nayaindia अब रामदेव को सन्यासी और आयुर्वेद का प्रतीक बताने की तैयारी.!
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अब रामदेव को सन्यासी और आयुर्वेद का प्रतीक बताने की तैयारी.!

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जैसा की गोदी मीडिया की विगत दस वर्षों से आदत रही है कि वे अपनी ही बात को सर्वोतम बताने के लिए भावनात्मक तर्क पेश करते हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के महिम तिवारी का वीडियो जारी हुआ है जिसमे वे सुप्रीम कोर्ट के पतंजलि के प्रबन्धक रामदेव और बालकृष्ण को फटकार लगाए जाने को लेकर काफी उत्तेजित हैं। उनके अनुसार पतंजलि के उत्पादों के दावे पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की टिप्पणियों से खासे आहत हैं। उन्होंने जनता जनार्दन से सवाल किया है यह लड़ाई भारत के ज्ञान और पश्चिमी देशों के चिकित्सा पद्धति के मध्य लड़ाई निरूपित किया है। मक़सद साफ है कि आयुर्वेद को एेलोपेथी के साथ संघर्ष दिखाया जाए !

महिम तिवारी के अनुसार हमारे वेदों में गुरुत्वाकर्षन हो अथवा कोई अन्य ज्ञान हो, जो आज पश्चिमी देशों की खोज बताए जाते हैं, वे सब मूलतः भारतीय वेद परंपरा के हैं। वे जिस प्रकार से एक ही सांस में बाबा रामदेव कहते हैं, जिन्हे वे वेदिक परंपरा के सन्यास परंपरा का वाहक बताते हैं उनके बारे में वे यह बताना भूल गये की सन्यासी कोई व्यापार नहीं करता ! जो कि रामदेव की कंपनी पतंजलि करती है ! योगासन सिखाने के उनके प्रयासों को वे प्रथम प्रयास बताते हैं। वे भूल जाते है कि रामदेव अगर सन्यासी का सम्मान पाना चाहते हंै तो उन्हें सर्वप्रथम व्यापारी का चोला छोड़ना होगा ! जो वे नहीं करेंगे।

महिम तिवारी जी क्या किसी एक भी गेरुआ वस्त्र धारी सन्यासी का नाम बता सकेंगे जिसने भगवा पहन कर व्यापार किया हो ? क्या वे इस बात का उदाहरण भी दे सकते है कि किसी ने सन्यासी रहते हुए किसी भी राजनीतिक दल का खुला समर्थन किया हो ? विगत मंे स्वामी करपातरी जी ने सरकार के हिन्दू कोड कानून का विरोध किया। उन्होंने राम राज्य परिषद नामक राजनीतिक दल का गठन कराया। जिसने 1952 के चुनावों में भाग लिया, उन्हें कुछ स्थान भी मिले। परंतु वे सिर्फ और सिर्फ सरकार की कुछ नीतियों और कुछ फैसलों को हिन्दू आस्थाओं के िवरुद्ध बताते थे ,बस उसके लिए वे जन आंदोलन किया। यह बात और है कि उनके देहावसान के बाद राम राज्य परिषद ही समाप्त हो गयी।

सफ़ेद वस्त्र धारी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी भी जवाहर लाल नेहरू के िवरुद्ध इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय क्षेत्र से 1952 मे चुनाव लड़े थे, परंतु वे पराजित हुए। बाद में उन्होंने गौ रक्षा आंदोलन चलाया जिसको लेकर उन्होंने दिल्ली में बड़ा भारी प्रदर्शन भी किया। पुलिस से आन्दोलंकारियों की झड़प भी हुई, कुछ मौतंे भी हुए और काफी लोग घायल हुए। फिर वे सार्वजनिक जीवन से तिरोहित हो गए।

वेदों में समस्त विज्ञान और ज्ञान का भंडार बताने वाले भूल जाते है कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब प्रथम राष्ट्रीय साइंस कान्फ्रेंस हुई, तब भी पूना के एक तथाकथित वैज्ञानिक ने भी रामायण काल के पुष्पक विमान को तत्कालीन वैज्ञानिक उपलब्धि बताते हुए – एक शोध पत्र पेश किया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि वे अपने बात का वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करेंगे। परंतु क्या हुआ ! लगभग दस माह बाद उनके शोध पत्र की जांच वैज्ञानिकों ने की और पाया कि उनके दावे तथ्यपरक नहीं है। उसके बाद मोदी जी की सरकार ने साइंस काँग्रेस के अधिवेशनों को ही बंद करा दिया। आज दस वर्षो में कोई भी फिर वैसी कान्फ्रेंस नहीं हुई? क्यों इसलिए हमारे आख्यानों मंे जो कुछ भी लिखा है या तो आज का विज्ञान उसे सिद्ध नहीं कर पा रहा हैं। इसके लिए आज की पीड़ी जिम्मेदार है एवं जब तक ऐसा नहीं होता तब तक जो ज्ञान सिद्ध है – उस पर ही विश्वास करना होगा। रही बात सन्यासियों की तो हमारे सामने बाबा आशाराम, बाबा राम रहीम, स्वामी नित्यानाद आदि जैसे अनेकों उदाहरण है जिन्होंने आम जनता के भीरु स्वभाव का लाभ उठाकर समाज को ठगा है।

योगासन और आयुवेर्वेद भारत में बाबा रामदेव के बहुत पहले से है। केरल में जितना आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के केंद्र है उनके प्रबन्धक ना तो कोई विज्ञापन निकलते हैं और न ही कोई दावा करते हैं। वे भी एलोपथी द्वारा हाथ खड़ा किए जाने के बाद पँहुचे मरीजों को भी ठीक किया है। उनके स्वस्थ होने की मेडिकल जांच हुई। बाबा रामदेव की तरह व्यक्तियों – जिन्हें मरीज बताया गया उनके कहने मात्र से मेडिकल तथ्य नहीं बन जाता है। जिसे तिवारी जी सबूत बताते हंै, वह लोगों की अनुभूति हो सकती है – वैज्ञानिक प्रमाण नहीं।

रामदेव से बहुत पहले से वैद्यनाथ, धूतपापेसवार, डाबर और उंझा जैसी अनेक कंपनी आयुर्वेदिक उत्पादों को बनती रही है। इसलिए यह कहना कि कोई षड्यंत्र है कि आयुर्वेद को खत्म करने का ! रामदेव से पूर्व भी घरों मे लोग योगासन किया करते थे, मेरे स्वयं के परिवार मंे मैंने देखा है। तब यह कहना कि आयुर्वेद और योगासन के प्रणेता बाबा रामदेव है पूरी तरह निराधार होगा।

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