nayaindia चुनावी नैरेटिव: भाजपा बदलते चेहरे, कांग्रेस के अजेंडे पर चर्चा
अजीत द्विवेदी

कांग्रेस के मुद्दों पर लड़ रही भाजपा!

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पहले चरण के मतदान के बाद चुनाव को देखने और समझने का नजरिया बदल गया है। कम मतदान की अपने अपने अंदाज में व्याख्या हो रही है। विपक्षी पार्टियां इसे सरकार के प्रति मोहभंग मान रही हैं तो भाजपा का कहना है कि विपक्ष से लोगों को कोई उम्मीद नहीं है इसलिए सिर्फ सरकार का समर्थन करने वाले ही बूथ पर जा रहे हैं। कहने की जरुरत नहीं है कि दोनों धारणाएं अतिवादी हैं। सचाई दोनों के बीच कहीं है। लेकिन उससे भी दिलचस्प बात यह है कि भाजपा का पूरा चुनाव प्रचार ही बदल गया है। भाजपा अब तक जिन मुद्दों पर प्रचार कर रही थी वो सारे मुद्दे हाशिए में चले गए हैं। उनकी जगह नए मुद्दे आ गए हैं।

ऐसा नहीं है कि ये नए मुद्दे आसमान से टपके हैं। ऐसा भी नहीं है कि अचानक कोई बड़ा घटनाक्रम हो गया और समूचा नैरेटिव बदल गया। ये नए मुद्दे आए हैं कांग्रेस के घोषणापत्र से या कांग्रेस नेताओं के बयानों से। सो, कह सकते हैं कि अब चुनाव कांग्रेस के घोषणापत्र पर या कांग्रेस के तय किए गए एजेंडे पर लड़ा जा रहा है। यह कई मायने में कांग्रेस की बड़ी उपलब्धि है कि उसके चुने गए मुद्दे पर चुनावी नैरेटिव सेट हो रहा है।

ध्यान रहे पिछले 10 साल से राजनीति का समूचा विमर्श भाजपा और खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तय कर रहे थे। वे मुद्दे तय करते थे, उसे जनता के बीच ले जाते थे और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते थे। उनके साथ साथ देश की जनता भी कांग्रेस से सवाल पूछती थी। देश को कांग्रेस ने 60 साल के शासन में क्या दिया, यह आम जनता का सवाल हो गया था। राहुल गांधी को कैसे कमान दी जा सकती है, यह भी देश का सवाल बन गया था। भारत का विकसित होना और इसके गौरवशाली इतिहास की वापसी तभी मुमकिन है, जब मोदी हैं, यह भी देश का सबसे लोकप्रिय विमर्श था। लेकिन इस बार के चुनाव में यह विमर्श नहीं है और अगर है भी तो सार्वजनिक स्पेस में उसकी उपस्थित नगण्य है।

इस बार के चुनाव में भाजपा की ओर से बरसों के परिश्रम से स्थापित किए गए मुद्दों की बजाय कांग्रेस की ओर से उठाए गए मुद्दों पर चर्चा हो रही है। संविधान बदलने का मुद्दा कांग्रेस जनता के बीच लेकर गई थी। आज इस बात को लेकर चर्चा हो रही है। भाजपा को जवाब देना पड़ रहा है। जान देकर संविधान बचाने की बातें हो रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि अगर बाबा साहेब अंबेडकर भी आ गए तो अब संविधान को नहीं खत्म कर सकेंगे। यह कहने की नौबत इसलिए आई है क्योंकि कांग्रेस ने आम लोगों के मन में संदेह का बीज बो दिया है।

अनुसूचित जातियों को लग रहा है कि भाजपा बाबा साहेब के बनाए संविधान को समाप्त कर देगी। पिछड़ी जातियों को लग रहा है कि भाजपा संविधान बदल कर आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करेगी। मुसलमान और व्यापक रूप से देश की धर्मनिरपेक्ष जनता को लग रहा है कि संविधान की प्रस्तावना को बदल कर भाजपा उसमें से ‘सेकुलर’ शब्द हटा देगी। दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों की पार्टियों और कुछ हद तक नागरिकों को भी लग रहा है कि भाजपा संघवादी शासन व्यवस्था को खत्म कर देगी। इसी तरह भाषिक और सांस्कृतिक विविधता को खत्म करके एकरूपता लाने की चिंताओं पर भी देश के अलग अलग हिस्सों में चर्चा हो रही है। सो, संविधान बदलने का जो खतरा कांग्रेस दिखा रही थी उसे खारिज करने की तमाम कोशिशें अभी तक निरर्थक होती दिख रही हैं।

इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नया खतरा दिखाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में संपत्तियों के पुनर्वितरण की बात कही है। इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला कि कांग्रेस की नजर महिलाओं के मंगलसूत्र पर है और वह लोगों की संपत्ति छीन कर ‘ज्यादा बच्चे वालों’ और ‘घुसपैठियों’ को दे देगी। उन्होंने इसे सांप्रदायिक रंग दिया और प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के 2006 में दिए गए बयान का जिक्र करते हुए दावा किया कि कांग्रेस मानती है कि देश की संपत्ति पर मुसलमानों का पहला अधिकार है।

दिलचस्प बात यह है कि आर्थिक असमानता दूर करने के लिए संपत्ति के पुनर्वितरण की जो बात कांग्रेस ने कही है उसे जाने अनजाने में प्रधानमंत्री मोदी ने विमर्श का मुद्दा बना दिया है। इसमें सैम पित्रोदा ने इनहेरिटेंस टैक्स यानी विरासत कर का तड़का लगाया। उन्होंने कहा कि अमेरिका में विरासत में मिली संपत्ति के ऊपर कर लगता है और वह 55 फीसदी तक होता है। ध्यान रहे भारत में भी ऐसा कर लगता था, जिसे 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने खत्म किया था।

अब इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या सचमुच कांग्रेस सरकार में आएगी तो वह कुछ लोगों यानी अमीरों की संपत्ति लेकर आम लोगों यानी गरीबों में बांट देगी? ध्यान रहे भारत में ज्यादातर लोग गरीब हैं। करीब 81 करोड़ तो ऐसे हैं, जिनको सरकार पांच किलो मुफ्त अनाज दे रही है और बड़े गर्व से इसका प्रचार भी कर रही है। अगर ऐसी जनता को यह बात समझ में आती है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर उसको कुछ संपत्ति या कुछ पैसे मिल सकते हैं फिर क्या होगा?

संभव है कि छोटा सा मध्य वर्ग या अति सूक्ष्म आकार का भारतीय उच्च वर्ग इस बात से आहत हो रहा हो या परेशान हो सकता है लेकिन ज्यादा बड़ी आबादी को यह विचार ही रोमांचित करने वाला है कि सरकार अमीरों की संपत्ति लेकर उसे जनता में बांट सकती है। याद करें प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर क्या इसी तरह का वादा नरेंद्र मोदी ने नहीं किया था? फर्क इतना है कि उन्होंने विदेशों में जमा कारोबारियों के धन को काला धन कहा था।

उन्होंने बताया था कि यह काला धन इतना ज्यादा है कि भारत आ जाए तो हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपए आ सकते हैं। सोचें, यह बात लोगों को कितनी अच्छी लगी थी और कैसे सब लोग अच्छे दिन आने के सपने देखने लगे थे! अभी हाल के दिनों में भी प्रधानमंत्री ने कहा कि वे इसका कानूनी रास्ता तलाश रहे हैं कि कैसे केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जब्त किए गए पैसे उन लोगों में बांटे जाएं, जो लूट का शिकार हुए हैं।

यह भी संयोग है कि इसी समय सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) को लेकर बहस चल रही है। नौ जजों की संविधान पीठ इस पर विचार कर रही है कि निजी संपत्ति को सामुदायिक बेहतरी के लिए सरकार कब्जा कर सकती है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के जज करीब 60 साल पहले ऐसे ही एक मामले में जस्टिस बी कृष्णा अय्यर के फैसले से सहमत दिख रहे हैं। जस्टिस अय्यर ने कहा था कि ‘भौतिक जगत में ऐसी कोई भी चीज, जिसका मूल्य है और जिसका इस्तेमाल हो सकता है वह भौतिक संसाधन है और चूंकि हर व्यक्ति समुदाय का सदस्य है इसलिए उसके संसाधन का इस्तेमाल समुदाय के लिए हो सकता है’। जस्टिस अय्यर ने जब यह फैसला सुनाया था तब वे अल्पमत में थे। लेकिन उनकी बात बहुमत के फैसले से ज्यादा स्वीकार की गई।

सो, असमानता दूर करने के लिए आर्थिक सर्वे, संपत्ति के पुनर्वितरण और विरासत कर की बातें सार्वजनिक विमर्श का विषय बन गई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह बहुत क्रांतिकारी विचार है, जिसे एक तबका प्रतिगामी भी मान सकता है। लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि राहुल गांधी ने संविधान और लोकतंत्र बचाने, जाति गणना कराने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने, संपत्ति के पुनर्वितरण और आर्थिक सर्वेक्षण के जरिए एक बड़े तबके के साथ हुए अन्याय का पता लगाने के क्रांतिकारी विचारों पर प्रतिक्रिया देने के लिए भाजपा को बाध्य कर दिया है। पिछले 10 साल पहली बार ऐसा हो रहा है कि एजेंडा कांग्रेस सेट कर रही है और भाजपा उस पर प्रतिक्रिया दे रही है।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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