nayaindia तमिलनाडु में खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर विवाद

सनातन विरोध की राजनीति के लिए देश तैयार नहीं

सनातन धर्म

तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर दिए बयान के विरोध का दायरा बढ़ रहा है। हालांकि अभी तक इसे सिर्फ धर्म के एकांगी दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। लेकिन असल में इसे धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों संदर्भों में देखने की जरूरत है। बुनियादी रूप से उदयनिधि का बयान एक राजनीतिक बयान है, जिसकी जड़ें तमिलनाडु की द्रविड राजनीति में अंतर्निहित हैं, जहां समाज व्यापक रूप से ईवी रामास्वामी नायकर पेरियार और उनसे भी पहले के दार्शनिक रामालिंगा स्वामीगल उर्फ वल्लालार के विचारों से प्रभावित है।

वल्लालार केरल के महान समाज सुधारक नारायण गुरू के समकालीन थे। दोनों उस समय में थे, जब लगभग समूचे दक्षिण भारत में समाज सुधार के छोटे छोटे आंदोलन चल रहे थे। दोनों ने जाति प्रथा, पितृसत्तात्मक समाज और सनातन धर्म की कई परंपराओं का विरोध किया और तर्क आधारित विचार पद्धति का समर्थन किया। उनका दर्शन बाद के समय में राजनीतिक आंदोलनों का आधार बना।

उदयनिधि उस विचार के साथ बड़े हुए हैं। उन्होंने अपने दादा और अपने पिता को वही राजनीति करते देखा है इसलिए वे उसी राजनीतिक विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं। सो, अगर द्रविड राजनीति के नजरिए से देखें तो उन्होंने एक मास्टरस्ट्रोक चला है, जिसका फायदा उनकी पार्टी को हो सकता है। लेकिन सवाल है कि क्या पूरा देश इस राजनीति के लिए तैयार है? यह सवाल इसलिए जरूरी है क्योंकि उदयनिधि के बयान पर तमिलनाडु में कोई हंगामा नहीं हो रहा है। वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्ना डीएमके इसका विरोध नहीं कर रही है।

वहां की एक दर्जन छोटी पार्टियां हैं, जिनमें से कई भाजपा के साथ हैं लेकिन किसी ने इसके विरोध में एक बयान जारी नहीं किया है। इसका कारण यह है कि तमिलनाडु में सनातन विरोध की पुरानी परंपरा रही है। परंतु पूरा देश अभी इस राजनीति के लिए तैयार नहीं है। देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरह से इस राजनीति को आजमाने का प्रयास हो रहा है लेकिन अभी उसमें बड़ी कामयाबी नहीं हासिल हुई है।

इस बात को समझने के लिए पिछले एक साल में देश के अलग अलग राज्यों में शुरू हुए राजनीतिक विमर्श को देखने और समझने की जरूरत है। इस साल अप्रैल में कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल पर पाबंदी लगाने की बात कही और भाजपा ने बजरंग दल को ही बजरंग बली बताते हुए कांग्रेस पर हमला शुरू किया। उसी समय बिहार में राज्य सरकार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने ‘रामचरितमानस’ का विरोध शुरू किया। मानस में पिछड़ी व दलित जातियों व स्त्रियों को लेकर जो कुछ लिखा गया है चंद्रशेखर ने उसका विरोध किया। ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसीदास और उनकी रचना ‘रामचरितमानस’ के खिलाफ मोर्चा खोला।

उन्होंने इसे बदलने और इसमें महिलाओं, दलितों, पिछड़ों के लिए कही गई बातों को मिटाने की बात कही। चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य को अपनी पार्टियों का खुला समर्थन नहीं मिला लेकिन उनका विरोध भी नहीं हुआ और न पार्टी के स्तर पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। अब उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर जो कहा है वह चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों से जुड़ता है और उसका ही विस्तार प्रतीत होता है।

इनकी बातों को और गहराई से समझने के लिए यह जानना होगा कि सनातन का क्या मतलब है? सनातन का अर्थ है- सदा से। यानी जो चीज हमेशा रही है और हमेशा रहेगी, जो अजर-अमर है वह सनातन है- जैसे आत्मा। सनातन धर्म में आत्मा को अजर-अमर माना गया है और पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बौद्ध और जैन धर्म भी अपने को सनातन मानते हैं और आत्मा व पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। अब दूसरा सवाल यह है कि क्या सनातन और हिंदू एक ही हैं? कई विद्वानों ने इस सवाल का अपनी अपनी तरह से जवाब दिया है लेकिन सबसे सरल जवाब यह है कि व्यापक हिंदू समाज में सनातन एक हिस्सा है, जो उन तमाम परंपराओं और मान्यताओं में विश्वास करता है, जिन्हें आधुनिक समय की प्रवृत्तियों या आधुनिक समाज व्यवस्था में बुरा या अमानवीय माना जाता है।

असल में 19वीं सदी में जब देश के अलग अलग हिस्सों में समाज सुधार के प्रयास शुरू हुए और स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह, जाति उन्मूलन आदि बातें जोर पकड़ने लगीं तो हिंदुओं के अंदर एक समूह ने इसका विरोध किया। वे जाति प्रथा और पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था को बनाए रखने के पक्ष में थे। वे शुद्धता में विश्वास करते थे, जिसके लिए शाकाहार आवश्यक था। उन्होंने अपने को सनातन कहना शुरू किया।

ध्यान रहे सनातन शब्द का इस्तेमाल भगवद्गीता में है लेकिन वेदों में इसका जिक्र नहीं मिलता है। बहरहाल, इसके थोड़े समय बाद यह धारणा भी जोर पकड़ने लगी कि हिंदू कहना भारत की अभिव्यक्ति नहीं है। बाहर से आए लोगों ने इस शब्द का इस्तेमाल किया इसलिए इसकी बजाय सनातन शब्द का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन हकीकत यह है कि सनातन एक खास अर्थ में रूढ़ हो चुका शब्द है, जिसका विरोध उदयनिधि ने किया है या बिहार में चंद्रशेखर ने किया था या उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य कर रहे हैं। इसका व्यापक हिंदू समाज या धर्म से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।

इसके बावजूद यह कहने में हिचक नहीं है कि धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर देश अभी सनातन के खिलाफ बहुत आक्रामक हमला स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ध्यान रहे किसी भी विचार की सफलता तभी संभव है, जब व्यापक समाज उसे स्वीकार करने को तैयार हो। पुरानी कहावत है कि उस विचार को सफल होने से नहीं रोका जा सकता है, जिसका समय आ चुका हो। लेकिन समय से पहले अगर उस विचार को स्वीकार कराने के लिए जोर डाला जाएगा तो नुकसान हो सकता है।

तमिलनाडु में समाज सुधार आंदोलनों को सफल होने में बहुत लंबा समय लगा है, जबकि उत्तर भारत में तो अभी इसकी शुरुआत हुई है। मंडल की राजनीति को इसका प्रस्थान बिंदु मान सकते हैं। लेकिन सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में दाखिलों के अलावा विचार के स्तर पर मंडल की राजनीति आगे नहीं बढ़ी। उत्तर प्रदेश में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी को एक आंदोलन के तौर पर शुरू किया था। अगर वे अड़े  रहते तो शायद यह समय पहले आया होता। लेकिन सत्ता के लिए उनकी पार्टी ने पहले ‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार’ के नारे लगाए और उसके बाद ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है’ कहना शुरू कर दिया।

सो, करीब तीन दशक तक मंडल और दलित आंदोलन दोनों सत्ता की राजनीति में अटके रहे। अब धीरे धीरे उसके आगे बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ है। अपने अधिकार और अपनी गरिमा के लिए उन्होंने वैचारिक संघर्ष की जमीन तैयार करनी शुरू की है, जिसका प्रस्थान बिंदु ‘रामचरितमानस’ का विरोध है। यह अभी बिल्कुल शुरुआती स्थिति में है और उत्तर भारत या समूचे हिंदी पट्टी का पिछड़ा, दलित, आदिवासी इसके गूढ़-गंभीर पहलुओं को समझने के लिए तैयार नहीं है। वह देख रहा है, हो सकता है कि उसको अच्छा भी लग रहा हो लेकिन वह इसका हिस्सा नहीं बन रहा है। चूंकि उदयनिधि की पार्टी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है और उनके पिता एमके स्टालिन हर जगह ‘इंडिया’ की बैठक में प्रमुखता से मौजूद रहते हैं। इसलिए उदयनिधि का बयान देश के बड़े हिस्से में विपक्ष को नुकसान पहुंचा सकता है।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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