nayaindia भोपाल: ईवीएम विश्वसनीयता पर उठे सवाल, मतदान अधिकार से वंचित!
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सुप्रीम कोर्ट का चुनावी प्रक्रिया पर फैसला..?

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मतदान

भोपाल। ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठाए गए सवालों पर आपके फैसले से उन लोगों को ठेस हुई है, जो मौजूदा चुनावी प्रक्रिया के चलते मतदान तक के अधिकार से वंचित हो गए हैं। जबकि उनका कोई क़ुसूर भी नहीं था। आम तौर पर मतदाता सूची को अपडेट करने के नाम पर हर निर्वाचन क्षेत्र में सैकड़ों लोगों के नाम गायब हो गए हंै ! कैसे ! आम तौर पर मतदाता सूची को दुरुस्त करते समय तभी किसी मतदाता का नाम हटाया जाता है जब या तो वह लिखे पते पर निवास नहीं कर रहा होता, अथवा उसका निधन हो चुका हुआ हो।

परंतु हाल में हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान हजारों ऐसी शिकायतें निर्वाचन अधिकारियों को की गयी। परंतु कोई फल नहीं निकला। यहां तक कि हो रहे लोकसभा चुनावों में भी यह गड़बड़ी जारी रही। लोगों के पास उनके उनके पुराने मतदाता पहचान पत्र होते हुए भी, उन्हंे मतदान केन्द्रों से यह कह कर वापस लौटा दिया गया कि उनके नाम मतदाता सूची मंे नहीं है ! अब यह कैसे हो गया!

ज़ाहिर सी बात है कि मतदाता सूची दुरुस्त करने का काम ईमानदारी से नहीं किया गया। अन्यथा जो लोग अपने उल्लखित निवास पर िजंदा है, उनका नाम क्यूं गायब हो गया ? इन पन्तियों को लिखने वाला इसका भुक्त भोगी है। किस्सा यूं है कि लोकसभा चुनावों में जब वह अपने परिवार सहित पोलिंग बूथ पर पहुंचा तब उन्हें बताया गया कि उसका और उसकी पत्नी का नाम मतदाता सूची से गायब है। जबकि उसी निवास के पते से मेरे पुत्र का नाम था ! मेरा और मेरी पत्नी का नाम गायब था। खैर, उस वक़्त कुछ ज्यादा नहीं हो सकता था। हालांकि मैंने अपना पुराना वॉटर कार्ड उन्हें दिखाया तब भी यही जवाब मिला कि आपका नाम मतदाता सूची में नहीं है, तब आप पुराने वॉटर कार्ड से वोट नहीं डाल सकते।

खैर, हमने इस मसले को मुख्य निर्वाचन अधिकारी से ऑन लाइन शिकायत दर्ज कराई, पर कुछ नहीं हुआ, बात आई गई कर दी गयी। मैंने दुबारा रजिस्ट्रेशन के लिए नियत मियाद में अपना और अपनी पत्नी का फार्म बाकायदा भर कर पोलिंग बूथ पर रहे अफसर को दिया। उन्होंने भी गारंटी दी कि वे हम पति –पत्नी का नया रंगीन वॉटर कार्ड बनवा देंगे।

परंतु मतदान से पूर्व भोपाल उत्तर से मैंने अपना नाम ऑन लाइन खोजने की कोशिश की, तब पता चला कि इस बार मेरे पुत्र का भी नाम मतदाता सूची से गायब है। इतना ही नहीं मेरा मोबाइल नंबर जो की पुराने वॉटर कार्ड पर भी दर्ज है वह भी छतरपुर के किसी सज्जन के नाम पर दर्ज है ! फिलहाल मेरे परिवार के तीनों मतदाता के नाम सूची से गायब हो गये !

अब यह एक उदाहरण है जो हमारे लोकतंत्र की रीड़ की हड्डी है, अगर उसमें ही यह गलती / या साजिश हुई तो हुज़ूर शिकायत तो होगी। अब इस कारण शिकायत करता की नियत पर शक करना तो शोभा नहीं देता। मैं तो इस मुद्दे को पुनः एक बार मुख्य निर्वाचन अधिकारी के सामने लाऊँगा ही पर इस आलेख का आशय यही था कि इवीएम भले ही गलत न साबित हो पायी हो, परंतु यह तो आम आदमी भी आज जनता है कि चिप लगी वस्तु को बेतार से भी नियंत्रित किया जा सकता है।

जब घर की लाइन और –पंखे तथा एयर कंडीशनर तक मोबाइल से और यहां तक कि बोलने से नियंत्रित हो रहे हैं, ऐसे में यह संदेह करना कोई बेबुनियाद तो नहीं है। मैंने खुद 1952 के प्रथम चुनावों को देखा था तब मैं आठ साल का था। मेरे पितामह उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के पुलिस अधीक्षक हुआ करते थे। बूथ के मुआयने के समय मैं साथ था। तब सभी पार्टियों के बक्से उनके चुनाव चिन्हों के साथ रखे हुए थे। कांग्रेस का डब्बा दो बैलो की जोड़ी, का था सोसलिस्ट पार्टी का डब्बा झोपड़ी बनी हुई थी और जनसंघ (जो अब भारतीय जनता पार्टी है) का निशान जलता दिया था। 1967 के बाद हुए चुनावों में मैंने सर्वदा मतदान किया है। इसलिए इस प्रकार मतदान से वंचित किया जाना बहुत बुरा लगा।

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