nayaindia remote EVM रिमोट ईवीएम से संदेह और बढ़ेगा

रिमोट ईवीएम से संदेह और बढ़ेगा

देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां चुनाव की शुचिता पर सवाल उठा रही हैं। विपक्ष इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम के व्यवस्थित तरीके से दुरुपयोग के इल्जाम लगा रहा है। वह चुनाव आयोग की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा कर रहा है। ईवीएम की बजाय बैलेट से चुनाव कराने की मांग हो रही है। यह मामूली बात नहीं है। चुनाव आयोग और केंद्र सरकार दोनों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। आजाद भारत में चुनावों के बाद सत्ता का शांतिपूर्ण और सहज तरीके से हस्तांतरण इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि देश की जनता शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव की धारणा को सहज रूप से स्वीकार करती है। उसको लगता है कि चुनाव निष्पक्ष हुए हैं और चुनाव कराने वाली संस्था तटस्थ होकर काम कर रही है। अगर किसी भी तरह से या किसी भी वजह से यह धारणा प्रभावित होती है तो लोकतांत्रिक गणराज्य भारत की संविधान आधारित शासन प्रणाली खतरे में आएगी।

संविधान आधारित लोकतांत्रिक शासन प्रणाली कायम रहे इसकी पहली शर्त स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है। भारत में इसकी लंबी परंपरा रही है। पिछले कुछ दिनों से इस पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस और कई विपक्षी पार्टियां छिटपुट तरीके से यह सवाल उठाती रही हैं लेकिन अब कांग्रेस ने अनेक विपक्षी पार्टियों को साथ लेकर व्यवस्थित तरीके से यह सवाल उठाया है। कांग्रेस के बड़े नेता सूचना व तकनीक के जानकारों से मिले, उनसे ईवीएम के कामकाज के तरीके को समझा, नतीजों को प्रभावित करने के लिए उसका कैसे दुरुपयोग हो सकता है इसका अध्ययन किया, फिर विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक की और तब चुनाव आयोग से मिल कर औपचारिक रूप से विरोध दर्ज कराया। यह विरोध मल्टी कांस्टीट्यूंसी रिमोट ईवीएम को लेकर है लेकिन इसी बहाने कांग्रेस ने विपक्षी पार्टियों के साथ पूरी चुनाव प्रक्रिया और ईवीएम के ऊपर भी विचार विमर्श किया।

कांग्रेस ने रिमोट ईवीएम को लेकर अपना विरोध दर्ज कराने से पहले कुछ आरोप भी लगाए हैं। गुजरात में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि उसने जमीनी स्तर से और अपने कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों से रिपोर्ट ली, जिसमें बताया गया है कि मतदान के आखिरी घंटे में रहस्यमय तरीके से मतदान का प्रतिशत बहुत बढ़ गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बहुत से मतदान केंद्रों पर आखिरी घंटे में 10 से 12 फीसदी मतदान हुआ। कांग्रेस ने यह भी कहा कि जिन मतदान केंद्रों पर आखिरी घंटे में 10 से 12 फीसदी मतदान हुआ वहां कोई बहुत भारी भीड़ नहीं थी और न कोई लंबी लाइन लगी थी। इस आधार पर कांग्रेस ने ईवीएम के व्यवस्थित दुरुपयोग का आरोप लगाया है। इसके अलावा कांग्रेस ने वीवीपैट पर्चियों के मिलान को भी पर्याप्त नहीं बताया है। ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हर विधानसभा क्षेत्र में पांच मतदान केंद्रों पर ईवीएम के आंकड़ों का मिलान वीवीपैट की पर्ची से किया जाता है। कांग्रेस ने इसे बहुत कम बताया है। विपक्षी पार्टियां हर बूथ पर परची का मिलान करने की मांग करती रही हैं। ईवीएम में गड़बड़ी की चिंता में ही बसपा प्रमुख मायावती ने फिर से बैलेट के जरिए चुनाव कराने की मांग की है।

अब विपक्षी पार्टियों का असली सिरदर्द मल्टी कांस्टीट्यूंसी इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी रिमोट ईवीएम का है। कांग्रेस ने इस पर विपक्षी पार्टियों के साथ विचार विमर्श किया और सोमवार को चुनाव आयोग के सामने दो टूक अंदाज में इसका विरोध किया। भाजपा और बीजू जनता दल को छोड़ कर लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने आयोग के इस प्रयोग का विरोध किया। कांग्रेस का कहना है कि यह आइडिया ठीक नहीं है क्योंकि इसमें गड़बड़ी हो सकती है और धांधली भी हो सकती है। विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर बैंक में रखा गया रुपया हैक करके निकाला जा सकता है तो वोट की चोरी भी हो सकती है। असल में एक मशीन में 70 से ज्यादा सीटों के लिए मतदान की व्यवस्था पूरी तरह से तकनीकी मामला है। इसके लिए अलग से मतदाता सूची की जरूरत होगी, जिसमें क्षेत्रवार प्रवासी मतदाताओं के नाम दर्ज होंगे। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देकर कहा है कि 30 करोड़ प्रवासी मतदाता होने की बात कही जा रही है। यह संख्या कहां से आई है और इतने प्रवासी मतदाताओं का वेरिफिकेशन कैसे होगा? प्रवासी मतदाताओं के वोट एक से ज्यादा क्षेत्रों में हो सकते हैं। जब तक इस दोहराव को खत्म करने का फुलप्रूफ तरीका नहीं निकलता है तब तक इसमें गड़बड़ी की संभावना बनी रहेगी। इस व्यवस्था में बोगस वोटिंग की संभावना या मशीन के साथ छेड़छाड़ की गुंजाइश भी हमेशा बनी रहेगी।

रिमोट ईवीएम से मतदान की प्रक्रिया भी जटिल हो जाएगी। एक मशीन में अनेक क्षेत्रों के उम्मीदवारों की सूची स्टोर की जाएगी। हर क्षेत्र में जो निर्वाचन अधिकारी होगा वह उस क्षेत्र के उम्मीदवारों की सूची और चुनाव चिन्ह अपने कंप्यूटर से सेंट्रल सर्वर में या रिमोट ईवीएम में अपलोड करेगा। जब जिस क्षेत्र का मतदाता पहुंचेगा, तब उस क्षेत्र का बैलेट खोलना होगा। पार्टियों की एक चिंता यह भी थी कि जहां जहां उनके राज्य के प्रवासी होंगे वहां प्रचार कैसे होगा और वहां रिमोट वोटिंग के बूथ पर चुनाव एजेंट कैसे नियुक्त होगा? ये व्यावहारिक समस्या है। चुनाव आयोग का कहना है कि अमेरिका की तरह अर्ली वोटिंग, ऑनलाइन वोटिंग आदि तमाम विकल्पों पर विचार के बाद उसने रिमोट ईवीएम को चुना है। लेकिन आयोग को इस मामले में जल्दी नहीं करनी चाहिए क्योंकि अभी ईवीएम को लेकर ही राजनीतिक बिरादरी में और समाज के एक बड़े तबके में संशय पैदा हो गया है। जब तक चुनाव आयोग ईवीएम का संशय खत्म नहीं करता है और आयोग की निष्पक्षता पर उठ रहे सवाल नहीं सुलझाएं जाते हैं तब तक रिमोट ईवीएम का इस्तेमाल एक खराब आइडिया है।

ध्यान रहे चुनाव आयोग को लेकर कई गंभीर सवाल उठे हैं। चुनाव की तारीखें तय करने में सत्तारूढ़ भाजपा की सुविधा देखने का इल्जाम कई बार लगा है। पिछले साल के आखिर में हुए हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव की तारीखों की अलग अलग घोषणा करके चुनाव आयोग ने खुद अपनी साख को बहुत डैमेज किया है। जो आयोग पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात करता है वह दो राज्यों के चुनावों की घोषणा 20 दिन के अंतराल पर करे तो उसे किसी तर्क से सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसी तरह उससे पहले 2021 के चुनाव में कोरोना महामारी के बीच पश्चिम बंगाल में छह-सात चरण में मतदान कराने का आयोग का फैसला भी उसकी साख पर बट्टा लगाने वाला था। ऐसे ही प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के ऊपर लगे आचार संहिता उल्लंघन के मामले में आयोग का जैसा रवैया रहा उसे लेकर तो आयोग के अंदर ही सवाल उठे। एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने प्रधानमंत्री मोदी को नोटिस या चेतावनी नहीं देने के फैसले पर आपत्ति की थी। लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। यहां तक कि उनकी आपत्ति को आयोग की कार्यवाही में भी शामिल नहीं किया गया। हो सकता है कि आयोग का काम निष्पक्ष हो लेकिन नागरिकों का विश्वास बनाए रखने के लिए निष्पक्ष होने के साथ साथ निष्पक्ष दिखना भी जरूरी होता है। दुर्भाग्य से चुनाव आयोग निष्पक्ष दिख नहीं रहा है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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