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लोकतंत्र…. विभत्स चेहरा: प्रजातंत्र के लिए ये ही दिन देखना शेष थे…?

भोपाल। क्या हमारे देश की आजादी के लिए प्राणोत्सर्ग के साथ अपना सर्वस्व लुटा देने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों व गांधी-नेहरू ने कभी यह कल्पना की थी कि प्रजातंत्र के महज 75 साल बाद ही हमारे प्रजातंत्र को विभत्स चेहरा नजर आने लगेगा, आज जिस तरह स्वयं नेताओं और उनके अनुयायियों की खरीद बिक्री देखी जा रही है, क्या यह विश्व में प्रजातंत्र के सिरमौर भारतवर्ष के लिए शर्मनाक और कलंकित करने वाला कृत्य नहीं है? आज सिर्फ कहने को यह देश प्रजातंत्री रह गया है, यहां के ‘तंत्र’ का ‘प्रजा’ से कोई लेना-देना नहीं है, प्रजातंत्र के नाम पर हर कहीं लूटमार जारी है और देशवासियों को उसकी उसका माध्यम बनाया जा रहा है, खेद की बात यही है कि हमारे देश का आम नागरिक आज भी इन सबसे अनजान बना हुआ है, इस तरह हमारे इस प्रजातंत्र में सबसे अधिक शोषण हमारी ‘प्रजा’ का हो रहा है और उसी का आधा हिस्सा ‘तंत्र’ उसका शोषण कर रहा है।

देश के दिल्ली, हैदराबाद, पुणे जैसे बड़े शहरों में यह काम बखूबी जारी है, सोशल मीडिया के माध्यम से नेताओं से सरेआम यह पूछा जा रहा है कि उन्हें अपने कितने ‘फॉलोवर्स’ चाहिए और नेताओं को ‘फॉलोवर्स’ के रेट्स (दरे) भी बताई जा रहे हैं, 80 पैसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से फर्जी ‘फॉलोवर्स’ और डेढ़ रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से ‘सच्चा फॉलोवर्स’ खरीदा-बेचा जा रहा है। नेताओं से कहा जा रहा है कि जितना बड़ा इलाका चुनेंगे, प्रति ‘फॉलोवर्स’ उतना ही कम दाम होगा, इस प्रकार जैसे-जैसे चुनाव निकट आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे इन बाजारों की रौनकें बढ़ती जा रही है। नेताओं से खुलेआम पूछा जा रहा है कि नेताजी बोलो तो सही आपको कितने ‘फॉलोवर’ चाहिए और हर नेता इन दिनों अपने ‘फॉलोवर्स’ की भीड़ जुटाने में व्यस्त है।

वैसे यह बताया जा रहा है कि सोशल मीडिया पर असली-नकली फॉलोअर्स की पहचान करना बड़ा आसान है, यदि किसी नेता के ‘फॉलोअर्स’ लाखों की तादाद में दिखे, तो प्रभावित होने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि वह नकली और खरीदे हुए हो सकते हैं, अगर लाखों ‘फॉलोअर्स’ के बावजूद पोस्ट पर 10-20 लाईक और नाम मात्र के शेयर हो तो समझ जाइए कि यहां ‘फॉलोअर्स’ फर्जी है।

एक राजनीतिक एजेंसी ने इस बारे में विस्तृत सर्वेक्षण भी किया है, जिसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘फर्जी फॉलोअर्स’ की प्रति व्यक्ति दर 70 से 80 पैसे प्रति व्यक्ति है और इसका सौदा सीधे सर्वर से होता है, ऐसे फॉलोअर्स निष्ठावान नहीं रहते। जबकि ‘असली फॉलोअर्स’ की दर एक से डेढ़ रुपए होती है और क्षेत्र व स्थान के हिसाब से उनकी दरें तय की जाती है, यह एक्टिव होते हैं और एक विशेष अभियान चलाकर इन्हें इकट्ठा किया जाता है।
आज का ‘प्रजातंत्र’ इसी शक्ल में हमारे सामने है, क्या इतने कम समय में प्रजातंत्र को अल्पजीवी बना देने वाले प्रजातंत्र के ऐसे स्वरूप की किसी ने कल्पना भी की थी? देश में व्याप्त “युवा बेरोजगारी” का यह नेतागण इस तरह पूरा फायदा उठा रहे हैं, यह स्थिति आज देश में कहीं भी सहज ही देखने को मिल सकती है। जिस तरह राजनीतिक कार्यकर्ता की खरीदी-बिक्री हो रही है, उसी तरह नेताओं की भी बड़े नेताओं द्वारा खरीदी- बिक्री की जा रही है, जिनकी दर 4 से 5 अंकों तक है।

इस तरह आज का हमारा प्रजातंत्र इसी तरह की कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है और देश की जिस जनता को एक सफल चिकित्सक बनकर इस महारोग का इलाज करना चाहिए, वह स्वयं इसे “छूत का महारोग” बनाए हुए हैं, यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, हमारा प्रजातंत्र ऐसी अनेकों महामारियों से ग्रस्त है, अब ऐसे में इसके ‘दीर्घजीवी’ होने की दुआ भी कैसे की जा सकती है?

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