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10-06-2025 Vol 19

विपक्ष के पास क्या रास्ता है?

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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र में विधानसभा का जो चुनाव हुआ था वह ‘मैच फिक्सिंग’ की तरह था। उनके हिसाब से भाजपा और चुनाव आयोग मिले हुए थे और पहले ही भाजपा व उसकी सहयोगी पार्टियों के चुनाव जीतने का आधार बना दिया गया था। राहुल गांधी के हिसाब से लाखों की संख्या में फर्जी मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जोड़े गए। इसके बाद मतदान समाप्त होने पर मतदान का आंकड़ा फर्जी तरीके से बढ़ाया गया। भाजपा व सहयोगी पार्टियों के लिहाज से कमजोर विधानसभा क्षेत्रों में फर्जी मतदान कराया गया और इसके सबूत छिपा दिए गए। राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर एक लेख लिखा, जो 13 भाषाओं में 15 अखबारों में छपा।

कांग्रेस पार्टी ने ये सारे सवाल पिछले साल भी चुनाव आयोग से पूछे थे। महाराष्ट्र के नतीजों के तुरंत बाद कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया कि महाराष्ट्र में जब पांच साल में यानी 2019 से 2024 के बीच 31 लाख नए मतदाता जुड़े तो फिर मई 2024 से अक्टूबर 2024 के बीच सिर्फ पांच महीने में 41 लाख मतदाता कैसे जुड़े? कांग्रेस ने पूछा कि मतदान के दिन अंतरिम आंकड़ा जब 58 फीसदी का था तो अगले दिन अंतिम आंकड़ा 66 फीसदी कैसे हो गया? यह भी पूछा कि मतदान के दिन पांच बजे अंतरिम आंकड़ा जारी होने के बाद दो घंटे में 65 लाख वोट कैसे पड़े? कांग्रेस का यह भी कहना था कि तमाम फर्जीवाड़े के सबूत छिपा दिए गए या मिटा दिए गए। चुनाव आयोग की ओर से इन सभी सवालों के बिंदुवार जवाब दिए गए। इसके पांच महीने बाद राहुल गांधी ने लेख लिख कर वही सारे सवाल फिर से उठाए हैं। कायदे से राहुल को इस लेख में बताना चाहिए था कि कांग्रेस ने ये सवाल पहले भी पूछे थे और चुनाव आयोग ने इन तमाम सवालों के जवाब दिए हैं लेकिन वे इन जवाबों से संतुष्ट नहीं हैं। परंतु उन्होंने यह पूरा प्रकरण ही गायब कर दिया और चुनाव आयोग से कह रहे हैं कि अगर कोई गड़बड़ी नहीं है तो वह जवाब दे। जब चुनाव आयोग पहले ही जवाब दे चुका है तो उससे जवाब मांगने की बजाय राहुल को कहना चाहिए कि उन्हें आयोग की ओर से दिया गया जवाब मंजूर नहीं है।

बहरहाल, राहुल गांधी यह भी मानते हैं कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसी ही मैच फिक्सिंग होगी और जहां भी चुनाव होगा वहां ऐसा ही होगा। अब सवाल है कि अगर राहुल गांधी मानते हैं कि बिहार और बाकी हर जगह इसी तरह मैच फिक्सिंग होगी और भाजपा को जिताया जाएगा तो फिर विपक्ष के आगे क्या रास्ता है? क्या वे यह मान रहे हैं कि वे मैच फिक्सिंग का खुलासा कर देंगे तो फिर पूरे सिस्टम की सफाई हो जाएगी और उसके बाद स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव होने लगेगा? लेकिन यह क्रिकेट की मैच फिक्सिंग जैसा कोई मामला तो है नहीं कि कोई सौरव गांगुली जैसा कप्तान आ जाएगा और टीम को साफ सुथरा बना देगा? अगर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भाजपा एक साथ हैं तो चुनावी सिस्टम की सफाई कैसे होगी? और अगर सफाई नहीं होगी तो विपक्ष क्या करेगा? क्या विपक्ष इसी तरह से हारता रहेगा?

अब सवाल है कि विपक्ष क्या कर सकता है? अगर विपक्ष को यकीन है कि मैच फिक्सिंग है और चुनाव आयोग भाजपा को जिताने के उपाय करता है तो उसके सामने एक रास्ता चुनाव के बहिष्कार का है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अगर विपक्षी पार्टियां चुनाव की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को संदिग्ध बता कर चुनाव का बहिष्कार करती हैं तो भारत में और देश से बाहर भी इस पर प्रतिक्रिया होगी। पड़ोस के बांग्लादेश में पिछले चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी और कई विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था। उसकी वजह से शेख हसीना की पार्टी पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से खुद लड़ी और जीत गई। महज 46 फीसदी मतदान हुआ और उनकी सरकार बन गई। लेकिन सारी दुनिया में इसकी आलोचना हुई और चुनाव के एक साल के अंदर वहां तख्तापलट हो गया। भारत में वैसे तख्तापलट की संभावना कभी नहीं रहती है लेकिन अगर विपक्षी पार्टियां बहिष्कार करेंगी और आम जनता को यकीन दिलाने में कामयाब होंगी कि चुनाव में गड़बड़ी हो रही है और उनका जनादेश चुराया जा रहा है तो वे सड़क पर उतरेंगे और सरकार को स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव के लिए बाध्य करेंगे। लेकिन ईवीएम से लेकर आयोग पर हजार किस्म के आरोप लगाने के बावजूद विपक्ष कभी चुनाव का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं कर सका।

दूसरा रास्ता यह है कि राहुल गांधी इस मसले पर विपक्षी पार्टियों को एकजुट करें। सबसे पहले महाराष्ट्र की दोनों सहयोगी पार्टियों शरद पवार की एनसीपी व उद्धव ठाकरे की शिव सेना को साथ लेना होगा। इसके बाद बाकी सहयोगियों जैसे डीएमके, राजद, सपा, तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट, आप आदि को भी इसकी गंभीरता समझानी होगी। उनको यकीन दिलाना होगा कि राहुल गांधी के आरोप आधारहीन नहीं हैं और वे जिन गड़बड़ियों को सामने ले आए हैं अगर उनको जारी रहने दिया जाता है तो विपक्षी पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा होगा। देश में एक पार्टी की तानाशाही बन जाएगी।

तीसरा रास्ता इसके बाद बनता है कि विपक्ष की सभी पार्टियों के साथ सहमति बनाने के बाद राहुल इन तमाम मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएं। अखबार में लेख लिखना अलग बात है लेकिन जब वे इन्हीं मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे और उनको यकीन दिलाएंगे कि उनका जनादेश चुराया जा रहा है और वे इस पर यकीन करेंगे तभी इसका समाधान निकलेगा। अभी तक दर्जनों चुनाव हारने और ज्यादातर चुनावों में हारने के बाद जनादेश चुरा लेने या किसी न किसी तरह की गड़बड़ी के आरोप लगाने के बावजूद हकीकत यह है कि कांग्रेस या विपक्षी पार्टियां कभी भी इस मुद्दे के लेकर जनता के बीच नहीं गईं।

इसमें एक चौथा रास्ता भी है और वह है चुनाव आयोग की ओर से दिए गए जवाब को गलत साबित करना। यह थोड़ा श्रमसाध्य काम है लेकिन अगर विपक्ष को लगता है कि लोकतंत्र के सामने संकट है तो उसे यह श्रमसाध्य काम करना होगा। जैसे चुनाव आयोग ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच पांच महीने में जो 41 लाख वोटर बने वे जेनुइन हैं और मतदाता सूची में संशोधन की पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियां भी शामिल थीं। कांग्रेस इसी से शुरुआत करे। वह बूथवार पुरानी और नई मतदाता सूची निकाले और नई मतदाता सूची में जो नाम जोड़े गए हैं उनको खोज कर अलग करे। उसके बाद उन नामों की सूची लेकर उस बूथ वाले इलाके में जाए और अगर ये लोग नहीं मिलते हैं तो यह बात जनता के सामने रखे। अगर कांग्रेस वहां के स्थानीय लोगों के सामने ही ले जाकर मतदाता सूची रखे और उन्हीं से पूछे कि ये जो नए नाम जुड़े हैं वे इस गांव या कस्बे में रहते हैं या नहीं तो इसकी हकीकत जाहिर हो जाएगी। अगर दो चार विधानसभा क्षेत्रों में भी कांग्रेस यह फर्जीवाड़ा उजागर कर दे तो राहुल गांधी के लगाए आरोपों की प्रमाणिकता पर लोगों को यकीन हो जाएगा। इसी तरह राहुल ने जिन 85 विधानसभा सीटों के 12 हजार मतदान केंद्रों पर फर्जी मतदान का दावा किया है वहां कांग्रेस के कार्यकर्ता मेहनत करके बूथवार फर्जी मतदाताओं के नाम सामने ले आएं। अगर कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करती है और सिर्फ आरोप लगाती है तो इसे ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ से ज्यादा कुछ नहीं माना जाएगा।

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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