भोपाल। क्या प्रधानमंत्री पद पर विराजित शख्स की कोई निजी जिन्दगी नहीं होती? क्या उसे अपने लिए कुछ भी फैसले लेने का अधिकार नहीं है? ये अहम् सवाल देश के प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी पर लगाए गए ताजा आरोपों में निहित है, कांग्रेस को प्रधानमंत्री के मंदिर दर्शन पर आपत्ति है, कांग्रेस के इस गंभीर आरोप ने भारतीय राजनीति मेें संलग्न शख्सियतों के निजी जीवन को लेकर अनेक सवाल खड़े कर दिए है, आखिर प्रतिपक्ष दल को किसी की भी निजी दिनचर्या या जिन्दगी में झांकने की अनुमति किसने दी? हाँँ, यदि प्रधानमंत्री के शासकीय दायित्वों या कर्तव्यों के निर्वहन में कोई कमी होती तो उसके उल्लेख का प्रतिपक्ष को पूरा अधिकार है, किंतु प्रधानमंत्री अपने निजी जीवन में क्या करते है और उन्हें क्या करना चाहिए, इसका विश्लेषण करने का अधिकार प्रतिपक्षी दल कांग्रेस को किसने दिया? यह सिर्फ और सिर्फ प्रमुख प्रतिपक्षी दल की कच्ची व बचकानी सोच का परिणाम है?
यहाँँ वास्तविकता तो यह है कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव निकट आते जा रहे है, वैसे-वैसे प्रतिपक्षी दलों की घटराहट बढ़ती जा रही है और उसी घबराहट के दौर में ऐसे बेबुनियाद सवाल उछाले जा रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर प्रतिपक्ष द्वारा एक ही घिसापीटा आरोप लगाया जाता है और वह है- मंहगाई और बैरोजगारी पर नियंत्रण नहीं होने का, तो इस आरोप के संदर्भ में कांग्रेस को अपने लम्बे शासनकाल की भी तो निष्पक्ष भाव से समीक्षा करना चाहिए, क्या नेहरू-इंदिरा, राजीव या नरसिंह राव जी के शासनकाल में मंहगाई-बैरोजगारी नही थी? आज ही यह क्यों नजर आने लगी, यह भी चौबीस की चुनौती की घबराहट का ही परिणाम है। जिसके लिए तैयारियों के मामले में कांग्रेस भाजपा से काफी पीछे है, अभी लोकसभा चुनावों में सौ से भी अधिक दिवसों का समय है और देश पर सत्तारूढ़ भाजपा ने अगले चुनाव में पचास प्रतिशत से अधिक मतदान कराने और लोकसभा की चार सौ सीटें जीतने का लक्ष्य तय करके उसकी रणनीति भी तैयार कर ली है। जबकि कांग्रेस व उसके शीर्ष नेता रणनीति पर विचार छोड़ देशव्यापी यात्रा में संलग्न है, अब चुनाव तैयारी के इस चरम समय पर मणीपुर से मुम्बई तक की बस यात्रा में एक महीनें से भी अधिक का समय व्यर्थ गंवाया जा रहा है, क्या इससे कांग्रेस का प्रतिस्पर्धी प्रचार संभव है? और इस यात्रा से क्या कांग्रेस को कोई राजनीतिक फायदा मिल सकता है? लेकिन किया क्या जाए? यह सब अपनी-अपनी सोच पर निर्भर है।
अब यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल व उसके नेता फिर से एक बार अपने लड़कपन के दौर में आ गए है और चालीस वर्षिय सत्तारूढ़ दल वरिष्ठ की श्रेणी में दाखिल हो गया है? वास्तव में आज देश की जो राजनीतिक चाल है वह इसी बेमैल स्पर्द्धा के कारण लड़खड़ा रही है, एक ओर सत्तारूढ़ भाजपा और उस पर काबिज अनुभवी नेता और दूसरी ओर बचकानी हरकतों में माहिर कांग्रेस व उसके गैर-अनुभवी नेता और इसी राजनीतिक स्थिति का भाजपा व उसके नेता लाभ उठा रहे है, राजनीतिक पण्डितों का यही कहना है कि यदि सही स्थिति और आगे चली तो फिर मोदी व उनकी भाजपा शासन को दीर्घजीवी होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
इसलिए यदि देश को बिना चुनौति वाले भाजपा के निरंकुश शासन से बचाना है तो अब कांग्रेस व अन्य प्रतिपक्षी दलों को पूरी तरह होश में आकर एकजुटता से चुनौति बनकर सामने आना पड़ेगा, वर्ना मोदी जी व भाजपा शासन को दीर्घजीवी बनने से रोकना होगा। इसलिए प्रतिपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस को मोदी जी या सत्तारूढ़ अन्य नेताओं के निजी जीवन में झांकने के बजाए सैद्धांतिक तरीके से आलोचना का रास्ता अख्तियार करना होगा, वर्ना फिर मोदी सरकार को दीर्घजीवी बनने से कोई नही रोक पाएगा और यह तो सर्वविदित है कि मजबूत प्रतिपक्ष विहीन सरकारें निरंकुश होने लगती है?