़ोतरी होने की खबरें भी गाहेबगाहे आती रहती हैं।
बहरहाल, लोगों को महंगाई से लेकर महिलाओं की सुरक्षा और नोटबंदी के बावजूद बाजार में नकदी की उपलब्धता से लेकर अर्थव्यवस्था के ग्राफ तक सबकी याद दिलाई जा रही है। सोचें, नकदी की मात्रा कम करने के लिए नोटबंदी की गई थी और आज उस समय के मुकाबले दोगुनी नकदी बाजार में मौजूद है। यही हाल देश की अर्थव्यवस्था का है। आत्मनिर्भर भारत और 2047 तक विकसित भारत बनाने के तमाम नैरेटिव के बीच हकीकत यह है कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से आयात पर आधारित होती जा रही है, जिससे भारत का व्यापार घाटा तेजी से बढ़ रहा है। रॉकेट की रफ्तार से भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है। पिछले साल यानी 2024 के सितंबर में भारत का व्यापार घाटा 24.65 अरब डॉलर था। यह एक महीने का घाटा था। अगले साल सितंबर का आंकड़ा आया तो साल दर साल के मुकाबले इसमें आठ अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी और सितंबर 2025 में भारत का व्यापार घाटा बढ़ कर 32.15 अरब डॉलर हो गया था। लेकिन एक महीने बाद अक्टूबर 2025 का व्यापार घाटा हैरान करने वाला था। हाल में आए आंकड़ों से पता चला है कि अक्टूबर में भारत का व्यापार घाटा बढ़ कर 41.68 अरब डॉलर हो गया। अगर यह औसत है तो इसका मतलब है कि साल में पांच सौ अरब डॉलर का व्यापार घाटा! अकेले चीन से भारत का व्यापार घाटा एक सौ अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है।
सोचें, इस रफ्तार से भारत की अर्थव्यवस्था आयात पर निर्भर होती जाएगी और निर्यात के मुकाबले आयात का अंतर बढ़ता जाएगा तो कहां से आत्मनिर्भरता आएगी और क्या विकास होगा? अभी बहुत उथलपुथल नहीं होने के बावजूद रुपए की कीमत में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है एक डॉलर 89 रुपए का हो गया है। सवाल है कि अब क्यों किसी को रुपए की कीमत गिरने पर शर्म नहीं आ रही है या पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर होने के बावजूद किसी को समस्या नहीं हो रही है या काला धन नहीं आने और नकदी बढ़ते जाने पर भी कोई परेशान क्यों नहीं हो रहा है? क्या देश की सामूहिक याद्दाश्त इतनी कमजोर हो गई है कि लोग 11 साल पहले की सारी बातें, सारे वादू भूल चुके हैं? यह सही है कि लोगों की याद्दाश्त कमजोर होती है और खास कर राजनेताओं के वादों के मामले में। लेकिन इस तरह से लोग सब कुछ भूल जाएं यह भी अनोखी बात है।
अब कोई पुराने वादों को याद नहीं कर रहा है, कोई पुराने मुद्दे नहीं उठा रहा है, किसी को परवाह नहीं है क्योंकि उनके सामने हर दिन नया वादा आ रहा है, हर दिन नया मुद्दा आ रहा है, हर दिन नई झांकी सजाई जा रही है, हर दिन नई समस्या खड़ी की जा रही है, हर दिन नया दुश्मन पैदा किया जा रहा है और लोग इसी में उलझे रह रहे हैं। इन सबके बीच सरकारी मदद पर आधारित जीवनयापन की योजनाएं यानी सर्वाइवल की स्कीम्स चल रही हैं और जनता उसी में मगन है। जनता प्रभु के दर्शन करने मंदिरों में जा रही है या सस्ते डाटा के जरिए घर बैठे प्रभु के दर्शन कर रही है और प्रभु की पताका आसमान में लहराते देख कर खुश हो रही है। जब धर्म ध्वजा आसमान में लहरा रही हो तो रुपए की गिरती कीमत, पेट्रोल के बढ़ते दाम और बढ़ते व्यापार घाटे के बारे में बात करना धर्म विरोधी, देश विरोधी माना जा सकता है।


